क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
दिल्ली और देश में यदि कोरोना के मामले नियंत्रण में रहे और आम नागरिकों ने नियमों का बखूबी पालन किया तो खेल और खिलाड़ियों का इंतजार खत्म होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। उम्मीद की जा रही है कि कुछ एक दिनों या सप्ताह में खेल परिसर और स्टेडियमों में रौनक लौटने वाली है।
यह सही है कि पिछले डेढ़ साल में दुनियाभर के खेलों ने बहुत कुछ खोया है। बीमारी के चलते तमाम खिलाड़ी बंद कमरों में कैद हो गए थे। ज़ाहिर है खिलाड़ी अपने खेल से पूरी तरह कट गए थे। कई खिलाड़ी, कोच, खेल उद्योग से जुड़े लोग, सपोर्ट स्टाफ, खेल शिक्षक और खेल प्रशासकों ने जान गंवाई तो लाखों बेरोजगारी के शिकार हुए।
खेल जगत ने जो कुछ खोया है उसकी भरपाई सालों साल नहीं होने वाली। लेकिन चूंकि अब खेल पटरी पर लौटने वाले हैं इसलिए धैर्य और सब्र से काम लेना होगा। जल्दबाजी से नुकसान भी हो सकता है।
कोविड 19 ने यूं तो पूरी दुनिया के खेलों को प्रभावित किया है, जिसके चलते ओलंम्पिक खेलों को भी साल भर आगे आयोजित करने की जरूरत पड़ी। लेकिन खेल आयोजनों के मामले में अन्य देश भारत से बाजी मार गए। यूरोप में फुटबाल का जादू सर चढ़ कर बोला तो भारत के बाहर क्रिकेट ने खूब धमा चौकड़ी मचाई।
देर से ही सही भारतीय खेल भी मैदान पर लौट रहे हैं। ज़ाहिर है हमें वहीं से शुरुआत करनी है जहां पर ठिठके थे। बेशक,शून्य वर्ष में
खेलों ने बहुत कुछ गंवाया है जिसकी भरपाई में सालों लग सकते हैं।
कोरोना काल में जिम, हेल्थ क्लब और खेल मैदान पूरी तरह बंद होने से खिलाड़ी शिथिल पड़ गए थे। ज्यादातर घर से बाहर भी नहीं निकले। कुछ एक का बेहतरीन समय निकल गया तो कई एक बीमारी और मानसिक तनाव के कारण अपना श्रेष्ठ खो चुके हैं।
कुल मिलाकर बुरे वक्त को भुला कर खेलों को नये सिरे से शुरुआत करनी है। उम्मीद है सरकार और स्थानीय प्रशासन भी भरपूर समर्थन कर खेलों को गतिमान बनाएंगे। सरकारों को चाहिए कि खेल परिसरों और स्टेडियमों के दरवाजे खिलाड़ियों के लिए पूरी तरह खोल दिए जाएं। किसी भी खेल या खिलाड़ी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए, जैसा कि अब तक किया जाता रहा है।
यह न भूलें कि भारतीय खेलों को अपनी प्रगति की रफ्तार कई गुना बढ़ानी है ताकि शेष विश्व से मुकाबला कर सकें और भारत को खेल महाँ शक्ति बना सकें। बेशक, खेल बजट बढ़ाने की जरूरत है ताकि उभरते खिलाड़ियों को किसी प्रकार की कमी का सामना न करना पड़े। उनके लिए श्रेष्ठ कोच की व्यवस्था की जाए और अन्तरराष्ट्रीय अनुभव की कोई कमी न रखी जाए।
यह भी याद रखें कि कोरोना या किसी भी बीमारी को खिलाड़ी शरीर आसानी से हरा सकता है। अतः खेलों पर से हर प्रकार की बंदिश हटाने का समय आ गया है। लेकिन थोड़ा हट के, जरा बच के! कोरोना कहीं गया नहीं। हमारे आस पास है और रूप बदल कर दबोचने की कोशिश करता रहेगा।