- महिला हॉकी टीम पेरिस का टिकट हासिल नहीं कर पाई है, हालांकि उसके पास एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर सीधे क्वालीफाई करने का मौका था, जो कि हाथ से फिसल गया
- पुरुष टीम ने ग्वांगझू में स्वर्ण जीता और टिकट पा लिया और वो अब भारतीय हॉकी के लिए मात्र एक ओलम्पिक की उम्मीद बची है
- पुरुष हॉकी फिलहाल ठीक-ठाक चल रही है, लेकिन जो टीम एफआईएच रैंकिंग चौथे स्थान पर है जबकि महिलाएं सातवें से नौवें स्थान पर लुढ़क गई हैं
- जैसे कि हर ओलम्पिक से पहले होता है कि हमारी पुरुष टीम कुछ बड़ी प्रतिद्वंद्वियों को हरा रही है लेकिन यह ना भूलें कि अन्य देश ओलम्पिक से पहले अपने पत्ते नहीं खोलते हैं
राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीमों के शानदार प्रदर्शन के बाद हॉकी इंडिया और भारतीय हॉकी के कर्णधारों ने पेरिस ओलम्पिक के लिए बड़े-बड़े सपने सजाने शुरू कर दिए थे। कोरोना प्रभावित ओलम्पिक में पुरुष टीम कांस्य पदक जीतने में सफल रही थी, जबकि महिला टीम ने चौथा स्थान अर्जित किया था। इस प्रदर्शन को देश के हॉकी पंडितों और प्रचार माध्यमों ने अभूतपूर्व बताकर हॉकी प्रेमियों की उम्मीदें बढ़ा दी थीं। लेकिन अगला ओलम्पिक सिर पर खड़ा है और हॉकी जानकार कोई भी दावा करने की स्थिति में नहीं है।
जैसा कि विदित है कि महिला हॉकी टीम पेरिस का टिकट हासिल नहीं कर पाई है। उसके पास एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर सीधे क्वालीफाई करने का मौका था, जो कि हाथ से फिसल गया। पुरुष टीम ने ग्वांगझू में स्वर्ण जीता और टिकट पा लिया। अर्थात् अब भारतीय हॉकी के लिए मात्र एक ओलम्पिक की उम्मीद बची है। जहां तक महिलाओं की बात है तो टोक्यो ओलम्पिक के बाद उनसे बड़ी उम्मीदें बांधी गई थी। कुछ बड़बोलों ने तो यहां तक कह दिया कि 2024 के ओलम्पिक में महिला टीम स्वर्ण जीत कर लौटेगी।
पुरुष हॉकी फिलहाल ठीक-ठाक चल रही है, लेकिन जो टीम एफआईएच रैंकिंग तीसरे स्थान पर थी, वो अब चौथे स्थान पर है जबकि महिलाएं सातवें से नौवें स्थान पर लुढ़क गई है। पुरुष रैंकिंग नीदरलैंड, बेल्जियम और जर्मनी शीर्ष तीन स्थानों पर हैं। भारत के बाद ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, अर्जेंटीना, स्पेन, फ्रांस और न्यूजीलैंड का नंबर है। महिला रैंकिंग में भी नीदरलैंड टॉप पर है। तत्पश्चात अर्जेंटीना, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, बेल्जियम, स्पेन, चीन आते हैं। भारत नौवें और जापान दसवें स्थान पर है।
फिलहाल महिला टीम की चर्चा का कोई औचित्य नहीं है। वैसे भी जो टीम महाद्वीप में अव्वल नहीं है और चीन व अमेरिका से पिट रही हो, उस पर पन्ने काले करना तर्क संगत नहीं होगा। रही पुरुषों की बात तो सबकुछ वैसा ही चल रहा है, जैसा कि हर ओलम्पिक से पहले होता है। हमारी टीम कुछ बड़ी प्रतिद्वंद्वियों को हरा रही है। कोच, खिलाड़ी, अधिकारी सभी आशावान हैं। कुछ एक तो पेरिस जीतने का दम भी भर रहे हैं।
इतना तय है कि नीदरलैंड, जर्मनी, बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया से निपटना हमेशा की तरह मुश्किल होगा। चैम्पियन बनने के लिए लगातार सुधरे और सधे प्रदर्शन की जरूरत है। यह ना भूलें कि अन्य देश ओलम्पिक से पहले अपने पत्ते नहीं खोलते हैं, जबकि भारतीय टीम अपनी पूरी ताकत झोंक चुकी होती है। देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है!