क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
जीवन के तमाम क्षेत्रों की तरह भारतीय महैिलाएँ खेलों में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं, मान सम्मान पा रही हैं और पदक और पैसा भी कमा रही हैं। लेकिन खेलों में कामयाब महिलाओं की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है। कारण, उन्हें जैसा माहौल अन्य क्षेत्रों में मिल रहा है खेलों में प्राप्त नहीं हैं। एक सर्वे से पता चला है कि स्कूल स्तर पर बहुत सी लड़कियाँ खेलों में रूचि लेती हैं, लड़कों की तरह अपनी प्रतिभा दिखाती हैं परंतु धीरे धीरे उनका जोश या तो ठंडा पड़ जाता है या प्रोत्साहन की कमी के चलते खेल मैदान से हट जाती हैं।
कुछ महिला खिलाड़ियों और उनके माता पिता से प्राप्त जानकारी के अनुसार लड़कियाँ हर मायने में लड़कों की तरह शारीरिक और मानसिक तौर पर बराबरी रखती हैं लेकिन आज भी उन्हें लड़कों से कमतर आँके जाने की मानसिकता का सामना करना पड़ता है। नतीजन या तो खेल मैदान से हट जाती हैं या अपनी योग्यता और क्षमता का समुचित उपयोग नहीं कर पातीं।
इसमें दो राय नहीं कि हमारी महिला खिलाड़ियों ने भी पुरुषों की तरह एशियाड, कामनवेल्थ खेलों और विश्व स्तरीय मुकाबलों में अनेकों पदक जीते है। जहाँ तक ओलम्पिक खेलों की बात है तो कर्णम मल्लेश्वरी से शुरू हुई पदक यात्रा में सायना नेहवाल, मैरिकाम, पीवी सिंधु और साक्षी मलिक जैसे चन्द नाम ही शामिल हो पाए हैं।
हालाँकि पीटी उषा, शाइनी अब्राहम, गीता जुत्सी, रीथ अब्राहम, ज्योतिर्मोय सिकदर, कंवल जीत संधु, राजबीर कौर राय, सानिया मिर्ज़ा जैसी कई खिलाड़ियों ने भारतीय महिलाओं का गौरव बढ़ाने वाला प्रदर्शन किया पर यह संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है। कारण इनमें से कई एक महिला खिलाड़ी कहती हैं कि आज भी भारतीय लड़कियाँ पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं|
भारतीय खेल प्राधिकरण की एक रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण शिविरों में महिला खिलाड़ियों को यौन शोषण जैसी यातनाओं से गुज़रना पड़ता है। हालाँकि समय समय पर बहुत सी खिलाड़ियों ने विरोध में आवाज़ उठाई लेकिन ज़िम्मेदार अधिकारियों ने या तो उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं दिया या करियर बर्बाद करने जैसी धमकियाँ दे कर चुप करा दिया गया।
कुछ लड़कियों ने परिवार और साथी खिलाड़ियों के समर्थन से लड़ाई लड़ी लेकिन अंततः उन्हें हार कर खेल मैदान से हटना पड़ा। महिला हॉकी, एथलेटिक, तीरन्दाज़ी, बास्केटबाल, जूडो, कराटे, तायकवांडो मुक्केबाज़ी और कई अन्य खेलों में अनेक शिकायतें दर्ज की गईं और वापस भी ली गईं। खिलाड़ियों को डराने धमकाने का सिलसिला वर्षों से चल रहा है।
कुछ महिला खिलाड़ियों के अनुसार उनके साथ कोच और फ़ेडेरेशन अधिकारियों की शारीरिक हिंसा का खेल स्कूल स्तर पर ही शुरू हो जाता है। कुछ लड़कियाँ समाज के डर से चुप हो जाती हैं तो कुछ मातपिता के कहने पर खेलना छोड़ देती हैं। सर्वे में यहाँ तक पता चला है कि पचास फीसदी लड़कियाँ असुरक्षा के चलते स्कूल-कालेज में ही खेल विमुख हो जाती हैं। जो थोड़ी बहुत जारी रखती हैं उन्हें किसी ना किसी स्तर पर समझौता करना पड़ता है। खुद मुक्केबाज़ मैरिकाम ने अपनी फिल्म में महिला खिलाड़ियों के साथ हो रहे दुराचार का उल्लेख किया है।
Bhai saab apnei sahi farmaya hai khelo mei mahila khiladio ka soshan hota hai kai baar case rprt hotei hai ,par kai baar khiladio ko dara dhamka kei chup kar diya jaata hai…..
Vaisei khel he nhi bakio jagaho mei,office mei bhi aisa sunnei mei aata hai….uskei liyei hamei mahilao kei liyei mahila coaches ka chayan karna hoga.