क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
सांसद और क्रिकेटर गौतम गंभीर और भारतीय तीरंदाजी की शीर्ष महिला खिलाड़ी दीपिका कुमारी के बीच यमुना स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स को लेकर शुरू हुई तकरार ठंडी जरूर पड़ गई है लेकिन यह मामला यूं ही ठंडा होने वाला नहीं है। कारण , क्रिकेट द्वारा तमाम खेलों का अतिक्रमण लगातार बढ़ रहा है और इस खेल में सरकार, प्रशासन और पूर्व क्रिकेटर बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी निभा रहे हैं।
हैरानी वाली बात यह है कि वर्ल्ड नंबर वन तीरंदाज दीपिका ने तब क्रिकेट की घुसपैठ का मामला उठाया है जबकि वह टोक्यो ओलंम्पिक की तैयारी में जुटी है। ज़ाहिर है मामला गंभीर है और सांसद गंभीर भी मामले को राजनीतिक रंग नहीं देना चाहेंगे। एक बयान में उन्होंने कहा है कि यमुना स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स क्रिकेट में कन्वर्ट नहीं हो रहा अपितु अपग्रेड किया जा रहा है , जिसमें तीरंदाजी के लिए अलग से समुचित व्यवस्था का वादा किया गया है।
लेकिन क्रिकेट और अन्य खेलों के बीच ग्राउंड को लेकर यह पहला विवाद नहीं है। पैसे, प्रतिष्ठा और चमक दमक से चकाचौंध क्रिकेट देश भर में बाकी खेलों को हैरान परेशान करता आ रहा है। पिछले कुछ सालों में क्रिकेट और अन्य खेलों के बीच तनातनी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन क्रिकेट अपनी ऊंची पहुंच के चलते अजेय है और अपना दायरा लगातार बढाता आ रहा है।
दिल्ली,मुम्बई, बंगलोर, कलकत्ता और तमाम बड़े छोटे शहरों , गली कूचों में जो मैदान और पार्क कभी हॉकी, फुटबाल, एथलेटिक आदि खेलों के लिए जाने पहचाने जाते थे आज उन सब पर क्रिकेट का कब्ज़ा है। अन्य कोई खिलाड़ी उनकी तरफ देख तक नहीं सकता।
दिल्ली में डीडीए, नई दिल्ली पालिका परिषद, नगर निगम, दिल्ली सरकारऔर अन्य विभागों के बहुत से खेल मैदान इसलिए क्रिकेट मैदान बन कर रह गए हैं क्योंकि जो दिखता है बिकता है। क्रिकेट की तूती बोल रही है इसलिए बाकी खेल मूक दर्शक बन कर रह गए हैं। इस खेल में विभिन्न विभागों के बड़े अधिकारी सीधे सीधे शामिल बताए जाते हैं।
हैरानी वाली बात यह है कि बहुत से पूर्व क्रिकेटर अपने नेम फेम के दम पर क्रिकेट मैदान तो पा रहे हैं, साथ ही अन्य खेलों के लिए तय जगह भी हथिया लेते हैं। इस पुण्य काम में कौन उनका साथ दे रहे हैं,यह जांच पड़ताल का विषय है। लेकिन जब कोतवाल ही चोर का भाई निकले तो कौन जांच करेगा?
जिन्हें क्रिकेट का जंगलराज दिखाई नहीं दे रहा, वे दिल्ली एनसीआर का नजारा देख सकते हैं जहां, बड़े बड़े खेत खलिहान काट पीट कर क्रिकेट स्टेडियम बनाए जा रहे हैं। दिन रात क्रिकेट खेली जाती है और क्रिकेट के अलावा और भी बहुत कुछ होता है। लेकिन बाकी खेलों के लिए कोई जगह नहीं बची। ऐसा क्यों?
कभी तालकटोरा गार्डन में फुटबॉल और हॉकी के मैदान थे। इन मैदानों से सैकड़ों स्टार खिलाड़ी निकले लेकिन अब सिर्फ क्रिकेट की चौधराहट चलती है। और भी सैकड़ों उदाहरण हैं, जिन पर सांसद गंभीर और नये खेल मंत्री अनुराग ठाकुर चाहें तो ध्यान दे सकते हैं। बेशक, क्रिकेट भारत में धर्म बन गया है लेकिन ओलम्पिक खेल नहीं है।