- अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने डॉ. शाजी प्रभाकरण को महासचिव पद से बेदखल किया
- सूत्रों के अनुसार शाजी को फेडरेशन के पैसों का दुरुपयोग और आय में अनियमितताओं के आरोप में बर्खास्त किया गया है
- फेडरेशन में सेंधमारी करने वालों के अनुसार, शाजी फीफा और एएफसी में बड़ी पहचान के चलते चौबे के लिए सिरदर्द बन गए थे, इसलिए चौबे ने कार्यकारिणी से राय-मशविरा किए बिना शाजी को पद से बर्खास्त कर दिया
- अध्यक्ष चौबे के इस तुगलकी फरमान को शाजी ने चुनौती देने का फैसला किया है
राजेंद्र सजवान
डॉ. शाजी प्रभाकरण अब अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के महासचिव नहीं रहे। एआईएफएफ के अनुसार उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। लगभग चौदह महीने पहले प्रभाकरण, चौबे की अध्यक्षता वाली एआईएफएफ टीम का हिस्सा बने थे। उल्लेखनीय है कि चौबे ने अध्यक्ष पद के चुनाव में भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान और राजनीति में कूद चुके बाईचुंग भूटिया को बुरी तरह से परास्त किया था। भूटिया को मात्र एक वोट मिला था।
चौबे की टीम में शाजी को महासचिव नियुक्त किया गया था। इन दोनों के बीच काफी कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। लेकिन एक-दूसरे की तारीफ के पुल बांधने वालों के बीच अचानक ऐसा क्या हो गया कि उनके रिश्तों में गहरी दरार पड़ गई। दोनों के बीच संबंध इस कदर बिगड़ गए कि अध्यक्ष कल्याण चौबे ने शाजी पर गंभीर आरोप लगाते हुए उसे पद से बर्खास्त कर दिया। आरोप यह है कि शाजी ने करोड़ों रुपये का घोटाला किया है।
हालांकि अभी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है लेकिन सूत्रों के अनुसार शाजी को फेडरेशन के पैसों का दुरुपयोग और आय में अनियमितताओं के आरोप में बर्खास्त किया गया है। हैरानी वाली बात यह है कि अभी कुछ घंटे पहले ही चौबे और शाजी ने एक सांझा बयान देकर एशियाई खेलों में भारतीय टीम के प्रदर्शन पर संतोष व्यक्त किया था। फेडरेशन की तकनीकी समिति ने माना था कि एशियाड में प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारतीय फुटबॉलर अच्छा खेले। हालांकि इस बयान को कोरी बकवास कहा गया क्योंकि तमाम नियम तोड़कर कमजोर और असंगठित टीम को ग्वांगझोउ भेजा गया था।
फेडरेशन में सेंधमारी करने वालों के अनुसार, कल्याण चौबे पर शाजी भारी पड़ रहे थे। चूंकि वे फीफा और एएफसी में बड़ी पहचान के चलते चौबे के लिए सिरदर्द बन गए थे, इसलिए चौबे ने कार्यकारिणी से राय-मशविरा किए बिना शाजी को पद से बेदखल कर दिया। उनके इस तुगलकी फरमान को शाजी ने चुनौती देने का फैसला किया है। शाजी कहते हैं कि उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ अपने पद का सम्मान किया और भारतीय फुटबॉल की बेहतरी के लिए काम किया।
एआईएफएफ के दो बड़ों के अहम की लड़ाई उस वक्त शुरू हुई है, जब भारतीय फुटबॉल अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। फीफा रैंकिंग में लगातार लुढ़कती भारतीय फुटबॉल के शीर्ष पदाधिकारियों पर भ्रष्टाचार और मनमानी के आरोप लगाए जा रहा हैं। हाल की उठा-पटक को कुछ लोग राजनीति के चश्मे से भी देख रहे हैं।