हॉकी में श्रेष्ठ रिकॉर्ड वाला देश वर्ल्ड कप से बाहर क्यों?

पाकिस्तान की हॉकी अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है

चार बार के वर्ल्ड चैम्पियन और दो बार के उप-विजेता रहा पाकिस्तान इस बार क्वालीफाई तक नहीं कर पाया है

राजेंद्र सजवान

भुवनेश्वर और राउरकेला में खेले जाने वाले एफआईएच ओडिशा हॉकी मेंस वर्ल्ड कप में एक ऐसा देश भाग नहीं ले रहा है जिसका राष्ट्रीय खेल हॉकी है और जिसने सबसे ज्यादा बार वर्ल्ड कप जीता है। हॉकी मैदान पर भारत के साथ इस देश की प्रतिद्वंद्विता खासी पुरानी है।

 

 13 जनवरी से खेले जाने वाले वर्ल्ड कप में 16 देश भाग ले रहे हैं जिन्हें चार-चार के वर्गों में बांटा गया है। ग्रुप-ए में ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस और अर्जेंटीना; ग्रुप-बी में बेल्जियम, जापान, कोरिया और जर्मनी; ग्रुप-सी में नीदरलैंड, चिली, न्यूजीलैंड और मलेशिया; ग्रुप-डी में भारत, वेल्स, इंग्लैंड और स्पेन को स्थान प्राप्त है।

   जाहिर है इन देशों में पाकिस्तान का कहीं उल्लेख नहीं है। जी हां, यही वो देश है जिसका वर्ल्ड कप रिकॉर्ड श्रेष्ठतम रहा है। लेकिन चार बार के वर्ल्ड चैम्पियन और दो बार के उप-विजेता पाकिस्तान के साथ ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि वो इस बार क्वालीफाई नहीं कर पाया। उसे दो बार ओलम्पिक से भी बाहर बैठना पड़ा। कारण, क्वालीफाई नहीं कर पाया। भले ही पाकिस्तान के नहीं होने पर भारतीय हॉकी प्रेमी खुशी मना रहे हों लेकिन तमाम देशों के हॉकी जानकार और एक्सपर्ट्स इसे खेल के लिए घातक मान रहे हैं।

 

  कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार, भले ही भारत वर्ल्ड कप खेल रहा है लेकिन पाकिस्तान के नहीं होने का मतलब है एशियाई हॉकी का कद घटना या उसके खेल स्तर में कमी आना।   भारत और पाकिस्तान कलात्मक शैली के लिए विख्यात रहे हैं। आजादी से पहले दोनों ने साथ खेल कर और तत्पश्चात भारत-पाकिस्तान के लिए खेल कर खूब वाह-वाह लूटी।

   आज पाकिस्तान की हॉकी अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। यह स्थिति एशियाई हॉकी और खासकर भारत के लिए दुखद मानी जाए तो गलत नहीं होगा। भले ही जापान, कोरिया और मलेशिया जैसे देश कभी कभार बड़े आयोजनों में खेल जाते हैं लेकिन पाकिस्तान के नहीं होने के मायने हैं एशियाई हॉकी को बड़ा नुकसान और भारत के एक कड़े प्रतिद्वंद्वी की कमी।

  

जिस आयोजन में भारत या पाकिस्तान या दोनों में से कोई एक नहीं होते उसका आकर्षण वैसे ही फीका पड़ जाता है। यह स्थिति विश्व हॉकी के लिए इसलिए भी बेहद दुखद मानी जाती है क्योंकि हॉकी के चाहने वाले इन  दोनों देशों में सबसे ज्यादा हैं।

  बेहतर होगा कि पाकिस्तानी हॉकी के खैरख्वाह अपने महान इतिहास को बचाने के लिए आगे आएं। वरना वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान हॉकी मानचित्र से बाहर हो जाए। शायद वह दिन एशियाई हॉकी के लिए भी सबसे बुरा दिन होगा।

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