तो क्या एआईएफएफ और कोच ने देश को गुमराह किया?

  • खेल मंत्रालय ने आईओए और फुटबॉल फेडरेशन के साथ लंबे विचार-विमर्श के बाद फुटबाल टीमों को हरी झंडी तो दिखाई है
  • लेकिन तीन श्रेष्ठ फुटबॉलरों कप्तान व जाने-माने स्ट्राइकर सुनील क्षेत्री, रक्षापंक्ति के धुरंधर संदीप झिंगन और गोलकीपर गुरप्रीत संधू को शामिल ना करके बड़ी चूक कर दी
  • फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे, जो कि आईओए के सीईओ भी हैं देश के तीन श्रेष्ठ खिलाड़ियों का नाम कैसे भूल गए? या तो उन्हें मंत्रालय से हरी झंडी मिलने की उम्मीद नहीं थी या तीनों सीनियर खिलाड़ी किसी षड्यंत्र के शिकार हुए हैं?

राजेंद्र सजवान

वर्तमान भारतीय फुटबॉल टीम के तीन श्रेष्ठ खिलाड़ियों के नाम पूछे जाएं तो संभवतया फुटबॉल जानकार कप्तान व जाने-माने स्ट्राइकर सुनील क्षेत्री, रक्षापंक्ति के धुरंधर संदीप झिंगन और गोलकीपर गुरप्रीत संधू का नाम लेंगे। बेशक, ये खिलाड़ी टीम इंडिया की ताकत हैं और किसी एक की गैर मौजूदगी में भारतीय टीम कमजोर पड़ सकती है। लेकिन क्या इन खिलाड़ियों के दमखम और टीम में उनकी उपयोगिता के बारे में एआईएफएफ को जानकारी नहीं थी? और यदि फेडरेशन उन्हें जानती समझती है तो उनके नाम ग्वांगझोऊ  एशियाड में भाग लेने वाली टीम में शामिल क्यों नहीं किए गए? क्यों कोच इगोर स्टीमैक ने देश के फुटबॉल प्रेमियों को गुमराह किया?

  

जैसा कि विदित है कि भारतीय पुरुष  और महिला फुटबॉल टीमों को एशियाई खेलों के लिए हरी झंडी दे दी गई है। खिलाड़ियों के नाम अंतिम तिथि तक भेज दिए गए थे।  लेकिन फुटबॉल टीम को आईओए और   मंत्रालय ने देर से हरी झंडी दिखाई। भले ही कुछ खेलों में खिलाड़ियों के चयन को लेकर बवाल मचा और विवाद हुए लेकिन फुटबॉल टीम को लेकर तमाम कायदे कानूनों को ताक पर रखा गया। खेल मंत्रालय ने आईओए और फुटबॉल फेडरेशन के साथ लंबे विचार-विमर्श के बाद फुटबाल टीमों को हरी झंडी तो दिखा दी लेकिन एक बड़ी चूक कर दी, जिसे लेकर अफरा-तफरी मच गई है। जब तीन श्रेष्ठ खिलाड़ियों के नाम टीम में शामिल नहीं थे तो क्यों प्रधानमंत्री और खेल मंत्री से सिफारिश की गई?

   यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि नामों पर अंतिम मुहर किसने लगाई और फेडरेशन, आईओए और खेल मंत्रालय क्यों मौन साधे हुए हैं। कोई भी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। अब फेडरेशन अधिकारी कह रहे हैं कि वे तीन सीनियर खिलाड़ियों के नाम जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। एक भद्दा मजाक यह भी किया जा रहा है कि सीनियर खिलाड़ियों को उनके क्लब छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।  अर्थात क्लब देश से बड़े हो गए!

 

  सच तो यह है कि एशिया में 18वें नंबर की भारतीय टीम को भेजने के लिए सरकार और फेडरेशन का इरादा स्पष्ट नहीं था। पता नहीं खेल मंत्रालय का मूड कैसे बदला? आईओए अध्यक्ष पीटी ऊषा की मनाही के बावजूद फुटबॉल टीमों को भेजने का फैसला रातों-रात कैसे पलट गया?  भारत को शुरुआती दौर के मुकाबले में मेजबान चीन की ताकतवर टीम से भिड़ना है। पूल की अन्य टीमें भले ही कमजोर हैं लेकिन इन टीमों के विरुद्ध बिना सुनील के खेलना और जीतना मुश्किल हो सकता है।

झिंगन और गुरप्रीत की गैर-मौजूदगी भी खल सकती है। लेकिन फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे , जो कि आईओए के सीईओ भी हैं देश के तीन श्रेष्ठ खिलाड़ियों का नाम कैसे भूल गए? या तो उन्हें मंत्रालय से हरी झंडी मिलने की उम्मीद नहीं थी या तीनों सीनियर खिलाड़ी किसी षड्यंत्र के शिकार हुए हैं? इतना तय है कि उनके बिना काम नहीं चलने वाला। यह ना भूलें कि हमारी टीम को अपने घर पर नहीं खेलना। चीन को अपने माहौल और मैदान का लाभ तो मिलेगा अन्य टीमों के विरुद्ध भी भारतीय खिलाड़ियों को मेजबान दर्शकों की तालियां शायद ही मिलें। कुल मिलाकर नियमों को ताक पर रखने के बाद मिली एशियाड की भागीदारी एआईएफएफ के उपहास का कारण भी बन सकती है। सुनील, संदेश और गुरप्रीत के बिना चौबे की टीम का कल्याण शायद ही हो।

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