क्यों जरूरी है मार्शल आर्ट्स खेलों का पोस्टमार्टम

  • क्योंकि भारत में ज्यादातर मार्शल आर्ट्स खेल लूट-खसोट के लिए कुख्यात हैं
  • अधिकांश मार्शल आर्ट्स खेल साल में 365 से भी ज्यादा, राष्ट्रीय चैम्पियनशिप और अंतरराष्ट्रीय आयोजन कर डालते हैं

राजेंद्र सजवान 

इसमें दो राय नहीं कि भारत में क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल है। फुटबॉल और हॉकी का नंबर दूसरा-तीसरा हो सकता है। लेकिन यदि खेल में भागीदारी के आधार पर श्रेष्ठता क्रम बनाया जाए तो मार्शल आर्ट्स खेल नंबर एक पर हैं।  यह आकलन बहुत से लोगों के गले शायद ही उतरे लेकिन देशभर में आयोजित होने वाले मार्शल आर्ट्स खेलों की राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं पर नजर डालें तो बाकी खेल कहीं नहीं ठहरते। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादातर मार्शल आर्ट्स खेल आत्मरक्षा के झूठे नारे की तर्ज पर खेले जा रहे हैं।

  स्कूल स्तर पर इन खेलों का चलन अन्य खेलों के मुकाबले रिकॉर्ड तोड़ कहा जा सकता है। विद्यार्थी, माता पिता, स्कूल प्रशासन सभी इन खेलों में गहरी रुचि लेते हैं। खिलाड़ी और उसके अभिभावकों को होश तब आता है जब उनका बच्चा किसी भी खेल में देश के काम नहीं आ पाता। भले ही वह राज्य, राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर अनेक पदक जीत लेता है लेकिन एशियाई खेलों, कामनवेल्थ खेलों और ओलम्पिक में नहीं खेल पाता। जानते हैं, ऐसा क्यों है? इसलिए क्योंकि भारत में ज्यादातर मार्शल आर्ट्स खेल लूट-खसोट के लिए कुख्यात हैं।

हर खेल में अवसरवादी, भ्रष्ट और लुटेरे जमे बैठे हैं, जो कि कभी मिलकर और ज्यादातर अलग-अलग दुकानें सजा कर लूटते हैं। नतीजा सामने है। चीन के ग्वानझाऊ शहर में आयोजित होने वाले एशियाई खेलों में शामिल आधा दर्जन खेलों में चीख पुकार मची है। कारण, ज्यादातर खेलों में दो या ज्यादा धड़े अस्तित्व में हैं। कुछ खेलों में तो तीन- चार गुट अपना-अपना दावा उछालते फिर रहे हैं। चूंकि खेल मंत्रालय, आईओए और निक्कमे खेल संघ पूरी तरह फेल हो चुके हैं। उनके पास खेल संघों के निपटारे का कोई फॉर्मूला नहीं बचा इसलिए ज्यादातर मामले कोर्ट में चल रहे हैं।

   यूं तो अपने देश में अनेकों मार्शल आर्ट्स खेल चलन में हैं लेकिन कराटे, तायकवांडो, जूडो, वुशु, कुराश, जी जुत्सु, किक बॉक्सिंग और कुछ अन्य खेल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकाधिक खेले जाते हैं। इस कड़ी में एकिडो, हैपकिडो, मय थाई, जैसे खेल भी शामिल हैं, जिनमें खिलाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राज्य और राष्ट्रीय चैम्पियनशिप भी बढ़ी हैं। एक अनुमान के अनुसार अधिकांश खेल साल में 365 से भी ज्यादा, राष्ट्रीय  चैम्पियनशिप और अंतरराष्ट्रीय आयोजन कर डालते हैं। आयोजकों को किसी की मान्यता की जरूरत नहीं पड़ती। कोई भी, कहीं भी कुछ भी कर गुजरता है।

   हाल ही में दिल्ली में आयोजित सीएमए  मार्शल आर्ट्स गौरव समारोह में देश के जाने माने मास्टरों और विशेषज्ञों से बातचीत का अवसर मिला, जिसमें फिल्म स्टार सुमन तलवार, लाल दर्दा, आर गणेश, जिमी जगतियानी, हनुमंता राव, संजीव कुमार, दयाचंद भोला, विकी कपूर, नरेंद्र सिंह रावत, विनय जोशी, योगेश साद, विक्रम थापा, रवि लालवानी साई दीपक आदि ने एकराय से माना कि मार्शल आर्ट्स खेलों को मुख्य धारा से जोड़ने की जरूरत है। ऐसा तब ही संभव है जब सभी खेलों के ग्रास रूट से शीर्ष तक की गंदगी को साफ किया जाए।

 

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