- अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने यह बयान देकर कि आईएसएल टीमों का रेलीगेशन नहीं होगा, बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है
- सोशल मीडिया पर एआईएफएफ अध्यक्ष पर रोज सैकड़ों हजारों हमले हो रहे हैं क्योंकि फुटबॉल के दीवानों से अपनी भारतीय फुटबॉल की दुर्गति अब देखी नहीं जाती है
- कोलकाता, केरल, मिजोरम, मणिपुर, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के फुटबॉल प्रेमी कल्याण चौबे के 2047 तक के फुटबॉल सुधार कार्यक्रम को खारिज कर चुके हैं
- कल्याण चौबे के रेलीगेशन प्रोग्राम की बजाय ‘रेजिग्नेशन’ की मांग चल निकली है और फुटबॉल प्रेमी पूछ रहे हैं कि कब देंगे इस्तीफा
राजेंद्र सजवान
‘फुटबॉल विनाशक’, ‘राजनीति के अयोग्य खिलाड़ी’, ‘फुटबॉल को देश से लुप्त करने पर अमादा’ और ‘देश की सरकार के चहेते, मुंह लगे’ जैसे संबोधनों के साथ सोशल मीडिया पर अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष कल्याण चौबे पर रोज सैकड़ों हजारों हमले हो रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि चौबे ने जब से एआईएफएफ का शीर्ष पद संभाला है लगभग रोज ही कोई ना कोई उनकी नीतियों और कार्यप्रणाली की ना सिर्फ आलोचना कर रहा है, उन्हें कुर्सी से उतरने की सलाह भी दी जाने लगी है।
हाल ही में चौबे ने यह बयान झाड़ कर कि आईएसएल टीमों का रेलीगेशन नहीं होगा, बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। खबर यह है कि ज्यादातर आई लीग और आईएसएल क्लब चौबे के गलत फैसलों से खफा है। आईएसएल टीमों के रेलीगेशन रोकने का फायदा किसे मिलेगा, सवाल सिर्फ इतना नहीं है। लगभग 150 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में फुटबॉल की हालत किसी से भी छिपी नहीं है। भले ही हम फीफा रैंकिंग में निरंतर पिछड़ते जा रहे हैं फिर भी सच्चाई यह है कि आज भी क्रिकेट के बाद फुटबॉल को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। फुटबॉल के दीवानों से अपनी फुटबॉल की दुर्गति अब देखी नहीं जाती है। फेसबुक, व्हटसप, एक्स (पूर्व में ट्विटर) और फुटबॉल वेबसाइटों पर कल्याण चौबे के विरुद्ध अभियान सा छिड़ा है। कोई कह रहा है कि उसे तुरंत पद से हट जाना चाहिए। दूसरा कह रहा है कि वह फुटबॉल को पंचर करके छोड़ेगा। ऑस्ट्रेलिया, जापान, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, सऊदी अरब, चीन, कोरिया आदि देशों रह रहे भारतीय हैरान है कि आखिर क्यों दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश फुटबॉल का सबसे बड़ा मजाक बन कर रह गया है।
कोलकाता, केरल, मिजोरम, मणिपुर, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के फुटबॉल प्रेमी कल्याण चौबे के 2047 तक के फुटबॉल सुधार कार्यक्रम को खारिज कर चुके हैं। ज्यादातर उसे फुटबॉल का छलिया मानते हैं और दासमुंशी एवं प्रफुल्ल पटेल से भी बड़ा डॉन बता रहे हैं। सोशल मीडिया फिलहाल अखबारों की तरह पाबंदी नहीं है इसलिए कल्याण चौबे के रेलीगेशन प्रोग्राम की बजाय ‘रेजिग्नेशन’ की बात चल निकली है। कब देंगे इस्तीफा, फुटबॉल प्रेमी पूछ रहे हैं। एआईएफएफ सूत्रों की मानें तो देश की फुटबॉल को संचालित करने वाली सर्वोच्च संस्था के अंदर भी खलबली मची है। एक तो भारतीय टीमें अपयश बटोर रही हैं, दूसरे चौबे है कि मानते नहीं है और अनाप-शनाप फैसले ले रहे हैं।