सतपाल के बाद एसजीएफआई का हाल

- खेल एक्सपर्टस, पूर्व खिलाड़ी और जानकारों के अनुसार, स्कूल स्तर पर पर्याप्त प्रोत्साहन के अभाव में बहुत सी प्रतिभाएं उभरने से पहले ही मुरझा जाती हैं या उन्हें आधे रास्ते में खेलों से नाता तोडना पड़ता है
- स्कूली खेलों की गन्दी राजनीति के चलते कई प्रतिभावान खिलाड़ी खेल और पढ़ाई से तालमेल नहीं बैठा पा रहे और स्कूली शिक्षा के चलते खेल से नाता तोड़ लेते हैं
- कुछ पूर्व चैंपियन मानते हैं कि कुछ साल पहले तक देश भर के स्कूलों में खेलों के लिए बेहतर माहौल था, जब तक महाबली सतपाल स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद पर विराजमान थे
- एशियाई खेलों के स्वर्ण विजेता पहलवान सतपाल ने एसजीएफआई अध्यक्ष पद पर रहते बड़े-बड़े निर्णय लिये और तब दिल्ली के स्कूल 14, 17 और 19 साल के सभी आयु वर्गों में प्राय नंबर एक पर थे
राजेंद्र सजवान
पिछले कई सालों से एक सवाल बार-बार पूछा जाता है कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला अपना देश ओलम्पिक, एशियाड और अन्य बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों की पदक तालिका में क्यों पिछड़ जाता है? हालांकि कारण बहुत से हैं लेकिन खेल एक्सपर्टस, पूर्व खिलाड़ी और जानकारों की मानें तो स्कूल स्तर पर पर्याप्त प्रोत्साहन के अभाव में बहुत सी प्रतिभाएं उभरने से पहले ही मुरझा जाती हैं या उन्हें आधे रास्ते में खेलों से नाता तोडना पड़ता है। स्कूली खेलों की गन्दी राजनीति के चलते कुछ प्रतिभावान खिलाड़ी खेल और पढ़ाई से तालमेल नहीं बैठा पा रहे। परिणाम यह निकलता है कि ज्यादातर उभरते खिलाड़ी स्कूली शिक्षा के चलते खेल से नाता तोड़ लेते हैं। कुछ पूर्व चैंपियन मानते हैं कि कुछ साल पहले तक देश भर के स्कूलों में खेलों के लिए बेहतर माहौल था, जब तक महाबली सतपाल स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद पर विराजमान थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
यह सही है कि सतपाल खुद नामी पहलवान थे एशियाई खेलों के स्वर्ण विजेता सतपाल ने ओलम्पिक सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भारतीय कुश्ती को गौरवान्वित किया। क्योंकि बड़े खिलाड़ी थे इसलिए एसजीएफआई अध्यक्ष पद पर रहते बड़े-बड़े निर्णय लेने में सफल रहे। तब दिल्ली के स्कूल 14, 17 और 19 साल के सभी आयु वर्गों में प्राय नंबर एक पर थे। सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, बजरंग पूनिया, सानिया मिर्जा, विजेंद्र सिंह, सुनील क्षेत्री, दर्जनों चैंपियन पहलवान, हॉकी ओलम्पियन और अन्य खेलों के बड़े नाम सतपाल के नेतृत्व में चमक बिखेरने में सफल रहे और आगे बढ़े लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं रहे। महाबली सतपाल के सेवानिवृत होने और एसजीएफआई के नेतृत्व परिवर्तन के चलते स्कूली खेल महज तमाशा बन कर रह गए हैं, ऐसा पूर्व चैंपियनों की राय है।
एसजीएफआई की राजनीति खेलों पर भारी पड़ रही है, एक धड़े का ऐसा मानना है लेकिन दूसरा धड़ा कह तहा है कि अब पहले के मुकाबले बेहतर काम हो रहा है जिसके नतीजों के लिए थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा। नए पदाधिकारियों के अनुसार सब कुछ ट्रांसपेरेंट है और एसजीएफआई सतपाल के रिटायरमेंट के बाद फिर से रफ़्तार पकड़ रहा है। लेकिन सतपाल के पद पर रहते स्कूली खेल मीडिया की पहली पसंद थे। आज आलम यह है कि इन खेलों को मीडिया भाव नहीं देता। यूं भी कह सकते हैं कि एसजीएफआई में सब कुछ गुपचुप चल रहा है। क्या ऐसा है?