सुनील छेत्री के बगैर खेलने की आदत डाले भारतीय फुटबाल

क्लीन बोल्ड /राजेंद्र सजवान

भारतीय फुटबाल टीम के कप्तान सुनील छेत्री चोट के कारण बेहरीन और बेलारूस के विरुद्ध खेले जाने वाले फ्रेंडली मैचों में नहीं खेल पाएंगे। खबर बुरी है लेकिन कोई बात नहीं, मैच हारने-जीतने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। हाँ, इतना जरूर है कि छेत्री के नहीं खेलने के चलते यदि भारतीय टीम हार जाती है तो बना-बनाया बहाना तैयार है। अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन और उसके लाडले कोच इगोर स्टीमक तो यही कहेंगे कि छेत्री होते, तो नतीजा कुछ और होता।

खैर उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत जीत जाए, क्योंकि छेत्री की उम्र बढ़ रही है और एक दिन उसे भी संन्यास लेना है। उसके विकल्प के रूप में खिलाडियों कि खोज भी जरूरी है। लेकिन यह भारतीय फुटबाल का दुर्भाग्य है कि इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया। हम छेत्री की तुलना मेस्सी और रोनाल्डो से करते रहे। उसके गोलों कि संख्या को पेले से ज्यादा बताकर भारतीय फुटबाल को धोखा देते रहे। शायद ही कभी किसी ने और खासकर फुटबाल फेडरेशन ने उसके बाद कौन जैसे सवाल पर ध्यान दिया हो।

सच्चाई यह है कि हर खिलाड़ी को एक न एक दिन मैदान छोड़ना पड़ता है। फर्क सिर्फ इतना है कि उनके खेलने की अवधि अलग हो सकती है। जहां तक छेत्री की बात है तो उसने लगभग डेढ़ दशक तक भारतीय फुटबाल को सजाया संवारा और जब भी जरूरत पड़ी, वह कसौटी पर खरा उतरा। यह सही है कि टीम खेल में अकेला खिलाड़ी बार-बार और लगातार परिणाम तय नहीं क़र सकता लेकिन सुनील ने कई अवसरों पर हार के कगार पर पहुँची भारतीय टीम को सम्मान दिलाया। अपने गोल जमाने की योग्यता के दम पर उसने देश के बड़े क्लबों में न सिर्फ स्थान बनाया अपितु उन्हें भी ऊंचाइयां प्रदान कीं।

छेत्री का सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य, वह ऐसे वक्त में भारतीय फुटबाल में अवतरित हुआ, जब भारत की फुटबाल अपना सबकुछ लुटा चुकी थी। ऐसे समय में उसे अपने दम पर टीम को सहारा देना पड़ा, जबकि राष्ट्रीय फेडरेशन और फुटबाल के हत्यारे दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल का रेप करने पर तुले थे। नतीजा सामने है, आज भारत विश्व फुटबाल में कहीं नजर नहीं आता। एशियाड में खेलने का सम्मान तक नहीं मिल पाता और फिसड्डी दक्षिण एशियाई देशों में हेंकड़ी हाँक क़र खुद को तसल्ली दे रहा है। सैफ देशों में यदि थोड़ी बहुत इज्जत बची है तो छेत्री को श्रेय जाता है, जोकि बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल जैसे देशों के हाथों पिटने से बचाता आ रहा है।

सुनील छेत्री 38 के हो गए हैं और अब उनसे बहुत अधिक की उम्मीद करना ठीक नहीं होगा। अब तेजी के साथ उनका विकल्प खोजने की जरूरत है, जो कि फिलहाल नज़र नहीं आ रहा।

 

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