- जब से भारतीय फुटबॉल ने आईएसएल और आई-लीग का गीदड़-पट्टा धारण किया है, तब से देश में खेल का स्तर तो गिरा ही है और साथ ही सेना व पुलिस के खिलाड़ी खोजे नहीं मिल पाते हैं
- एक जमाना वो भी था जब भारतीय फुटबॉल में सेना और पुलिस की टीमों को बड़ा आदर सम्मान प्राप्त था खासकर, डूरंड कप में फौजी खिलाड़ियों का रिकॉर्ड शानदार रहा है
- गोरखा ब्रिगेड, आर्मी इलेवन, वायुसेना, पंजाब पुलिस, सिख रेजिमेंट सेंटर, राजस्थान पुलिस (आरएसी), केरला पुलिस और अन्य कई टीमें देशभर के फुटबॉल टूर्नामेंट में खेला करती थीं
- फुटबॉल फेडरेशन की गलत नीतियों के चलते पुलिस और सेना के खिलाड़ियों की भागदारी पर असर पड़ा है
- विभिन्न राज्यों में आयोजित होने वाले टूर्नामेंट या तो बंद हो गए हैं या फिर आईएसएल और आई-लीग के आयोजन के कारण उनकी पहचान लुप्त हो रही है
- लेकिन ज्यादातर टीमों के पतन का कारण खुद उनके विभाग रहे हैं क्योंकि आर्मी और एयर फोर्स में फुटबॉल खिलाड़ियों की भर्ती प्राय: कम ही हो पाती है
राजेंद्र सजवान
कुछ साल पहले तक भारतीय फुटबॉल में सेना और पुलिस की की टीमों का वजन हुआ करता था और वे बढ़-चढ़कर भाग लेती थी। उनके खिलाड़ी भारतीय फुटबॉल टीम में खेलते नजर आते थे। लेकिन आज देश में फुटबॉल का माहौल बदल गया है। बल्कि यह कहना चाहिए कि फुटबॉल का चरित्र बदला है। खासकर जब से भारतीय फुटबॉल ने आईएसएल और आई-लीग का गीदड़-पट्टा धारण किया है, तब से देश में खेल का स्तर तो गिरा ही है और साथ ही सेना व पुलिस के खिलाड़ी खोजे नहीं मिल पाते हैं।
दिल्ली की फुटबॉल लीग का उदाहरण सामने है, जिसमें भारतीय वायुसेना वर्षों से भाग ले रही है। कई अवसरों पर वायुसैनिकों ने खिताबी जीत दर्ज की है और उसके कई खिलाड़ी राष्ट्रीय का हिस्सा भी बने। लेकिन आज आलम यह है कि वायुसेना को कोई भी गुमनाम क्लब हरा देता है। इस प्रकार सेना की अन्य टीमों की हालत भी खस्ता है।
एक जमाना वो भी था जब भारतीय फुटबॉल में सेना और पुलिस की टीमों को बड़ा आदर सम्मान प्राप्त था। गोरखा ब्रिगेड, आर्मी इलेवन, वायुसेना, पंजाब पुलिस, सिख रेजिमेंट सेंटर, राजस्थान पुलिस (आरएसी), केरला पुलिस और अन्य कई टीमें देशभर के फुटबॉल टूर्नामेंट में खेला करती थीं। खासकर, डूरंड कप में फौजी खिलाड़ियों का रिकॉर्ड शानदार रहा है लेकिन वक्त के साथ इन टीमों का अस्तित्व या तो समाप्त हो गया है या फिर जैसे-तैसे अस्तित्व बचाए हुए हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि फुटबॉल फेडरेशन की गलत नीतियों के चलते पुलिस और सेना के खिलाड़ियों की भागदारी पर असर पड़ा है लेकिन ज्यादातर टीमों के पतन का कारण खुद उनके विभाग रहे हैं। आर्मी और एयर फोर्स में फुटबॉल खिलाड़ियों की भर्ती प्राय: कम ही हो पाती है। दूसरा बड़ा कारण विभिन्न राज्यों में आयोजित होने वाले टूर्नामेंट या तो बंद हो गए हैं या फिर आईएसएल और आई-लीग के आयोजन के कारण उनकी पहचान लुप्त हो रही है।