क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
राष्ट्रीय खेल अवार्डों का नाम बदल दिया गया है। इन्हें अब हॉकी जादूगर दद्दा ध्यान चंद के नाम से जाना जाएगा। अब तक इन अवार्डों के साथ पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी का नाम जुड़ा था। पता नहीं नाम बदलने के पीछे क्या कारण था लेकिन ध्यान चंद के नाम पर शायद ही किसी को ऐतराज हो।
तो अब रेबड़ियाँ नहीं बांटी जाएंगी:
अवार्ड का नाम बदल दिया है तो अब गंभीरता और बिना किसी पक्षपात के अवार्डियो का चयन करने की जरूरत है। कुछ लोग कह रहे थे कि राजीव गांधी कहाँ के चैंपियन थे। लेकिन अब देश के श्रेष्ठ खिलाड़ी के नाम पर और खेल दिवस पर अवार्ड बांटे जाने हैं।
ऐसे में खेल मंत्रालय, खेल संघों और अवार्ड कमेटी का दायित्व बनता है कि सही और असली हकदारों का ही चयन किया जाए। जिम्मेदार लोगों को जान लेना चाहिए कि खेल अवार्डों की बंदर बांट से हॉकी के महान जादूगर का नाम भी खराब होगा।
क्या ऐसा हो पाएगा? पहले ध्यानचंद खेल अवार्डों के लिए गठित कमेटी को ध्यान रखना होगा कि सम्मान उसी को मिले जो कसौटी पर फिट बैठता है।
ओलंम्पिक वर्ष में!:
हालांकि राष्ट्रीय खेल अवार्ड 29 अगस्त को दद्दा ध्यान के जन्म दिन पर बांटे जाने की परंपरा रही है लेकिन इस बार फैसला लिया गया है कि पैराओलंम्पिक खेलों के समापन के बाद अवार्ड दिए जाएंगे ताकि पैरा खिलाड़ियों को भी शामिल किया जा सके।
फैसला स्वागत योग्य है लेकिन देखना यह होगा कि चयन कितना स्वागतयोग्य रहता है। कारण, खेल अवार्डों को लेकर हर बार कोई न कोई विवाद होता रहा है। शायद ही कोई ऐसा साल बीता हो जब खिलाड़ियों और कोचों ने आरोप न लगाए हों।
पिछले साल कोरोना की आड़ में कई ऐसे खिलाड़ियों और कोचों को खुश कर दिया गया जोकि सम्मान के हकदार कदापि नहीं थे, ऐसा कई असंतुष्टों का मानना है। यहां तक कहा गया कि खेल मंत्रालय ने फाइनल लिस्ट बना कर अवार्ड कमेटी को थमा दी थी। चूंकि ओलंम्पिक वर्ष है इसलिए किसी भी प्रकार की निंदा और विवाद की जगह नहीं बचनी चाहिए।
हॉकी विशेष सम्मान की हकदार:
चूंकि खेल अवार्डों का नाम हॉकी के महान खिलाड़ी के नाम पर है, इसलिए हॉकी का विशेष सम्मान बनता है। सालों बाद कांस्य पदक जीतने वाली पुरुष और चौथा स्थान पाने वाली महिला टीमों के सभी खिलाड़ी, कोच और स्पोर्ट स्टाफ सम्मानित किए जाएं तो शायद ही किसीको कोई ऐतराज हो सकता है।
ओलंम्पिक पदक जीतने वाले पैरा खेलों सहित सभी खिलाड़ी किसी न किसी सम्मान को पा सकते हैं।लेकिन कई खिलाड़ी अर्जुन और खेल रत्न पहले ही पा चुके हैं। उनको कौनसा सम्मान दिया जाएगा?
द्रोणाचार्य को लेकर विवाद:
भारतीय खेलों का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा है कि कई फर्जी द्रोणाचार्य असली का हक मारते आए हैं। आज तक खेल मंत्रालय और अवार्ड कमेटियां यह तय नहीं कर पाई हैं कि खिलाड़ी का वास्तविक कोच कौन हो सकता है।
राष्ट्रीय टीम का कोच, विदेशी कोच या खिलाड़ी को ग्रास रुट से सिखाने पढाने वाला? कुश्ती, मुक्केबाजी, हॉकी आदि खेलों में अनेकों बार आरोप लगते आए हैं। लेकिन फर्जीवाड़ा जारी है। इस बार राष्ट्रीय खेल अवार्ड नयापन लिए होंगे। उम्मीद है वास्तविक हकदारों को सम्मान मिलेगा और आरोप प्रत्यारोपों का दौर थम जाएगा।