Olympics Half Journey, India Fully Exposed! Then the same story of despair

ओलंम्पिक : आधा सफर, पूरी तरह एक्सपोज हुआ भारत! फिर वही हताशा,निराशा और नाकामी की कहानी!!

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

टोक्यो ओलंम्पिक आधे सफर से आगे बढ़ गया है। कुछ देशों के लिए जैसे पदकों की लूट मची है तो कुछ खाता तक नहीं खोल पाए है,जबकि अगले ओलंम्पिक तक खेल महाशक्ति बनने जा रहा अपना भारत महान एक रजत पदक के दम पर पदक तालिका में 61वैं स्थान पर टँगा हुआ है।

चीन , जापान और अमेरिका में एक दूसरेको पीछे धकेलने की होड़ लगी है और बहुत जल्दी पदकों और शायद स्वर्ण पदकों का अर्ध शतक बना सकते हैं। भारत ने भी लगभग दो-तीन पदक और जीतने की संभावना जगाई है। ऐसे ही चलता रहा तो हम शायद लंदन ओलंम्पिक में जीते छह पदकों की भी बराबरी नहीं कर पाएंगे।

हालांकि ओलंम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के पिछले प्रदर्शनों के आधार पर यह कहना मुश्किल है कि इस बार कुल कितने पदक मिलने वाले हैं लेकिन जिस तरह से हमारे सारे दावे एक एक कर गलत साबित हो रहे हैं, ज्यादा की उम्मीद नहीं कि जा सकती।

पदक के बड़े दावेदार खेलों पर सरसरी नजर डालें तो अधिकांश में निराशा ही हाथ लगी है। निशानेबाजी, तीरंदाजी, मुक्केबाजी में देशवासियों को जैसे सपने दिखाए गए थे, झूठ का पुलिंदा साबित हुए हैं। भला हो मीरा बाई का जिसने पहले दिन ही भारत को पदक दिलाया। मुक्केबाजी में लवलीन ने पदक पक्का कर देशवासियों को तोहफा दे दिया है। उम्मीद की जा रही है कि असम की यह उभरती मुक्केबाज पदक का रंग जरूर बदलेगी।

लेकिन उनके लिए क्या कहें जोकि रोते बिलखते हुए रिंग छोड़ते हैं, जिन्हें विरोधी मुक्केबाज धुन रहे हैं और जिनके निशाने लक्ष्य से मीलों दूर निकल जाते हैं? बेशक, कमल प्रीत कौर ने भारतीय एथलेटिक को पदक की उम्मीद दिलाई है। उन एथलीट को भी माफ कियाजा सकता है जो कि फाइनल में नहीं पहुंचे पर अपना श्रेष्ठ देने में सफल रहे हैं।

भले ही दीपिका कुमारी और उसके पति अतनु दास पदक के करीब पहुंच कर चूक गए , प्रवीण जाधव और तरुण दीप भी दुर्भाग्य के शिकार हुए लेकिन बड़े बड़े दावे करने वाले निशानेबाजों ने देश को शर्मसार कर दिया। तीरंदाजों का प्रदर्शन पदक के आस पास का रहा लेकिन किसी को दोष देने की बजाय गंभीरता से सोचना होगा कि आखिर हम करीब से क्यों चूक जाते हैं। वैसे ही जैसे पीवी सिंधू अपनी ख्याति के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई।

रही सही उम्मीद अब कुश्ती से बची है। यहां भी निशानेबाजी की तरह चार -पांच पदकों का दावा क़िया गया है। विनेश, बजरंग और रवि में से कोई भी पदक जीत पाया तो भारत के मिट्टी के शेरों और झूठे दावे करने वालों के पाप धुल जाएंगे। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा?

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