When Dr. Ambedkar and Dadda Dhyanchand share a platform

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ओलंपियन और विश्व चैंपियन अशोक ध्यान चंद द्वारा:

जब हम एक हॉकी मैच पूर्व की इस ऐतिहासिक तस्वीर को देखते हैं तो हमारा मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है, जिसमें हम भारत के संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर और हॉकी के जादूगर दुनिया के महानतम हाकी खिलाड़ी तीन ओलिम्पिक खेलो के स्वर्ण पदक विजेता मेजर ध्यानचंद और भारत के महान ओलम्पियन 1948 लंदन ओलिम्पिक भारतीय हॉकी टीम के कप्तान, स्वर्ण पदक विजेता किशनलाल एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।

संयोग देखिये डॉ अम्बेडकर का जिन्होंने भारत वासियों को उनके मौलिक अधिकारों के साथ कर्तव्यों की जिम्मेदारी देते हुये विश्व का सबसे विशाल और लचीला संविधान दिया तो वही मेजर ध्यानचंद ने खेलो के मैदान की मर्यादा और खिलाड़ियों को खेल नियमो के पालन करने करने के संविधान को अपने व्यवहार और खेल कौशल से खिलाड़ियो को सिखाया की एक खिलाड़ी का खेल मैदान पर और देश के प्रति उसके क्या नैतिक कर्तव्य होते हैं।

मेजर ध्यानचंद ने अपने कर्तव्यों से कभी कोई समझौता नही किया भले ही इसके लिये उन्हें किंतनी बड़ी से बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़ी हो लेकिन वे कभी भी कर्तव्यों से विमुख नही हुये। सैनिक रहते हुये जब उन्हें बर्मा सीमा पर एडवांस होने का आदेश मिला हो तो वे अपने कर्तव्यों को सैनिक की वर्दी में निभाते हुये दिखे और जब उन्हें अपने उच्च सैन्य अधिकारी से यह आदेश मिला कि ध्यानचंद तुम यहाँ खड़े क्या कर रहे हो तुम्हें तो 1936 भारतीय बर्लिन ओलिम्पिक में जाने वाली हॉकी टीम के प्रशिक्षण शिविर में होना चाहिए था|

ध्यानचन्द जी ने कहा कि मुझे वर्मा सीमा पर जाने का आदेश मिला है ये सुनकर उस सैन्य अधिकारी ने ध्यांचन्दजी को मुक्त किया और फिर ध्यांचन्द खिलाडी की पौशाक में भारत के लिए जी तोड़ मेहनत करते 1936 बर्लिन ओलिम्पिक खेलो मे गोलो के झड़ी लगाते हुये भारत के लिये लगातार तीसरा स्वर्ण पदक दिलाते हुये अपने कर्तव्य का निर्वहन करते देखे गए।

डॉ अंबेडकर ने भी संविधान में भारत के नागरिकों से यही आशा की है की आपकी जब जहाँ आवश्यकता हो वहाँ अपने कर्तव्यों को निभाने में कभी पीछे नही हटेंगे । मेजर ध्यानचन्द ने अपने जीवन मे सिर्फ और सिर्फ अपने कर्तव्यों को ही ध्यान में रखा और कभी भी उन्होंनेअपने अधिकारों का दुरूपयोग नही किया ।

वे ताउम्र कर्त्तव्यों को निभाते ही चले गए औऱ इसलिये अपनी हॉकी स्टिक लिए एक नैतिक कर्तव्यों को निभाने वाले खिलाडी के रूप में अपने साथी महान हॉकी खिलाडी किशन लाल के साथ डॉ बाबा साहेब अंबेडकर के साथ फ़ोटो शेषन में गर्व के साथ खड़े दिखते है और डॉ अम्बेडकर भी नैतिक कर्तव्यों को निभानेवाले मेजर ध्यानचंद और किशन लाल के साथ फ़ोटो खिंचवाते और उनसे हाथ मिलाते हुये गर्व का अनुभव कर रहे होंगे कि जिन नैतिक मूल्यों और कर्तव्यों की मैं भविष्य में देशवासियों से आशा कर रहा हूं उन नैतिक मूल्यों और कर्त्तव्यों पर चलकर इन खिलाड़ियों ने देश की सेवा की है और कर्तव्यों का पालन किया है।

संयोग देखिये की भारत रत्न डॉ बाबा साहब अम्बेडकर की जन्मभूमि मध्यप्रदेश के नगर महू में है और भारत के महान हॉकी खिलाडी किशनलाल की जन्मभूमि भी महू की है और आज जब हम डॉ बाबा साहब अम्बेडकर के जन्म दिन पर भारत की महान तीनों हस्तियों को एक साथ फ़ोटो मे खड़ा देखते है तो हम भारतीयों को अपने भारतीय होने पर गर्व होता है।

यहाँ एक बात और उलेखनीय है कि संविधान सभा मे डॉ अम्बेडकर के साथ प्रथम भारतीय ओलिम्पिक हाकी टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ने एक सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभायी है जो हम हॉकी प्रेमियों के लिये गर्व करने का विषय है। मेजर ध्यानचंद ने विषम परिस्थितियों में देश का नाम रोशन करते हुये ओलिम्पिक खेलो में लगातार तीन स्वर्ण पदक जीतने का गौरव भारत को दिलवाया वही महान हॉकी खिलाड़ी किशनलाल ने ध्यांचन्दजी की विरासत को संभालते हुये 1948 लंदन ओलिम्पिक खेलो में भारत की कप्तानी करते हुये भारत के लिए ओलिम्पिक खेलो में लगातार चौथा स्वर्ण पदक अर्जित किया|

और डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने जयपाल सिंह मुंडा के साथ दिन रात मेहनत करके 1950 में भारत को दुनिया का सबसे बड़ा संविधान भारत को दिया है ।सच पूछा जाए तो ये वे महान हस्तियां है जिनसे भारत का नाम रोशन हुआ है ।आज डॉ अम्बेडकर के जन्मदिन पर हम उन्हें याद करते है साथ हम अपने भारतीय हॉकी खिलाड़ियो को भी याद करते है और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। इन सभी हस्त्तियो से प्रेरणा लेते हुये हम कर्तव्यों को अपने जीवन मे सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुये देश की सेवा करने में अग्रसर हो ताकि हम देश के मस्तक को हमेशा ऊँचा रखने में कामयाब हो और तिरंगा आसमान में लहराहते रहे संविधान की मूल भावनाओं का आदर बना रहे।

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