क्लीन बोल्ड /राजेंद्र सजवान
Youth Affairs and Sports Ministry of India, Indian Olympic Association – कुछ माह पहले तक देश का खेल मंत्रालय और भारतीय ओलंपिक संघ दावे करते फिर रहे थे कि टोक्यो ओलंपिक में भारत कम से कम दस पदक जीतेगा। ख़ासकर, खेल मंत्रालय तो यहाँ तक डींगे हांकने लगा था कि भारत खेल महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ चला है। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा तमाम खेल संघों की मान्यता रद्द किए जाने के बाद से खेल मंत्रालय, आईओए और खेल संघों के सुर बदल गए हैं। यहाँ तक कहा जाने लगा है कि अब अपने खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद ना करें।
यह सही है कि जब तक कोर्ट द्वारा खेल संघों को हरी झंडी नहीं दिखाई जाती और सभी खेलों को बहाल नहीं किया जाता, खेल गतिविधियाँ और ओलंपिक तैयारियाँ प्रभावित होंगी। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि यह नौबत आई ही क्यों? क्यों देश के तमाम खेल संघों की अक्ल ठिकाने लगाने की जरूरत आन पड़ी?अयोग्यता सर्टिफिकेट देने का सीधा सा मतलब है कि लोकतांत्रित व्यवस्था का मखौल उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई|
पिछले कई सालों से देश के खेल संघों की अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को लेकर काफ़ी कुछ कहा जाता रहा है। आज़ादी के बाद से हमारे खेल नेताओं और अफ़सरशाहों के गुलाम बन कर रह गए। लोकतांत्रिक व्यवस्था का नाम लेकर खिलाड़ियों और खेलों को छला जाता रहा है। नतीजा सामने है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश खेलों में फिसड्डी बन कर रह गया है। नियम क़ानून और शासन प्रशासन नाम की चीज़ कहीं नज़र नहीं आते। भले ही चीन हमारा दुश्मन है लेकिन चीन ओलंपिक दर ओलंपिक रिकार्ड बना रहा है और हमारी हालत किसी से छिपी नहीं है।
देश के खेल प्रेमी और खेल जानकार झूठे दावों और बदहाल खेलों से बेहद दुखी हैं और चाहते हैं कि सभी खेलों को तब तक मुक्त ना किया जाए जब तक उनमें बैठे भ्रष्ट खेल आकाओं, अवसरवादी नेताओं और अधिकारियों को निकाल बाहर ना किया जाए| सभी खेलों का शुद्धीकरण ज़रूरी है। ऐसा तब ही हो पाएगा जब खेल संघों के खातों की गंभीरता से जाँच की जाए, पारदर्शी बनाया जाए और अधिकारी जवाबदेह हों। यदि यह सब करने के लिए एक ओलंपिक की कुर्बानी भी देनी पड़े तो कोई बात नहीं। वैसे भी हमने ओलंपिक में अब तक कौन से तीर चलाए हैं!
Good article. High time to take concrete steps.