क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान,
इसमें कोई शक नहीं कि ओलंम्पिक पदक।विजेता एमसी मैरीकाम भारतीय खेल इतिहास की श्रेष्ठतम महिला खिलाड़ियों में शुमार है। उनका नाम बड़े आदर सम्मान के साथ लिया जाता है। छह बार की विश्व चैंपियन और लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता भले ही टोक्यो में चूक गईं लेकिन उनके संघर्ष और सफलता की कहानी भारतीय खेल इतिहास में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो चुकी है।
38 साल की मैरीकाम का कद इतना ऊंचा है कि देश के खेल मंत्री, खेल मंत्रालय के अधिकारी, मुक्केबाजी फेडरेशन के बड़े, कोच, साथी मुक्केबाज और तमाम लोग उनके सामने शीश नवाते हैं।
मैरी काम ने सालों की कड़ी मेहनत के बाद वह मुकाम पाया है जोकि अन्य किसी ओलम्पियन को नसीब नहीं हुआ। चार बच्चों की मां और राज्य सभा की सदस्य ने अपने खेलकौशल से इतना कुछ हासिल किया है, जितना कई ओलंम्पिक स्वर्ण जीतने पर भी संभव नहीं था।
उन पर बकायदा फिल्म भी बन चुकी है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू मणिपुर की महान मुक्केबाज की कीर्ति पर सवालिया निशान लगाता है। उस पर जब तब एकाधिकार जमाने, फेडरेशन को अपने इशारे पर नचाने और साथी मुककेबाजों का अहित करने के आरोप लगते आये हैं।
पिंकी जांगड़ा और निकहत ज़रीन नाम की दो प्रतिभावान मुक्केबाजों का भविष्य खराब करने के आरोप मैरी काम पर लगते रहे हैं। दोनों का दुर्भाग्य यह रहा कि वे भी 51 किलो भार वर्ग से हैं और क्रमशः दो-दो अवसरों पर मैरी को हराने के बावजूद भी ओलंम्पिक टीम का हिस्सा नहीं बन पाई।
जो मैरीकाम टोक्यो में हार कर आंसू बहा रही है, उसे यह भी पता होगा कि उसने कैसे प्रीति जांगड़ा और निकहत ज़रीन को खून के आंसू रुलाए हैं। मुक्केबाजी फेडरेशन को अपने इशारे पर नचाने वाली चैंपियन पर खुदगर्ज होने और अपने पर भारी पड़ने वाली महिलाओं को दूर भगाने के आरोप लगते रहे हैं।
उसे दो बार हराने वाली पिंकी मानती है कि 31 साल की उम्र में फिर से वापसी करना आसान नहीं होगा पर वह कमर कस चुकी है। कोरोना काल में उसकी तैयारी प्रभावित हुई है लेकिन बड़े आयोजनों में भाग लेने की उम्मीद नहीं छोड़ी है। वह कहती है कि जब मैरीकाम 38 साल की उम्र में फिट रह सकती है तो वह क्यों नहीं? लेकिन उसे नहीं लगता कि मैरी काम एक हार के बाद हटने वाली है।
पिंकी को इस बात का अफसोस है कि जीवन के अच्छे साल बर्बाद हो गए लेकिन वापसी कर फिर से अपने मुक्कों का दम दिखाना चाहती है। कुछ इसी प्रकार की सोच निकहत ज़रीन भी रखती है। उसे भी कई बार मैरी के कद, दबदबे और बड़बोलेपन का खामियाजा भरना पड़ा।
दो साल पहले दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित ओलंम्पिक क्वालीफायर ट्रायल में उसने मेरी काम को खूब छकाया लेकिन नतीजा उसके खिलाफ गया । उसके समर्थकों और रेफरी जजों में से कुछ एक ने माना कि परिणाम पहले से तय था। इतना ही नहीं मैरी काम ने मुकाबले के बाद निकहत से हाथ भी नहीं मिलाया।
25 साल की निकहत के पास भी पर्याप्त समय नहीं है। 2024 के ओलंम्पिक तक वह 28 की हो जाएगी। मुक्केबाजी के जानकार मानते हैं कि वह ओलंम्पिक टीम में होती तो पदक जीत सकती थी। लेकिन मैरीकाम की मनमानी के सामने भला किसकी मजाल?
अब देखना यह होगा कि मेरी काम आखिर कब तक डटी रहती है। एक्सपर्ट्स तो यहां तक कहते हैं कि उसे नौ साल पहले लंदन में कांस्य जीतने के बाद ग्लव्स टांग लेने चाहिए थे। उसे गोल्ड जीतने वाली अमेरिका की निकोल एडम ने बड़ी बेरहमी से पीटा था, हालांकि कांस्य जीत गई। कुछ मुक्केबाज मानते हैं कि मैरी काम के एकाधिकार के चलते भारतीय महिला मुक्केबाजी पनप नहीं पाई।
देखना यह होगा कि हाल ही में विवाह बंधन में बंधने और जीवन के दस बेशकीमती साल गंवाने केबाद पिंकी जांगड़ा और होनहार मुक्केबाज निकहत अब खुद को कैसे साबित कर पाती हैं। उन्हें कुछ और उभरती लड़कियों की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा। लेकिन ऐसा तब ही संभव हो सकता है जब हमारी महान मुक्केबाज चाहेंगी।फिलहाल उसने डटे रहने का इरादा ज़ाहिर किया है।