फिर शर्मसार हुई भारतीय हॉकी

पूर्व ओलम्पियन ने कहा, सडन डेथ नहीं है, इसे तिल-तिल कर मरना कहते हैं

पूर्व विश्व विजेता हॉकी टीम के खिलाड़ी के अनुसार, भारतीय हॉकी पिछले चालीस सालों से धीरे-धीरे मर रही है

12वें रैंकिंग की टीम न्यूजीलैंड ने भारतीय हॉकी को डेथ बैड पर लिटा दिया

इस हार ने टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम द्वारा जीते गए कांस्य पदक को भी धुंधला कर दिया है

भारत के लिए ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, हालैंड, जर्मनी, अर्जेंटीना जैसे शीर्ष देशों से पार पाना निरंतर मुश्किल होता जा रहा है

राजेंद्र सजवान

“सडन डेथ नहीं है, इसे तिल-तिल कर मरना कहते हैं।” न्यूजीलैंड के हाथों टाई ब्रेकर (सडन डेथ) में पराजय के बाद एक पूर्व ओलम्पियन  की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार थी। पूर्व विश्व विजेता हॉकी टीम के एक अन्य खिलाड़ी के अनुसार, भारतीय हॉकी पिछले चालीस सालों से धीरे-धीरे मर रही है। ऐसा नहीं है कि खेल को पटरी पर लाने के लिए प्रयास नहीं किए गए या खिलाड़ियों की सुख सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। सच तो यह है कि आज के हॉकी खिलाड़ियों को वो सब मिल रहा है जिसके लिए पूर्व चैम्पियन तरसते रहे थे। फिर भी नतीजा जीरो से ऊपर नहीं उठ पा रहा है तो कहीं कोई गड़बड़ जरूर है।

 

  ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’, अखबारों और टीवी चैनलों पर यह नारा कई दिनों से लगाया जाता रहा है। चूंकि मेजबानी अपनी है और अपने मैदान और दर्शकों के सामने खिलाड़ियों का मनोबल सातवें आसमान पर होना स्वाभाविक है लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आया। न्यूजीलैंड जो कि 12वें रैंकिंग की टीम है और जिसे सबसे आसान शिकार माना जा रहा था उसने भारतीय हॉकी को डेथ बैड पर लिटा दिया। कुछ अंध-भक्त इस शर्मनाक हार के बाद भी कह रहे हैं कि भारतीय खिलाड़ियों ने गजब का प्रदर्शन किया लेकिन भाग्य उनके साथ नहीं था। ऐसे हॉकी चाटुकारों को तो यही कहा जा सकता है कि अपने दिमाग का इलाज कराएं और भारतीय हॉकी के कर्णधारों के तलवे चाटना छोड़ दें।

 

  बेशक अभी नहीं तो कभी नहीं का नारा एकदम सटीक था, क्योंकि इस वर्ल्ड कप ने दिखा दिया है कि भारत हॉकी में बहुत पीछे छूट गया और आगे बढ़ने की उम्मीद भी जाती रही है। मेजबान टीम प्रबधन, कोचिंग स्टाफ और खिलाड़ियों को पता होगा कि उड़ीसा सरकार अपने खिलाड़ियों के लिए किस कदर समर्पित है। खिताब जीतने पर हर खिलाड़ि को एक-एक करोड़ देने की घोषणा हो चुकी थी लेकिन प्री-क्वार्टर में ही भारत को हार का मुंह देखना पड़ा।

 

  कुछ हॉकी प्रेमी अपनी टीम की हार पर यह कह रहे हैं कि अच्छा हुआ कि और आगे नहीं बढ़ पाए वरना ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम के खिलाड़ी भगा-भगा कर बुरा हाल कर डालते। खासकर, ऑस्ट्रेलिया का भूत कई सालों से भारतीय खिलाड़ियों को डरा-डरा कर भगा रहा है। इस हार ने टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम द्वारा जीते गए कांस्य पदक को भी धुंधला कर दिया है। कुछ आलोचक तो यहां तक कह रहे हैं कि कोरोना काल में तीर तुक्का चल गया था।

  इसमें दो राय नहीं कि भारतीय हॉकी के लिए अपनी मेजबानी में बेहतर करने और फिर से हॉकी प्रेमियों के दिल दिमाग में स्थान बनाने का सुनहरी मौका था जिसे उन्होंने गंवा दिया है। अब आगे की राह भी मुश्किल होने जा रही है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, हालैंड, जर्मनी, अर्जेंटीना जैसे देशों से पार पाना निरंतर मुश्किल होता जा रहा है।

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