भारतीय टेनिस: बस खिलवाड़ रह गया है!

  • इक्कीसवीं सदी में प्रवेश से पहले के दौर को भारतीय टेनिस का स्वर्ण युग कहा जाए तो गलत नहीं होगा
  • रामनाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, आनंद अमृतराज और रमेश कृष्णन ने महंगे और अमीरों के खेल टेनिस में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की
  • लिएंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा, सोमदेव वर्मन, रोहन बोपन्ना आदि खिलाड़ियों ने भारतीय पहचान को टेनिस कोर्ट पर जीवित रखा
  • लेकिन पिछले कुछ सालों में देश में अच्छे खिलाड़ियों की फसल लगभग चौपट हो चुकी है
  • ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन (एआईटीए) अपना काम पूरी गंभीरता से अंजाम नहीं दे रही

राजेंद्र सजवान

सानिया मिर्जा और लिएंडर पेस के कोर्ट में रहते कभी-कभार भारत का नाम टेनिस की छुट-पुट कहानियां पढ़ने-सुनने को मिल जाया करती थीं। लेकिन अब पिक्चर एकदम बदल चुकी है। ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिताओं की बात छोड़ दें तो अब हल्के-फुल्के आयोजनों में भी भारतीय भागीदारी नजर नहीं आती और अगर आती भी है तो पिट जाती है।

 

  इक्कीसवीं सदी में प्रवेश से पहले के दौर को भारतीय टेनिस का स्वर्ण युग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। रामनाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, आनंद अमृतराज और रमेश कृष्णन ने महंगे और अमीरों के खेल टेनिस में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की। तत्पश्चात लिएंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा, सोमदेव वर्मन, रोहन बोपन्ना आदि खिलाड़ियों ने भारतीय पहचान को टेनिस कोर्ट पर जीवित रखा। लेकिन पिछले कुछ सालों में देश में अच्छे खिलाड़ियों की फसल लगभग चौपट हो चुकी है। ऐसा क्यों हो रहा है? कौन जिम्मेदार है और कैसे टेनिस को फिर से पदक विजेता खेल बनाया जा सकता है?

 

  सवाल कई है और इन सब सवालों का एकमात्र जवाब यह है कि देश में टेनिस को संरक्षण देने वाली संस्था ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन (एआईटीए) अपना काम पूरी गंभीरता से अंजाम नहीं दे रही। आम खिलाड़ी, कोच और अभिभावक मानते हैं कि उभरते खिलाड़ियों के लिए प्रोत्साहन की कमी सबसे बड़ा कारण है। दूसरा, देश में अच्छे कोच भी बहुत कम हैं और सबसे बड़ा कारण यह है कि यह खेल आज भी अमीरों का खेल माना जाता है। लेकिन अमीरजादों के साथ समस्या यह है कि वे स्कूल स्तर तक ही टेनिस से जुड़े रहते हैं। उनके माता-पिता बेटे-बेटियों को टेनिस सिखाना चाहते हैं लेकिन बहुत कम बच्चे हैं जो कि चैम्पियन बनना चाहते हैं। ज्यादातर कुछ एक सालों में ही खेल छोड़ देते हैं।

 

  यह सही है कि कृष्णन पिता-पुत्र ने विश्व स्तर पर पहचान बनाई। उनकी कामयाबी को  अमृतराज परिवार ने आगे बढ़ाया। एक समय विजय अमृतराज विश्व टेनिस के महान खिलाड़ियों में शुमार थे। इस परंपरा को रमेश, लिएंडर और भूपति ने बखूबी आगे बढ़ाया। लेकिन अब भारतीय टेनिस में अच्छे खिलाड़ियों का जैसे अकाल सा पड़ गया है।

   कुछ जानकारों और खेल विशेषज्ञों के अनुसार भारत में धनाढ्य घरानों के बच्चे कुछ एक साल मौज-मस्ती के लिए खेलते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। दूसरी तरफ गरीब और साधनहीन परिवारों के बच्चे दमखम होते हुए भी सुविधाओं की कमी के चलते टेनिस को नहीं अपना पाते। लेकिन एक बड़ा वर्ग देश में टेनिस का कारोबार करने वाली टेनिस संघ और उसकी सदस्य इकाइयों को कुसूरवार मानता है, जिसने टेनिस को आम भारतीय का खेल बनाने के लिए कभी कोई सराहनीय प्रयास नहीं किया। यह आरोप भी लगाया जाता है कि भारत में यह खेल कुछ खास लोगों का और एक परिवार का खिलवाड़ बनकर रह गया है।

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