ओलम्पिक गोल्ड जीते, तो 1964 जैसा करिश्मा होगा!

  • 1964 के टोक्यो ओलम्पिक में पाकिस्तान को हराकर सातवां स्वर्ण पदक भारतीय हॉकी की शान के अनुरूप था, क्योंकि 1980 के मॉस्को ओलम्पिक में अमेरिकी खेमें ने बॉयकॉट किया था
  • मॉस्को ओलम्पिक कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिहाज से आधा-अधूरा रहा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे मजबूत हॉकी राष्ट्र नहीं खेले थे
  • साठ साल बाद एक बार फिर भारतीय हॉकी ओलम्पिक स्वर्ण जीतने का दम भर रही है और टीम को लेकर हमेशा की तरह वही माहौल बनाया जा रहा है, जैसा कि हर ओलम्पिक से पहले बनाया जाता है
  • टीम के हाल के कुछ प्रदर्शनों पर सरसरी नजर डालें तो ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, हॉलैंड, जर्मनी, जैसे देश भारतीय हॉकी को चोट पहुंचा सकते हैं
  • भारतीय हॉकी टीम के सामने पहली चुनौती टोक्यो ओलम्पिक 2020 में जीते कांस्य पदक बरकरार रखने की है और यदि वो खिताब जीती तो साठ साल पुरानी याद ताजा हो सकती है

राजेंद्र सजवान

इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय हॉकी टीम ने ओलम्पिक में सबसे ज्यादा कामयाबी पाई है। आठ ओलम्पिक स्वर्ण पदक भारत के स्वर्णिम इतिहास के गवाह हैं। लेकिन हॉकी के जानकारों और इस खेल की गहरी समझ रखने वाले भारत के आठवें ओलम्पिक स्वर्ण को ज्यादा भाव नहीं देते हैं। कारण, 1980 के मॉस्को ओलम्पिक में अमेरिकी खेमें के बॉयकॉट के चलते प्रमुख हॉकी राष्ट्रों ने भाग नहीं लिया था। भारत ने हॉकी फाइनल में स्पेन को हराकर अपना आठवां ओलम्पिक स्वर्ण हासिल किया था। अर्थात् 1964 के टोक्यो ओलम्पिक में पाकिस्तान को हराकर सातवां स्वर्ण पदक भारतीय हॉकी की शान के अनुरूप था।

   मॉस्को ओलम्पिक का साठ देशों ने बॉयकॉट किया था, जिस कारण कड़ी स्पर्धा के लिहाज से ये ओलम्पिक आधा-अधूरा रहा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे मजबूत हॉकी राष्ट्रों ने भाग नहीं लिया था। अर्थात् 1964 में चरणजीत सिंह की कप्तानी वाली टीम आखिरी मजबूत चैम्पियन थी (हालांकि 1975 की विश्व विजेता के नाम बड़ा रिकॉर्ड है)। उस टीम में शंकर लक्ष्मण, गुरबक्स, पृथीपाल, हरबिंदर सिंह, बलबीर सिंह, जैसे बड़े नाम शामिल थे। इस ऐतिहासिक जीत के बाद भारतीय हॉकी ने कोई बड़ा करिश्मा नहीं किया। साठ साल बाद एक बार फिर भारतीय हॉकी ओलम्पिक स्वर्ण जीतने का दम भर रही है।

   फिलहाल भारत में हॉकी टीम को लेकर हमेशा की तरह वही माहौल बनाया जा रहा है, जैसा कि हर ओलम्पिक से पहले बनाया जाता है। टीम प्रबंधन, खिलाड़ी और कोच एक बार फिर ओलम्पिक ‘गोल्ड’ जीतने का दम भर रहे हैं। क्या अपनी टीम में दम है या यूं ही धूल में लट्ठ चला रहे हैं। हाल के कुछ प्रदर्शनों पर सरसरी नजर डालें तो ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, हॉलैंड, जर्मनी, जैसे देश भारतीय हॉकी को चोट पहुंचा सकते हैं। भले ही अपनी मेजबान में हमने कुछ एक अप्रत्याशित परिणाम निकाले हैं लेकिन ओलम्पिक में ज्यादातर टीमें गुप्त अस्त्र-शस्त्र के साथ उतरती हैं और हैरान करने वाला प्रदर्शन कर गुजरती हैं। जहां तक भारत की बात है तो ओलम्पिक में प्रवेश धमाके और दावों के साथ होता है लेकिन नतीजे अच्छे नहीं निकल पाते। हालांकि कोरोना प्रभावित टोक्यो ओलम्पिक में हम कांस्य पदक जीत कर लौटे लेकिन पेरिस में हर देश अपने पूरे दमखम से उतरेगा।

   हालांकि भारतीय हॉकी टीम हमेशा की तरह सोने का पदक जीतने का दम भर रही है लेकिन उसके सामने पहली चुनौती कांस्य पदक बरकरार रखने की है। यदि खिताब जीते तो साठ साल पुरानी याद ताजा हो सकती है।

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