- सचिन, रोहित शर्मा और कई अन्य पूर्व दिग्गज खिलाड़ियों का रणजी मुकाबलों में उपस्थित रहना इस बात का प्रमाण है कि भले ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और आईपीएल खिलाड़ियों व क्रिकेट प्रेमियों की पहली पसंद है लेकिन रणजी ट्रॉफी आज भी चैम्पियनों को आकर्षित कर रही है
- हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, बास्केटबॉल आदि टीम खेलों पर सरसरी नजर डालें तो क्रिकेट जैसा अनुशासन और समर्पण शायद ही किसी अन्य खेल में नजर आता है
- एक वक्त था, जब रंगास्वामी राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता और संतोष ट्रॉफी के प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय टीमों का चयन होता था लेकिन अब सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया है और पूर्व चैम्पियन खोजे नहीं मिल पाते
- फुटबॉल में आईएसएल और आई-लीग संतोष ट्रॉफी के सिर पर सवार हैं तो जब से रंगास्वामी राष्ट्रीय हॉकी चैम्पियनशिप ‘हॉकी इंडिया’ की बपौती बनाई गई, प्रतियोगिता महज खानापूरी बन कर रह गई है
- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जहां एक तरफ राष्ट्रीय चैम्पियन को करोड़ों रुपये दे रहा है तो स्टार खिलाड़ियों को रणजी ट्रॉफी खेलने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है
- लेकिन हॉकी, फुटबॉल और तमाम खेल रिलायंस और अन्य औद्योगिक घरानों के गुलाम बन कर रह गए हैं
राजेंद्र सजवान
“महान क्रिकेटर रणजी ट्रॉफी राष्ट्रीय क्रिकेट चैम्पियनशिप को किस कदर गंभीरता से लेते हैं, इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि सचिन तेंदुलकर और कप्तान रोहित शर्मा फाइनल में अपनी टीम का हौंसला बढ़ाने स्टेडियम तक पहुंच जाते हैं,” विदर्भ पर मुम्बई की जीत के बाद देशभर के मीडिया की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार की थी।
सचिन, रोहित शर्मा और कई अन्य पूर्व दिग्गज खिलाड़ियों का रणजी मुकाबलों में उपस्थित रहना इस बात का प्रमाण है कि भले ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और आईपीएल खिलाड़ियों व क्रिकेट प्रेमियों की पहली पसंद है लेकिन रणजी ट्रॉफी आज भी चैम्पियनों को आकर्षित कर रही है। राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के प्रति आम क्रिकेटर का रुझान और समर्पण बताता है कि क्रिकेट ने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ा है।
अब जरा अन्य खेलों की भी बात कर लें। हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, बास्केटबॉल आदि टीम खेलों पर सरसरी नजर डालें तो क्रिकेट जैसा अनुशासन और समर्पण शायद ही किसी अन्य खेल में नजर आता है। कुछ सप्ताह पहले अधिकांश की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप आयोजित की गई, जिनमें से हॉकी और फुटबॉल की छुट-पुट चर्चा हुई। हॉकी इंडिया सीनियर राष्ट्रीय हॉकी चैम्पियनशिप और संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप के विजेताओं को को उनकी राज्य इकाइयों और मेजबान स्टेट ने केवल जेब खर्ची दी होगी लेकिन क्रिकेट की तरह करोड़ों नहीं मिल पाए।
एक वक्त था, जब रंगास्वामी राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता और संतोष ट्रॉफी के प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय टीमों का चयन होता था। लेकिन अब सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया है। फुटबॉल में आईएसएल और आई-लीग संतोष ट्रॉफी के सिर पर सवार हैं तो जब से रंगास्वामी राष्ट्रीय हॉकी चैम्पियनशिप ‘हॉकी इंडिया’ की बपौती बनाई गई, प्रतियोगिता महज खानापूरी बन कर रह गई है। फुटबॉल और हॉकी देश के सबसे लोकप्रिय खेल हैं लेकिन उनके खिलाड़ियों की हालत बद से बदतर हो रही है। दोनों खेलों की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में पूर्व चैम्पियन खोजे नहीं मिल पाते। विजेता, उप-विजेता, श्रेष्ठ खिलाड़ियों को क्रिकेट की तरह मोटी इनामी राशि भी नहीं मिलती।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) जहां एक तरफ रणजी राष्ट्रीय चैम्पियन को करोड़ों रुपये दे रहा है तो स्टार खिलाड़ियों को रणजी ट्रॉफी खेलने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। लेकिन हॉकी, फुटबॉल और तमाम खेल रिलायंस और अन्य औद्योगिक घरानों के गुलाम बन कर रह गए हैं।