Book Olympic Saga by Ashok Kumar Dhyanchand released

अशोक कुमार ध्यानचंद द्वारा “ओलंपिक गाथा” पुस्तक का विमोचन

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

ओलंपिक महाकुंभ के बीच डॉ. स्मिता मिश्र, डॉ. सुरेश कुमार लौ और सन्नी कुमार गोंड़ द्वारा लिखित ‘ओलंपिक गाथा: ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक तक’ पुस्तक का विमोचन प्रेस क्लब में हॉकी के ओलंपियन और विश्व चैंपियन टीम के स्टार खिलाड़ी अशोक कुमार ध्यानचंद द्वारा किया गया। पुस्तक की पहली प्रति लेखक त्रय द्वारा अशोक कुमार ध्यानचंद को भेंट की गई।

मुख्य अतिथि अशोक कुमार ध्यानचंद ने कहा कि पुस्तकें इतिहास को जानने का एक सशक्त माध्यम है और इस पुस्तक के माध्यम आने वाली पीढ़ी ओलंपिक, उसकी कहानियां और उसके हीरोज से अवगत होगी और प्रेरणा पाएगी। अशोक कुमार ध्यानचंद जी ने अपने पिता ध्यानचंद के समय की कई कहानियों के माध्यम से उस समय के खेल और परिस्थितियों के बारे में चर्चा की। वर्तमान समय में चल रहे ओलंपिक खेलों पर भी उन्होंने अपनी बात रखी।

अशोक ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके पिता मेजर ध्यानचंद और बाद के खिलाड़ियों जैसा संकल्प आज के खिलाड़ियों में कम ही देखने को मिलता है। यही कारण है कि 45 साल बीत जाने पर भी भारतीय हॉकी अपना गौरव नहीं लौटा पाई है। वे मानते हैं कि आज के खिलाड़ियों को अपेक्षाकृत बेहतर सुविधाएं मिली हुई हैं लेकिन कमी कहां हैं इस तरफ जिम्मेदार लोगों को ध्यान देने की जरूरत है।

ओलंपिक में 200 से ज्यादा देश अनेकों खेलों में प्रतिभागिता करते हैं। ओलंपिक में देश का नेतृत्व करना हर खिलाड़ी का सपना होता है। कोविड के कारण ओलंपिक इतिहास में पहली बार स्थगन के बाद ओलंपिक 23 जुलाई से जापान के टोक्यो शहर में शुरू हो गए हैं।

‘ओलंपिक गाथा: ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक तक’ पुस्तक तीन लेखकों डॉ. स्मिता मिश्र (एसोसिएट प्रोफेसर श्री गुरू तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं संपादक स्पोर्ट्स क्रीड़ा), डॉ. सुरेश कुमार लौ, (सलाहकार, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर सत्यवती कॉलेज, सांध्य दिल्ली विश्वविद्यालय), और सन्नी कुमार गोंड (पीएचडी शोधार्थी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, सहायक संपादक स्पोर्ट्स क्रीड़ा समाचार-पत्र) द्वारा लिखी गई है।

‘इंडिया नेटबुक्स’ से प्रकाशित इस पुस्तक में जहाँ प्राचीन ओलंपिक से आधुनिक ओलंपिक तक की यात्रा, ओलंपिक के अंग, ओलंपिक के महान खिलाड़ी, विशिष्ट रिकॉर्ड, ओलंपिक में भारत की उपस्थिति को रेखांकित किया है वहीं ओलंपिक और सिनेमा, ओलंपिक में पहली बार घटनेवाली घटनाएँ और कोविड के कारण टोक्यो ओलंपिक स्थगन आदि पर भी दृष्टि डाली गई है।

पुस्तक की लेखिका डॉ. स्मिता मिश्र ने बताया कि इस पुस्तक में साहस, दृढ़ निश्चय और नैतिकता की कई कहानियों को समाहित किया गया है जो न केवल खिलाड़ियों बल्कि समाज के हर वर्ग को प्रेरणा देती हैं। उन्होंने इस किताब को लिखने में आई चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि ओलंपिक पर किताब लिखना सागर से मोती निकालने के समान है। इस विषय पर सही सामग्री को खोजना बहुत ही मुश्किल है और अलग-अलग माध्यम अलग-अलग रिकॉर्ड दिखा रहे हैं।

पुस्तक के सह-लेखक डॉ. सुरेश कुमार लौ मानते हैं कि ओलंपिक खेल केवल पदक और यश तक सीमित नहीं है बल्कि यह व्यक्तित्व परिवर्तन का भी माध्यम है । सन्नी कुमार गोंड ने कहा कि यह पुस्तक ओलंपिक खेल के प्राचीन मिथक से लेकर नए आधुनिक मिथक गढ़ने की यात्रा को रेखांकित करती है जिससे पाठक ओलंपिक के विभिन्न पहलुओं से रूबरू होगा ।

प्रमुख खेल पत्रकार राजेन्द्र सजवान ने धन्यवाद ज्ञापन किया। पेफी इण्डिया के महासचिव डॉ. पीयूष जैन ने लेखकों को बधाई देते हुए खेल को जीवन का अनिवार्य अंग बनाने की बात पर बल दिया । ‘इंडिया नेटबुक्स’प्रकाशन की इण्डिया हेड कामिनी मिश्र ने लेखको को बधाई देते हुए पुस्तक प्रकाशन की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। पुस्तक विमोचन में अनेक खेल प्रेमी सहित विभिन्न मीडिया समूह के पत्रकार उपस्थित रहे।

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