….क्योंकि हॉकी अब पूरे भारत का खेल नहीं रही

  • हॉकी इंडिया में चल रहे उत्पात और वर्तमान टीम के बारे में जब कुछ पूर्व ओलम्पियनों, द्रोणाचार्य और अर्जुन अवार्डियों से बात की गई, तो अधिकतर ने अनभिज्ञता जाहिर की
  • उनके अनुसार अब हॉकी भुवनेश्वर, रांची और बेंगलुरू तक सिमट कर रह गई है और ओडिशा ने जब से हॉकी टीम को गोद लिया है, बाकी वो देश से कट गई है
  • ऐसा इसलिए क्योंकि अब हॉकी के छोटे-बड़े आयोजन दिल्ली, पंजाब, मुम्बई, कर्नाटक आदि प्रदेशों की बजाय दो-तीन शहरों तक सिमट गए हैं

राजेंद्र सजवान

भारतीय हॉकी में मचे घमासान के बारे में भले ही आम हॉकी प्रेमी अनभिज्ञ है लेकिन हॉकी इंडिया की छलनी से छिटक कर आ रही खबरों से यह तो पता चल ही गया है कि हॉकी ने फिर से बर्बादी और गुमनामी की राह पकड़ ली है। हाल ही में ऐसा बहुत कुछ हुआ है, जिसे लेकर एक बार फिर से हॉकी पर से विश्वास उठने लगा है।

   टोक्यो ओलम्पिक में जीते कांस्य पदक को एक तरफ कर दें तो 1980 के मॉस्को ओलम्पिक के बाद से भारतीय हॉकी ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है। थोड़ा पीछे चले तो 1975 में हम विश्व विजेता बने थे। तत्पश्चात ओलम्पिक और विश्व कप में भारतीय हॉकी की नाकामी की बड़ी कहानी रही है। लगातार विफलता से एक बड़ा नुकसान यह हुआ है कि देश के हॉकी प्रेमियों की तादाद लाखों-करोड़ों से घट कर कुछ एक हजार भी नहीं रह गई है। हैरानी वाली बात यह है कि भारतीय हॉकी में बड़ी कामयाबी पाने वाले भी वर्तमान हॉकी प्रशासन, अधिकारियों, कोचों और खिलाड़ियों के बारे में जानकारी नहीं रखते।

   हॉकी इंडिया में चल रहे उत्पात और वर्तमान टीम के बारे में जब कुछ पूर्व ओलम्पियनों, द्रोणाचार्य और अर्जुन अवार्डियों से बात की गई, तो अधिकतर ने अनभिज्ञता जाहिर की। उनके अनुसार अब हॉकी भुवनेश्वर, रांची और बेंगलुरू तक सिमट कर रह गई है। ओडिशा ने जब से हॉकी टीम को गोद लिया है, बाकी वो देश से कट गई है। ज्यादातर पूर्व खिलाड़ी भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम के खिलाड़ियों के नाम तक नहीं जानते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अब हॉकी के छोटे-बड़े आयोजन दिल्ली, पंजाब, मुम्बई, कर्नाटक आदि प्रदेशों की बजाय दो-तीन शहरों तक सिमट गए हैं।

   अस्सी-नब्बे के दशक तक सक्रिय रहे खिलाड़ी और कोच कहते हैं कि तब देश के लगभग बीस संस्थानों और क्लबों के खिलाड़ियों के नाम हॉकी प्रेमियों को जुबानी याद थे, क्योंकि तब हॉकी पूरे देश का खेल हुआ करती थी। पंजाब पुलिस, सिख रेजीमेंट सेंटर, रेलवे, एअर इंडिया, भारत पेट्रोलियम, ऩॉर्दर्न रेलवे, और अनेकों टीमों के सभी खिलाड़ियों से पूरा देश परिचित था। आज राष्ट्रीय टीम के चार खिलाड़ियों को भी बहुत कम जानते हैं। नतीजा सामने है। भारतीय हॉकी खोखले दावों तक सिमट कर रह गई है। आने वाले दिनों में हालात बद से बदतर हो सकते हैं, क्योंकि तथाकथित राष्ट्रीय खेल का कोई खैरख्वाह नहीं रहा। हैरानी वाली बात यह है कि जिनकी पहचान हॉकी के दम पर है, उन्हें अब अपना खेल बेदम नजर आ रहा है।

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