हिमालयन कप: गढ़वाल हीरोज के मुकुट पर एक और कोहिनूर

  • फाइनल में मिनर्वा दिल्ली एफसी के खिलाड़ियों से सजी हिमाचल एफसी को 3-0 से हराकर खिताब पर कब्जा किया
  • उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने अपने हाथों से चैम्पियन क्लब को ट्रॉफी भेंट की
  • गढ़वाल हीरोज ने महीने भर पहले दिल्ली की प्रतिष्ठित प्रीमियर लीग में उप-विजेता का सम्मान पाया था
  • पिछले 40-50 सालों में अनेक उतार-चढ़ाव देख के बाद भी यह क्लब मगन सिंह पटवाल जैसे नेतृत्वकर्ताओं के कारण आज भी जस का तस खड़ा है

राजेंद्र सजवान

दिल्ली के जाने-माने क्लब गढ़वाल हीरोज एफसी ने हिमालयन कप फुटबॉल टूर्नामेंट जीत लिया है। राजधानी देहरादून में खेले गए अखिल भारतीय स्तर के इस टूर्नामेंट के फाइनल में हिमाचल एफसी को तीन गोलों से हराकर गढ़वाल हीरोज एफसी ने एक बार फिर उस विश्वास को मजबूत किया है जिस पर लाखों उत्तराखंडियों नाज करते आए हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने अपने हाथों चैंपियन क्लब को ट्रॉफी भेंट की। इस अवसर पर क्लब को सजाने संवारने वाले और पिछले कई दशकों से प्रेरणा रहे मगन सिंह पटवाल और अन्य पदाधिकारी भी मौजूद थे।

गढ़वाली, कुमाऊनी और अन्य देसी-विदेशी फुटबॉलरों से सजे दिल्ली के इस क्लब ने यूं तो उत्तराखंड में कई टूर्नामेंट जीते हैं और हिमालयन कप उसके मुकुट पर एक और कोहिनूर है। इसकी वजह खास है क्योंकि इस आयोजन में देश भर के जाने-माने क्लबों और संस्थानों की टीमों ने भाग लिया, जिनमें  सिक्किम, मणिपुर, असम, नागालैंड, जम्मू कश्मीर और हिमाचल की नामी टीमें शामिल हैं।

   गढ़वाल ने क्वार्टर फाइनल में मणिपुर और सेमीफइनल में असम राइफल को हराया। अंततः गढ़वाल ने फाइनल में मिनर्वा दिल्ली एफसी के खिलाड़ियों से सजी हिमाचल को  तीन गोलों से परास्त कर अपना वर्चस्व बनाए रखा।

  

   पिछले चालीस-पचास सालों में क्लब ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं जिनके चलते दिल्ली के कई नामी क्लबों का नामो-निशान मिट गया या गुमनामी में खो गए लेकिन   गढ़वाल हीरोज आज भी इसलिए जस का तस खड़ा है क्योंकि क्लब को मगन सिंह पटवाल जैसे व्यक्तित्व का नेतृत्व प्राप्त है।

  

उल्लेखनीय है कि गढ़वाल हीरोज ने महीने भर पहले दिल्ली की प्रतिष्ठित प्रीमियर लीग में उप-विजेता का सम्मान पाया था। बेशक इस जीत के पीछे टीम वर्क और एक अलग तरह की भावना का बड़ा योगदान रहा है।

   गढ़वाल हीरोज के कुछ प्रमुख खिलाड़ी:

   कांता प्रसाद, सुखपाल बिष्ट, ओम प्रकाश नवानी, गुमान सिंह रावत, जगदीश रावत, जीवानन्द उपाध्याय, राजा राम, विजय राम ध्यानी, केएस रावत, त्रिलोक अधिकारी, एब्बे और मीना(नाईजीरिया), कुलदीप रावत, भीम भंडारी, वाई.एस. असवाल, वीरेंद्र रावत, हरेन्द्र नेगी, रग्गी बिष्ट, रवीन्द्र रावत गुड्ड़ू, कमल  जदली, राधा बल्लभ सुन्दरियाल, राजेंद्र सजवान, किशन, स्व. भोपाल रावत(गोपी), वीरेंद्र मालकोटि, स्व. दिलावर नेगी, राजेंद्र अधिकारी, सेमसन मेसी, सुब्रामान्यम, स्व रूबिन सतीश, रवि राणा, सजीव भल्ला,  दिगंबर बिष्ट, चंदन रावत, राजेंद्र अधिकारी, इंदर राणा, दिनेश रावत, पुष्पेंद्र तोमर, कबीर सोम, विपिन भट्ट, भरत नेगी, एच.एस. बिष्ट(बल्ली), दीवान सिंह, स्व.माधवा नंद, लक्ष्मण बिष्ट, रवि भाकुनी, प्रेम जमनाल, धर्मेन्द्र खरोला, भूपेंद्र रावत, भूपेंद्र ठाकुर, कामेई, पारितोष, मनोज गोसाईं, सुनील पटवाल, दीपक, आशीष पांडे और कई अन्य खिलाड़ियों ने गढ़वाल हीरोज को राजधानी का चैम्पियन क्लब बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।

पदाधिकारी: केसर सिंह नेगी, रंजीत रावत, एच.एस. भंडारी, मगन पटवाल, त्रिभुवन रावत, बी.एस. नेगी, अनिल नेगी, दयाल परमार, रतन रावत।

  

गढ़वाल हीरोज के खिलाड़ियों की खास बात यह रही कि उनमें से ज़्यादातर ने कभी किसी कोच से ट्रेनिंग नहीं ली। अधिकांश राउज एवेन्यू, सेवा नगर, अलीगंज, किदवई नगर, लोधी कालोनी, पंचकुया रोड, आरके पुरम और मोती बाग के पार्कों और पथरीले मैदानों में खेल कर बड़े हुए। चाय-मट्ठी उनकी रेफ्रेशमेंट रही। स्कूल स्तर पर नामी कोच रमेश चंद्र देवरानी से गुर सीखने वाले अनेक खिलाड़ी देश के लिए खेलने में सफल रहे।

   कुछ ऐसे खिलाड़ियों का जिक्र किया जा सकता है, जो ना सिर्फ शानदार और जानदार थे अपितु उन्हें कई बड़े क्लबों से ऑफर आए लेकिन परिवारिक कारणों से आगे नहीं बढ़ पाए। रक्षापंक्ति के खिलाड़ियों में कांता प्रसाद और सुखपाल बिष्ट अपने खेल कौशल के दम पर क्रमश: ईएमई और सीमा बल के कप्तान बने तो गुमान सिंह रावत और भीम सिंह भंडारी अभूतपूर्व थे। उन्हें मोहन बागान और पंजाब के क्लबों ने अपने बेड़े में शामिल करने का निमंत्रण दिया। जगदीश रावत, एच.एस. नेगी, कमल, रवीन्द्र रावत, राधा बल्लभ, लक्ष्मण बिष्ट, माधवा नंद, रवि राणा और कई अन्य खिलाड़ियों ने अपनी अलग पहचान भी बनाई। खिलाड़ी के बाद कोच की जिम्मेदारी  निभाने में सुखपाल बिष्ट और रवि राणा का योगदान सर्वोपरि रहा है। खासकर, रवि राणा ने खिलाड़ी और कोच के रूप में लंबा योगदान दिया।

लेखक जाने-माने पत्रकार हैं और गढ़वाल हीरोज के पूर्व फुटबॉलर रह चुके हैं

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