Ashok Kumar Dhyanchand released the book Olympic Saga

अशोक कुमार ध्यानचंद ने “ओलंपिक गाथा” पुस्तक का विमोचन किया

अजय नैथानी

नई दिल्ली। “पुस्तकें इतिहास को जानने का एक सशक्त माध्यम है और इनके माध्यम आने वाली पीढ़ी ओलंपिक, उसकी कहानियां और उसके हिरोज से अवगत होगी और प्रेरणा पाएगी।” यह विचार विश्व चैम्पियन और 1972 के मॉस्को ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य अशोक कुमार ध्यानचंद ने प्रकट किए।

मौका था ‘ओलंपिक गाथा: ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक तक’ पुस्तक का विमोचन का। टोक्यो में चल रहे खेलों के महाकुम्भ ओलंपिक गेम्स के बीच पूर्व हॉकी दिग्गज ने ‘ओलंपिक गाथा: ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक तक’ पुस्तक का विमोचन प्रेस क्लब में किया।

ओलंपिक और उसके विजेताओं से जुड़ी इस किताब को डॉ. स्मिता मिश्र, डॉ. सुरेश कुमार लौ और सन्नी कुमार गोंड़ ने लिखा है। इन तीनों लेखकों ने ओलंपियन और 1975 के क्वालालम्पुर में वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम के स्टार खिलाड़ी अशोक कुमार को अपनी पुस्तक की पहली प्रति भेंट की।

रविवार को आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अशोक कुमार ने हॉकी के जादूगर कहलाने एवं अपने पिता ध्यानचंद के समय की कई कहानियों के माध्यम से उस समय के खेल और परिस्थितियों के बारे में चर्चा की। वर्तमान समय में चल रहे ओलंपिक खेलों पर भी उन्होंने अपनी बात रखी।

अशोक ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके पिता मेजर ध्यानचंद और बाद के खिलाड़ियों जैसा संकल्प आज के खिलाड़ियों में कम ही देखने को मिलता है। यही कारण है कि 45 साल बीत जाने पर भी भारतीय हॉकी अपना गौरव नहीं लौटा पाई है। वे मानते हैं कि आज के खिलाड़ियों को अपेक्षाकृत बेहतर सुविधाएं मिली हुई हैं लेकिन कमी कहां हैं इस तरफ जिम्मेदार लोगों को ध्यान देने की जरूरत है।

ओलंपिक में 200 से ज्यादा देश एक दर्जन से अधिक खेलों में प्रतिभागिता करते हैं। ओलंपिक में देश का नेतृत्व करना हर खिलाड़ी का सपना होता है। कोविड के कारण ओलंपिक इतिहास में पहली बार स्थगन के बाद ओलंपिक 23 जुलाई से जापान के टोक्यो शहर में शुरू हो गए हैं।

‘इंडिया नेटबुक्स’ से प्रकाशित इस पुस्तक में जहाँ प्राचीन ओलंपिक से आधुनिक ओलंपिक तक की यात्रा, ओलंपिक के अंग, ओलंपिक के महान खिलाड़ी, विशिष्ट रिकॉर्ड, ओलंपिक में भारत की उपस्थिति को रेखांकित किया है वहीं ओलंपिक और सिनेमा, ओलंपिक में पहली बार घटनेवाली घटनाएँ और कोविड के कारण टोक्यो ओलंपिक स्थगन आदि पर भी दृष्टि डाली गई है।

पुस्तक की लेखिका डॉ. स्मिता मिश्र (एसोसिएट प्रोफेसर श्री गुरू तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं संपादक स्पोर्ट्स क्रीड़ा) ने बताया कि इस पुस्तक में साहस, दृढ़ निश्चय और नैतिकता की कई कहानियों को समाहित किया गया है जो न केवल खिलाड़ियों बल्कि समाज के हर वर्ग को प्रेरणा देती हैं।

उन्होंने इस किताब को लिखने में आई चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि ओलंपिक पर किताब लिखना सागर से मोती निकालने के समान है। इस विषय पर सही सामग्री को खोजना बहुत ही मुश्किल है और अलग-अलग माध्यम अलग-अलग रिकॉर्ड दिखा रहे हैं।

पुस्तक के सह-लेखक डॉ. सुरेश कुमार लौ (सलाहकार, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर सत्यवती कॉलेज, सांध्य दिल्ली विश्वविद्यालय) मानते हैं कि ओलंपिक खेल केवल पदक और यश तक सीमित नहीं है बल्कि यह व्यक्तित्व परिवर्तन का भी माध्यम है।

पुस्तक के सह-लेखक सन्नी कुमार गोंड (पीएचडी शोधार्थी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्व विद्यालय, सहायक संपादक स्पोर्ट्स क्रीड़ा समाचार-पत्र) ने कहा कि यह पुस्तक ओलंपिक खेल के प्राचीन मिथक से लेकर नए आधुनिक मिथक गढ़ने की यात्रा को रेखांकित करती है जिससे पाठक ओलंपिक के विभिन्न पहलुओं से रूबरू होगा।

वरिष्ठ खेल पत्रकार राजेन्द्र सजवान ने धन्यवाद ज्ञापन किया। पेफी इण्डिया के महासचिव डॉ. पीयूष जैन ने लेखकों को बधाई देते हुए खेल को जीवन का अनिवार्य अंग बनाने की बात पर बल दिया ।‘इंडिया नेटबुक्स’प्रकाशन की इण्डिया हेड कामिनी मिश्र ने लेखको को बधाई देते हुए पुस्तक प्रकाशन की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। पुस्तक विमोचन में अनेक खेल प्रेमी सहित विभिन्न मीडिया समूह के पत्रकार उपस्थित रहें।

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