क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
सूत्रों की मानें तो पीएमओ की नाराजगी के बाद ही ली- निंग को टोक्यो एशियाई खेलों के प्रायोजक -ब्रांड से हाथ धोना पड़ा है। दो दिन पहले ही खेल मंत्री किरण रिजिजू ने एक समारोह में चीन की खेलों की पोशाक निर्माता कंपनी ली-निंग की पोशाक लांच की थी।
इस अवसर पर आईओए अध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र बत्रा और महा सचिव राजीव मेहता भी मौजूद थे। लेकिन जैसे जैसे ओलंपिक नजदीक आ रहा है खेल मंत्रालय और आईओए के बीच तनातनी बढ़ रही है। पता चला है कि लंबे समय से एक राय पर काम करने वाले दोनों धड़ों के बीच ब्रांड का मसला खटास का कारण बन गया है।
खेल मंत्रालय कह रहा है कि ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ी, कोच और सहयोगी स्टाफ ब्रांड वाली कोई पोशाक नहीं पहनेंगे। उनकी किट पर बस ‘इंडिया’ लिखा होगा। उधर आईओए अपना कोई लोकल स्पांसर खोज रहा है और कह रहा है कि इस महीने के अंत तक कोई न कोई स्पांसर मिल जाएगा।
खैर ,खेल मंत्रालय और आईओए के बीच तनातनी की कहानी वर्षों पुरानी है। हर ओलंपिक से पहले इस प्रकार की दिखावे की लड़ाइयां हमेशा से होती आई हैं। फिलहाल, बाजी आईओए के हाथ में है, जिसने चीनी कंपनी की पोशाक लांच किए जाने के चंद घंटे बाद ही बयान जारी कर दिया कि देशवासियों की भावनाओं की कद्र करते हुए ली-निंग को मुख्य प्रायोजक से हटाया जा रहा है। डॉक्टर बत्रा और सचिव राजीव मेहता ने मौके पर चौका जमा कर खेल मंत्रालय की मुश्किलें तो बढा ही दी हैं , साथ ही खेल मंत्रालय को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।
सवाल यह पैदा होता है कि जब भारत में चीनी सामान का बायकॉट किया जा रहा है, चीनी कंपनियों के साथ व्यापार और व्यवहार पर प्रतिबंध लगा है और खुद पीएमओ आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान की राह पर चल रहा है तो फिर खेल मंत्रालय से क्यों कर चूक हुई? क्यों खेल मंत्री उस समारोह का हिस्सा बने जिसमें टोक्यो ओलंपिक के लिए भारतीय पोशाक घोषित की गई। सीधा सा मतलब है कि भारतीय भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई।
क्या खेल मंत्रालय और उसके वरिष्ठ अधिकारियों को पहले से पता नहीं था कि भारतीय ओलंपिक दल को चीनी कंपनी के रहमो करम पर लत्ते- कपड़े दिए जा रहे हैं? जब देशवासियों ने आवाज बुलंद की तब जाकर पीएमओ की नाराजगी पर खेल मंत्रालय की नींद टूटी और खेल मंत्री को अपनी भूल का अहसास हुआ। जब चीन के साथ भारत का छत्तीस का आंकड़ा है तो फिर उसके साथ हर प्रकार के संबंध तोड़ लेना ही बेहतर है।
यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि हर छोटे बड़े मामले को निपटाने के लिए पीएमओ का मुंह ताकना ठीक नहीं है। खेल मंत्रालय का अपना वजूद है। उसे न सिर्फ खिलाड़ियों का हित सोचना है, देशवासियों की भावनाओं को भी समझना होगा। ऐसे में बेहतर यही रहेगा कि मंत्रालय और आईओए विवेक से काम लें।