भ्रूण हत्या भारतीय खेलों का अभिशाप!

  • आम तौर पर भारतीय खिलाड़ी दस बारह साल की उम्र में खेल मैदानों, तरणतालों और फुटबॉल मैदानों में उतर पाते हैं
  • दूसरी तरफ तरफ चीन, जापान, यूरोपीय देशों में मां-बाप अपने बच्चों को चार-पांच साल की उम्र में खेलों से पूरी तरह जोड़ते हैं और कई तैराक, जिमनास्ट उस उम्र में ओलम्पिक और वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ डालते हैं जिस उम्र में भारतीय पहला सबक भी ढंग से नहीं सीख पाते
  • अधिकांश खेलों में 14, 17, 19 साल तक के आयु वर्ग में तीन-चार साल बड़े मर्द प्रवेश कर जाते हैं और इस अवैध घुसपैठ का सबसे बुरा परिणाम यह होता है कि वास्तविक हकदार खिलाड़ी खेल से नाता तोड लेते हैं और घुसपैठिए अंदर दाखिल हो जाते हैं
  • उम्र का यह फर्जीवाड़ा लगभग हर खेल में चल रहा है और इसलिए अधिकांश खेलों में प्रगति की रफ्तार थम गई है

राजेंद्र सजवान

अक्सर पूछा जाता है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र खेलों में पिछड़ा क्यों है? क्यों हमारे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाते? क्यों आबादी में सबसे बड़े देश होने के बावजूद भारत के खिलाड़ी कुछ एक लाख या करोड़ की आबादी वाले देशों के सामने घुटने टेक देते हैं?

   खेल जानकारों, विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सकों से पूछने पर जवाब मिलता है कि ‘भ्रूण हत्या’ भारतीय खेलों का सबसे बड़ा अभिशाप है।  बेशक, यह बात किसी के गले नहीं उतरेगी। आखिर भ्रूण हत्या कैसे खेलों को प्रभावित कर सकती है? यह सवाल वाजिब है लेकिन यहां भ्रूण के मायने वे खिलाड़ी हैं जोकि छोटी उम्र या ग्रासरूट स्तर पर ही मैदान से हट जाते हैं या हटा दिए जाते हैं।

   देर से ही सही भारत में खेलों को पिछले कुछ सालों से गंभीरता से लिया जा रहा है। खासकर, छोटी उम्र के खिलाड़ियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस दौड़ में अमेरिका, चीन, जापान, रूस, जर्मनी आदि देश भारत से बहुत आगे चल रहे हैं। इन देशों ने सालों पहले छोटी उम्र के खिलाड़ियों को सिखाने-पढ़ाने का सिलसिला शुरू कर दिया था जबकि भारत में शिक्षण प्रशिक्षण की तरफ बहुत देर से ध्यान दिया गया। यह भी सही है की खेल के अग्रणी देशों ने खिलाड़ियों की फौजें तैयार करने की बजाय उनकी क्वालिटी पर ध्यान दिया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन देशों ने सही उम्र के खिलाड़ियों को तलाशा, तराशा और उन्हें चैम्पियन बनने के गुर सिखाए। आगे चल कर उनके सैकड़ों खिलाड़ी ओलम्पिक और वर्ल्ड चैम्पियन बने।  

   इधर भारत में भी वक्त बदला, खेलों के प्रति सोच बदली और खेलों को गंभीरता से लिया जाने लगा। लेकिन भारतीय खेलों के कर्णधारों, खेल संगठनों, अधिकारियों, स्कूलों और अभिभावकों ने छोटे-छोटे लालच नहीं त्यागे। आम तौर पर भारतीय खिलाड़ी दस बारह साल की उम्र में खेल मैदानों, तरणतालों और फुटबॉल मैदानों में उतर पाते हैं। दूसरी तरफ तरफ चीन, जापान, यूरोपीय देशों में मां-बाप अपने बच्चों को चार पांच साल की उम्र में खेलों से पूरी तरह जोड़ते हैं और कई तैराक, जिमनास्ट उस उम्र में ओलम्पिक और वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ डालते हैं जिस उम्र में भारतीय खिलाड़ी पहला सबक भी ढंग से नहीं सीख पाते। लेकिन भारतीय खेलों की समस्या सिर्फ देर से करियर शुरू करने की नहीं है। सबसे घातक है बड़ी उम्र के खिलाड़ियों का चार-पांच साल छोटी उम्र वालों के बीच उतरना और उन्हें कुचलना।

   अक्सर देखा गया है कि अधिकांश खेलों में 14, 17, 19 साल तक के आयु वर्ग में तीन-चार साल बड़े मर्द प्रवेश कर जाते हैं। इस अवैध घुसपैठ का सबसे बुरा परिणाम यह होता है कि वास्तविक हकदार खिलाड़ी खेल से नाता तोड लेते हैं और घुसपैठिए अंदर दाखिल हो जाते हैं। उम्र का यह फर्जीवाड़ा लगभग हर खेल में चल रहा है। नतीजन अधिकांश खेलों में प्रगति की रफ्तार थम गई है।  यह भ्रूण हत्या नहीं तो और क्या है?

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