Mary Kom

बस मेरीकॉम, अब और नहीं !

राजेंद्र सजवान/Clean bold/

उम्मीद की जा रही थी कि भारत की महानतम मुक्केबाज मैरीकाम लगातार दो ओलम्पिक खेलों की नाकामी के बाद ग्लव्स टांग देंगी लेकिन शायद उनका इरादा अभी डटे रहने का है। हाल ही में मेरी ने एक बयान में कहा कि वह युवाओं को मौका देने के लिए वर्ल्ड चैम्पियनशिप और एशियन गेम्स में भाग नहीं लेंगी लेकिन आगामी कॉमनवेल्थ खेलों कि तैयारी कर रही हैं। ज़ाहिर है ढलती उम्र और खराब प्रदर्शन के बावजूद वह खेलते रहना चाहती हैं और शायद पेरिस ओलंम्पिक तक।

इसमें दो राय नहीं की मणिपुर की इस सफलतम मुक्केबाज ने भारतीय महिला मुक्केबाजी को अनेक अवसरों पर गौरवान्वित किया है। छह बार वर्ल्ड चैम्पियन बनीं तो लन्दन ओलम्पिक 2012 में कांस्य पदक भी जीता।

देश ने उन्हें बड़े से बड़ा सम्मान दियाऔर सांसद तक बनाया लेकिन खेलने और लड़ने की उसकी भूख अभी शांत नहीं हुई है। यह माना जा रहा था कि टोक्यो ओलम्पिक के बाद वह सन्यास की घोषणा कर सकती है लेकिन फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा।

जहाँ तक युवा खिलाडियों को अवसर देने की बात है तो उसके इस बयान का मज़ाक बनाया जा रहा है। कई पूर्व कोच और मुक्केबाज कह रहे हैं कि यदि उसे युवा लड़कियों कि इतनी ही परवाह थी तो लंदन ओलम्पिक के बाद रिंग छोड़ देना चाहिए थ। | यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि मेरीकाम ने अपनी कामयाबी का हमेशा गलत फायदा उठाया और युवा लड़कियों को आगे नहीं बढ़ने दिया। पिंकी जांगड़ा, सरिता और निकहत ज़रीन ने उसके विरुद्ध अनेक बार मोर्चा खोला लेकिन हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी।

भारतीय मुक्केबाजी फेडरेशन और मेरी के बीच की सांठगांठ को लेकर कई बार सवाल खड़े किए गए और हर बार उभरती मुक्केबाजों के परिजनों और कोचों को निराशा हाथ लगी। निखत ज़रीन बेहतर मुक्केबाज होने के बावजूद भी यदि मेरी काम से पार नहीं पा सकी तो सारे फसाद की जड़ फेडरशन को माना गया, जिसने देश कि असल प्रतिभाओं के साथ नाइंसाफी की।

मेरीकाम के इशारे पर चलने वाली फेडरेशन का हाल यह है कि भारतीय मुक्केबाजी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। पिछले दिनों टोक्यो ओलम्पिक की पदक विजेता लवलीना के विरुद्ध अरुंधति चौधरी भी आ खड़ी हुई थी। उसने भी ट्रायल कराने की मांग की, जिसे फिलहाल टाल दिया गया है।

खेल जानकारों और पूर्व मुक्केबाजों को लगता है कि अब मेरीकाम में वह पहली वाली बात नहीं रही। वैसे भी दमखम वाले खेलों में उम्र का बड़ा रोल होता है। ऐसे में किसी 40 साल की महिला से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। देश और खेल के हित में यही होगा कि वह 2024 के ओलम्पिक में भाग लेने का ख्वाब देखना छोड़ दे और युवा प्रतिभाओं को आगे आने दे। वरना मुक्केबाजी का आने वाला कल उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।

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