जब सानिया स्टार बन चुकी थी, तब एमा, लेला पैदा भी नहीं हुई थीं!

राजेंद्र सजवान/क्लीन बोल्ड

भारतीय जनमानस फिलहाल ओलम्पिक और पैरालंपिक की बड़ी कामयाबी के उल्लास और धूम धड़ाके से बाहर नहीं निकल पा रहा है। या यूँ भी कह सकते हैं कि कुछ ताकतें बाहर निकलने का मार्ग अवरुद्ध किए हुए हैं। आप समझ सकते हैं ऐसा क्यों हो रहा है और कौन लोग हैं जोकि आम खेल प्रेमी की आँख पर बँधी पट्टी को खुलने नहीं देना चाह रहे।

बेशक, इनमें नेता, अभिनेता और खेल संघों के अधिकारी शामिल हैं। कोई अच्छे प्रदर्शन की आड़ में पब्लिसिटी बटोर रहा है तो कोई लगातार विफलता के बावजूद अपनी कुर्सी से चिपका हुआ है।

इतनी बड़ी भूमिका बाँधने की ज़रूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि अमेरिकी ओपन में 17-18 साल की किशोरियों ने जैसा उधम काटा उसे देख कर अपनी टेनिस पर रोना आ रहा है। महिला वर्ग में जो गैरवरीयता प्राप्त लड़कियाँ फाइनल में पहुँची,उनमें एक है ब्रिटेन की 18 वर्षीय विजेता एमा राडूकानू और दूसरी कनाडा की 19 साल की लेला फर्नान्डीज।

दो कम उम्र लड़कियों ने जैसा धमाल मचाया, उससे यह तो साफ हो गया है कि आने वाला कल उनका है, जिस पर उन्होने पहले ही अपनी श्रेष्ठता की मुहर लगा दी है। यदि भारतीय टेनिस के कर्णधारों ने एमा और लेला का खेल देखा हो तो उन्हें यह तो पता चल गया होगा कि हमारी टेनिस कहाँ है। शायद यही सही समय है जब भारतीय टेनिस की खोज खबर ली जानी चाहिए। लेकिन हमारी महिला टेनिस पता नहीं कब तक सानिया मिर्ज़ा को लेकर फुदकती रहेगी!

अंतरराष्ट्रीय टेनिस में बदलाव के चलते अमेरिकी ओपन भारतीय खेल प्रेमियों और टेनिस में रूचि रखने वालों के सामने यह सवाल छोड़ गया है कि भारत की टेनिस कब सुधरेगी? कब कोई भारतीय किसी ग्रैंड स्लैम का खिताब अपने नाम करेगा? फिलहाल तो कोई उम्मीद नज़र नहीं आती। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय टेनिस में दम नहीं है, क्योंकि टेनिस का कारोबार ग़लत हाथों में है। नतीजन एक भी भारतीय खिलाड़ी सौ सालों में कोई बड़ा सिंगल्स खिताब नहीं जीत पाया है।

1986 के अटलांटा ओलम्पिक में जीता लिएंडर पेस का कांस्य पदक 35 साल से मुँह चिढ़ा रहा है तो राम नाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन और लिएंडर के स्तर के खिलाड़ी अब भारतीय टेनिस ने पैदा करने बंद कर दिए हैं।

लड़कियों में हमारे पास सानिया है ना! बेचारी सानिया मिर्ज़ा, कब तक भारतीय टेनिस का बोझ ढोती रहेगी? तारीफ की बात यह है कि जब सानिया मिर्जा खेल जीवन की उड़ान भर रही थीं तब एमा और लेला पैदा भी नहीं हुई थीं। सानिया को देश ने अर्जुन अवार्ड, पद्म श्री, पद्म भूषण और न जाने क्या क्या दिया लेकिन महिला टेनिस आज तक कोई ओलंम्पिक पदक विजेता या एमा-लैला जैसी चैंपियन पैदा नहीं कर पाई।

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