Now the challenge of overcoming just hockey New Zealand

अब हॉकी के लिए न्यूजीलैंड से पार पाने की चुनौती!

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

क्रिकेट या हॉकी में न्यूजीलैंड कोई बहुत बड़ी ताकत नहीं रहा। लेकिन वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में न्यूजीलैंड ने जैसा प्रदर्शन किया उसे देखते हुए भारतीय हॉकी टीम भी हल्के फुल्के मनोवैज्ञानिक दबाव में जरूर होगी। हालांकि जिस देश ने ओलंपिक का टिकट पाया है कमजोर आंकना समझदारी नहीं हो सकती।

दरअसल भारतीय हॉकी टीम को टोक्यो ओलंपिक में अभियान की शुरुआत 24 जुलाई को न्यूजीलैंड के विरुद्ध करनी है। यही कारण है कि जाने माने ओलंपियन अपनी टीम को खबरदार कर रहे हैं और कहते हैं कि हॉकी ने भी यदि प्रतिद्वंद्वी को कमजोर आंकने की भूल की तो नतीजा क्रिकेट जैसा हो सकता है। वैसे भी पहला मुकाबला हमेशा मुश्किल भरा होता है और हर टीम या खिलाड़ी जीत के साथ शुरुआत करना चाहता है।

हालांकि पूर्व ओलंपियन अशोक ध्यान चंद, जफर इकबाल, राजिंदर सिंह असलम शेर खान आदि मानते हैं कि भारत की रैंकिंग न्यूजीलैंड के मुकाबले कहीं ऊपर की है। लेकिन पिछले प्रदर्शनों को देखते हुए भारत को लेकर कोई दावा करना जोखिम भरा हो सकता है। कारण भारतीय हॉकी पिछले 60 सालों से सिर्फ गलत गहमी और दावों में जी रही है। 1980 के आधे अधूरे ओलंपिक ने सालों के सूखे को कम जरूर किया परंतु भरोसे में भी कमी आई है।

हालत यह है कि जब कभी भारतीय हॉकी के कर्णधार, कप्तान या कोच पोडियम पर खड़े होने का दम भरते हैं तो आम हॉकी प्रेमी विश्वास नहीं करना चाहता। वह जानता है कि इन तिलों में अब तेल नहीं रहा।

लेकिन टोक्यो ओलंपिक के लिए चुनी गई टीम पर इसलिए भरोसा किया जा रहा है क्योंकि आधिकाँश खिलाड़ी अनुभवी हैं और सात आठ साल से एक साथ खेल रहे हैं। कोच जान रीड ने हालांकि कोविड को लेकर चिन्ता जतलाई है लेकिन यह चलने वाला बहाना नहीं है क्योंकि ऐसा सभी टीमों के साथ है।

भारत के ग्रुप में न्यूजीलैंड के अलावा ऑस्ट्रेलिया, स्पेन और मेजबान जापान हैं। लेकिन शुरुआती मैच हमेशा टफ होता है। आगे भारत का सामना बेल्जियम, अर्जेन्टीना, जर्मनी और हालैंड से भी हो सकता है, जोकि पूल बी में हैं, जिसे ग्रुप आफ डेथ माना जा रहा है।

पूर्व खिलाड़ी और हॉकी जानकारों की राय में भारतीय टीम अन्य की तुलना में ज्यादा अनुभव रखती है और रिकार्ड भी बेहतर रहा है। उसने लगभग सभी टीमों को कहीं न कहीं परास्त किया है।

टोक्यो पहुंचने से पहले भारत को स्पेन, जर्मनी, इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध प्रो लीग के मैच खेलने थे, जोकि कोरोना के चलते संभव नहीं हो पाए। टीम की तैयारी के लिए हॉकी इंडिया ने कुछ दौरों का कार्यक्रम भी बनाया था पर यात्रा प्रतिबंधों के कारण यहां भी निराशा हाथ लगी।

कुल मिला कर भारत को आधी अधूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरना है। यही हाल अन्य टीमों का भी है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि न्यूजीलैंड के विरुद्ध जीत से शुरुआत हुई तो इस बार भारतीय खिलाड़ी पदक जीत सकते हैं।

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