women`s day special

महिला दिवश पर विशेष: महिला खिलाड़ियों को बधाई, बचेंद्री और उषा का अनुसरण करें!

क्लीन बोल्ड / राजेंद्र सजवान

खेल जगत में भारतीय महिलाओं के योगदान की चर्चा तब तक संपूर्ण नहीं कही जा सकती जब तक देश की दो शीर्ष महिलाओं बचेंद्री पाल और पीटी उषा का उल्लेख नहीं किया जाता। तारीफ की बात यह है कि दोनों ने वर्ष 1984 में अपने जीवन की श्रेष्ठ उपलब्धि अर्जित की थी। 23 मई को जब बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया तो पूरा देश खुशी से झूम उठा था।

हालाँकि जापान की जुन्को तबै विश्व की पहली एवरेस्ट चढ़ने वाली महिला थीं। उत्तरकाशी के नाकुरी गाँव की बचेंद्री के बाद केरला एक्सप्रेस के नाम से विख्यात उड़ान परी पीटी उषा ने लास एंजेल्स ओलम्पिक में धमाल मचा दिया। 100 मीटर बाधा दौड़ में जब उषा सेकंड के सौवें हिस्से से चौथे स्थान पर रही तो खेल जगत ने उसे विजेताओं जैसा सम्मान दिया। ख़ासकर, अपने देश भारत ने उसके प्रदर्शन को सर माथे लिया।

यूँ तो ओलंपिक में चौथा स्थान पाने वाले और भी भारतीय खिलाड़ी रहे हैं लेकिन उषा इसलिए महानतम मानी जाती हैं क्योंकि एथलेटिक जैसी स्पर्धा में ऐसा कमाल बहुत कम देखने को मिलता है। उसने देश के लिए एशियाई खेलों और एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदकों की ढेर लगाकर अपने नाम के साथ कई सम्मान और कीर्तिमान जोड़े।

उधर बचेंद्री पाल एवरेस्ट चढ़कर संतुष्ट नहीं हुई। उन्होने कई बड़े पर्वतों, रेगिस्तानों और दुर्गम रास्तों को पार कर रिकार्ड बनाए। फिर वह 1993 में इंडो-नेपाल महिला दल का नेतृत्व कर एवरेस्ट अभियान पर निकली और आठ विश्व कीर्तिमानों के साथ वापस लौटीं। तब उनके दल की सात महिलाएँ एवरेस्ट चढ़ने में सफल रहीं। उनके साथ और उनके बाद संतोष यादव, प्रेम लता अग्रवाल, अरुणिमा सिन्हा, और कई अन्य साहसी महिलाएँ कामयाबी के साथ एवेरेस्ट चढ़ कर लौटीं|

इसमे दो राय नहीं कि भारत में बहुत कम महिलाएँ हुई हैं जिन्होने खेलों और साहसिक खेलों में रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन कर अपना नाम इतिहास पुस्तिकाओं में दर्ज कराया है। चूँकि आठ मार्च को विश्व महिला दिवस के रूप में याद किया जाता है इसलिए हमारा डायत्व बनता है कि हम देश की कामयाब और विश्व स्तर पर नाम कमाने वाली खेल हस्तियों को याद कर भावी पीढ़ी को उनके जीवन दर्शन से प्रेरणा लेने को कहें|

जहाँ तक अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बात है तो इस दिन की शुरुआत 1908 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर के एक महिला मजदूर आंदोलन से हुई और तत्पश्चात यह दिन हर साल मनाया जाने लगा। अर्थात महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए यह दिन मनया जाता है। खेलों में भारतीय महिलाओं की सफलता और उपलब्धियों की बात करें तो खेलों के महाकुंभ ओलम्पिक में मात्र चार महिला खिलाड़ी ही पदक जीत पाई हैं।

सबसे पहला ओलम्पिक पदक जीतने का श्रेय वेट लिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी के नाम जाता है, जिसने 2000 के एथेंस खेलों में कांस्य पदक के साथ भारतीय महिलाओं का ख़ाता खोला। इस कामयाबी को बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल, मुक्केबाज़ मैरीकाम, पहलवान साक्षी मलिक और बैडमिंटन चैम्पियन पीवी सिंधु ने आगे बढ़ाया।

एथलेटिक, पर्वतारोहण, कुश्ती, हॉकी, बैडमिंटन, टेनिस, वेट लिफ्टिंग, मुक्केबाजी, टेबल टेनिस आदि खेलों के अलावा अन्य खेलों में भी भारतीय महिलाएं प्रगति कर रही हैं। उम्मीद है कि एक दिन वे भारतीय पुरुषों को भी पीछे छोड़ देंगी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *