क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
हालांकि सरदार मिल्खा सिंह और पीटी उषा के प्रदर्शन भारतीय खेलों में हमेशा हमेशा के लिए अपना अलग स्थान बना चुके हैं और जब कभी भारत के श्रेष्ठ एथलीटों की चर्चा होगी तो मिल्खा और उषा उड़न सिख एवम उड़न परी के रूप में याद किए जाते रहेंगे।
लेकिन उनकी कहानी ओलम्पिक में शानदार प्रदर्शन करने और चौथा स्थान अर्जित करने की है। कब कोई भारतीय दोनों महान एथलीटों से एक कदम आगे बढ़ कर ओलंम्पिक पदक जीत पाएगा, यह सवाल और उत्सुकता हर भारतीय के दिल दिमाग में है।
क्या टोक्यो ओलंम्पिक में 140 करोड़ की आबादी वाले देश का कोई एथलीट पदक जीत पाएगा? क्या सौ साल का इंतजार इस बार समाप्त हो पाएगा? इस प्रकार के सवाल देश के खेल मंत्रालय और एथलेटिक फेडरेशन से पूछे जा रहे हैं। भारत के लिए पदक जीतने वाला पहला एथलीट कौन हो सकता है? वह पुरुष होगा या कोई महिला जो यह करिश्मा कर सकते हैं?
यह सही है कि भारत को अपने निशानेबाजों, मुककेबाजों, पहलवानों, बैडमिंटन खिलाड़ियों, हॉकी और कुछ अन्य खेलों से बड़ी उम्मीद है। लेकिन यदि कोई एथलीट पदक जीत लेता है तो उस पदक के मायने ही कुछ और होंगे। एंग्लो इंडियन ब्रिटिश नागरिक नार्मन प्रिचर्ड ने हालांकि 1900 के पेरिस ओलंम्पिक में भारत के लिए दो सिल्वर जीते थे लेकिन हमें आज़ाद भारत के खिलाड़ी से ऐसी सौगात चाहिए।
फिलहाल जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं। पिछले पांच सालों में नीरज ने पदक की उम्मीदों को जिंदा रखा है। इसमें दो राय नहीं कि वह एक प्रतिभावान एथलीट है लेकिन उसकी स्पर्धा में यूरोपीय देशों के ऊंची लंबी कद काठी के थ्रोवर अपना वर्चश्व बनाए हुए हैं। फ़िरभी उसमें दम खम की कमी नहीं और तकनीक के मामले में भी वह परिपक्व है। एक अन्य थ्रोवर शिव पाल भी सधे हुए कदमों से तैयार खड़ा है। नीरज और शिवपाल यदि अपना श्रेष्ठ दे पाते हैं तो पदक के करीब पहुंच सकते हैं।
पारखियों की नजर में लंबी कूद में मुरली पी शिव शंकर पदक के आस पास पहुँच सकता है। 20 किलोमीटर रेस और वाक में यदि कोई भारतीय अंतिम आठ में स्थान बना ले तो बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। पुरुषों की चार गुना चार सौ और इसी वर्ग की मिक्स्ड रिले में खाना पूरी से कुछ बेहतर चलेगा। तेजिंदर पाल तूर और कमल प्रीत कौर क्रमशः गोला फेंक और चक्का फेंक में अपना श्रेष्ठ दे पाए तो उनकी ओलंम्पिक यात्रा सफल मानी जाएगी।
भारतीय एथलीटों के पिछले प्रदर्शनों को देखें तो ओलंम्पिक में बार बार नाकामी हाथ लगी है। पदक के लिए इस बार भी खूब खून पसीना बहाना पड़ेगा। टारगेट फिर एक अदद पदक ही रहेगा। देखते हैं कौन जीत लाता है या वही विफलता की कहानी दोहराई जाएगी।
हालांकि भारतीय एथलेटिक के कर्णधार पिछले कई सालों से पदक के दावे उछाल रहे हैं लेकिन ओलंम्पिक दर ओलंम्पिक प्रदर्शन में गिरावट आई है। हिमा दास ऐन मौके पर चोट खा बैठीं तो दुति चंद पदक जीतने नहीं, राष्ट्रीय रिकार्ड बेहतर करने जा रही है। कई अन्य एथलीट भी इसलिए भाग ले रहे हैं क्योंकि उन पर क्वालीफायर के लचर नियमों की कृपा हुई है।