क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
“खेल के मैदान खेलों से जुड़े रोल मॉडल के लिए हैं और प्रशासकों और नेताओं की जगह खेल मैदान या स्टेडियम कदापि नहीं हो सकते। उनके लिए शीशे के केबिन ही सही हैं। लेकिन शायद दिल्ली जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) इस संस्कृति को नहीं समझता।
यही कारण है कि मैने अपने नाम को ऐसे स्टेडियम से दूर रखने का फ़ैसला किया है, जिसकी प्राथमिकताएँ ही ग़लत रही हैं और जहाँ प्रशासकों और नेताओं को क्रिकेटरों से ऊपर रखा जाता है,”, भारतीय क्रिकेट इतिहास के सर्वकालीन श्रेष्ठ स्पिन गेंदबाज़ों में शामिल पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी ने कुछ इस अंदाज में अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए, फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम पर पूर्व अध्यक्ष और सांसद अरुण जेटली की प्रतिमा स्थापित करने के कदम को सरासर ग़लत बताया।
हालाँकि वह कह रहे हैं कि उन्हें इस मामले से कोई लेना देना नहीं परंतु साथ ही यह भी कहते हैं कि वह कभी भी अरुण जेटली की कार्यशैली के मुरीद नहीं रहे, क्योंकि उन्होने क्रिकेट की बजाय चापलूसों के लिए काम किया। अतः वह अपने नाम पर स्थापित स्टैंड से अपना नाम हटाने का आग्रह कर रहे हैं।
तारीफ की बात यह है कि बेदी ने स्वर्गीय अरुण जेटलीके बेटे रोहन जेटली को पत्र लिख कर अपनी मंशा ज़ाहिर की है, जोकि डीडीसीए के अध्यक्ष हैं। बेदी ने अपपने पत्र में स्थानीय इकाई में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद पर भी नाराजगी व्यक्त की और साथ ही सदस्यता भी छोड़ दी है।
देखा जाए तो बेदी और विवादों का लंबा रिश्ता रहा है। पिछले तीस-चालीस सालों में उनके और डीडीसीए के बीच अनेकों बार विवाद हुए। कई मौके आए जब उन्होने भूख हड़ताल तक कर डाली लेकिन उनकी बातों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया। कुछ एक अवसरों पर पूर्व सांसद और क्रिकेटर कीर्ति आज़ाद उनके साथ रहे और दोनों ने स्थानीय इकाई के कारनामों को एक्सपोज करने का भरसक प्रयास किया।
हालाँकि उनके आरोपों को दिल्ली की क्रिकेट के माई बापों ने कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। अरुण जेटली की प्रतिमा को स्थापित करने के मुद्दे पर उनके समर्थन में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। डीडी सी ए के विरुद्ध तमाम लड़ाइयों में उनका साथ देने वाले कीर्ति आजाद ने एक बार फिर उन्हें समर्थन देने की घोषणा की है।
बेदी कहते हैं कि दुनियाभर में महान खिलाड़ियो को उनके देश के स्टेडियमों में जगह दी गई है। यही वह सही जगह है जहाँ उनके पुतले और प्रतिमाएँ सही संदेश देते हैं। लेकिन एक नेता और सांसद की मूर्ति को स्टेडियम में लगाना ठीक नहीं है। उन्होने डब्ल्यूजी ग्रेस, डान ब्रैडमैन, गैरी सोबर्स और शेन वार्न के उदाहरण देकर कहा कि इन महान खिलाड़ियों को उनके देश के स्टेडियियामो में जगह दी गई है जहाँ देश विदेश के खिलाड़ी उनसे प्रेरणा लेते हैं।
यह सच है कि बेदी और अरुण जेटली की कभी नहीं पटी। उनके बीच स्थानीय क्रिकेट और खिलाड़ियों के चयन को लेकर कई बार विवाद पनपे। तब भाजपा सांसद कीर्ति आज़ाद भी उनके साथ थे। जेटली 1999 से 2013 तक 14 साल डीडीसीए के अध्यक्ष रहे। देर से ही सही लेकिन जेटली के जाने के बाद 2017 में बेदी और मोहिंदर अमरनाथ की याद आई और उनके नाम पर स्टैंड्स का नामकरण किया गया।
देश के कुछ जाने माने क्रिकेटर और अन्य खिलाड़ियों एवम् कोचों को बेदी का गुस्सा सही लगता है। उनका मानना है कि जब हॉकी के जादूगर ध्यान चन्द की प्रतिमा संसद भवन के प्रांगण में नहीं लगाई गई तो किसी नेता का खेल मैदान से क्या लेना देना खिलाड़ियों का मानना है कि जेटली या किसी भी नेता की मूर्ति राजनीति के गलियारों में ही शोभा देती है। उनके अनुसार तमाम स्टेडियमों में दादा ध्यान चन्द, रूप सिंह, रहीम साहब, मेवा लाल, पीके बनर्जी, सरदार बलबीर सिंह, सुरजीत सिंह और अन्य महान खिलाड़ियों की प्रतिमाएँ लगाना श्रेयकर रहेगा।
Bedi saab ki baat mei dum hai…Rajnetao ki partimma unkei parisar mei lagani chhaiyei….staduimo mei khiladio ka adhikarr rehnei do!!!!