Hockey legend Michael Kindo is no more

हॉकी लीजेंड माइकल किंडो नहीं रहे

(अशोक ध्यानचंद ने दी श्रद्धांजलि)

सन 2020 का अंतिम दिन भारतीय हॉकी के लिए वज्रपात और आघात का दिन साबित हुआ है। जब नियति के सामने हम सब बेबस खड़े अपने भारतीय हॉकी के सबसे चमकते सितारे और मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक माइकल किंडो ने हमे अलविदा कह दिया। मुझे विश्वास ही नही हुआ कि भारतीय हॉकी की रक्षा पंक्ति का सबसे विश्वसनीय साथी यू मेरा साथ छोड़कर चला जायेगा।

चाहे 1971 का विश्व कप हो 1972 का म्यूनिख ओलिंपिक हो, 1973 का एमस्टरडम विश्व कप हो या फ़िर 1975 में भारत विश्व विजेता बना हो एक टीम सदस्य के रूप में माइकल किंडो की अहम भूमिका हमारी जीत में रही है। माइकल किंडो जिन्हें प्यार से हम सभी किन्डी भाई कहकर बुलाते थे सहसा कानों को विश्वास ही नही हो रहा कि माइकल किंडो अब हमारे बीच नहीं हैं।

कभी टीम के सदस्यों को अवसादग्रस्त नहीं होने देते थे। अपने सरल और सहज स्वभाव से हमेशा माहौल को खुशनुमा बनाये रखने की उनमें अद्भुत कला थी। इंग्लिश गानों की धुनों पर हॉकी स्टिक को गिटार का रूप देकर उन पर थिरकना और हम सभी साथी खिलाड़ियों को साथ ले उस धुन पर नचाना।

आज किन्डी भाई की यादें मेरी आँखो में बार बार तैर रही है, बार बार आंखे नम हो जा रही हैं। विरोधी टीम की आक्रामक पंक्ति के खिलाड़ियो को मानो माइकल किंडो को परास्त करना लगभग नामुमकिन होता था जब तक माइकल किंडो भारतीय डी पर खड़े होते तब तक भारतीय गोल को भेद पाना किसी के लिए भी मुश्किल होता था।

सुंदर साफ सुथरी टैकलिंग के साथ साथ उतने ही खूबसूरत ढंग से उनका बॉल डिस्ट्रीब्यूशन होता था। मैदान पर भी वे एक फौजी की भांति ही रक्षा करते जैसे वे अपनी नोसेना में नोसैनिक के रूप में देश की समुद्री सीमा की रक्षा करते थे।

मेरी उस 1975 टीम के एक ओर रक्षा पंक्ति के साथी ने हम सब का साथ छोड़ दिया। ग्रेट सुरजीत सिंह, मोहिंदर पाल सिंह मुंशी भी हमारे बीच नहीं रहे। इन सब खिलाड़ियो को याद करते हुये मराठा शेर शिवाजी पवार की याद भी आ जाती है। हम सब 1975 विश्व कप विजेता हॉकी टीम के खिलाड़ी ओड़िसा विश्व कप में सम्मान समारोह हेतु वहाँ पहुँचे थे तब भी अस्वस्थता के चलते माइकल किंडो हम खिलाड़ियों के साथ उस सम्मान समारोह में उपस्थित नही हो पाए थे।

उनके परिजन हमारे बीच आये और उन्होंने इस कार्यक्रम में शिरकत की थी। हम सभी खिलाड़ियों ने उन्हें वहां बहुत याद किया। आज माइकल किंडो हमारे बीच नही है परंतु उन्होंने हॉकी के माध्यम से एक नोसैनिक के रूप में जो देश सेवा की वो हमेशा हमेशा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित माइकल किंडो को हमारे बीच जीवित रखेंगी। परम् पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि उनके परिवार को इस दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करें और दुःख की इस घड़ी में पूरा भारतीय हॉकी परिवार उनके साथ खड़ा है।

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