President of the All India Chess Federation (AICS), Sanjay Kapoor

शतरंज चली क्रिकेट की चाल

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

अखिल भारतीय शतरंज महासंघ(एआईसीएस)के नव निर्वाचित अध्यक्ष संजय कपूर आईपीएल की तर्ज पर भारतीय शतरंज लीग आयोजित करना चाहते हैं। उनका एक और सपना है कि भारत इस खेल में सुपर पावर बने। लेकिन अन्य खेलों की तरह उन्हें भी क्रिकेट का खौफ सता रहा है।

मीडिया से बात करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि क्रिकेट के साथ साथ शतरंज को भी कहीं किसी कोने में थोड़ी सी जगह जरूर दें। उनकी पीड़ा अन्य भारतीय खेलों जैसी है, जोकि जब तब क्रिकेट का रोना रोते रहते हैं।

सवाल यह पैदा होता है कि बाकी खेलों की तरह शतरंज भी क्रिकेट से क्यों डरता है? वैसे तो Chess और cricket की राशि एक है और दोनों ही ओलंपिक खेल नहीं हैं। फर्क इतना है कि क्रिकेट का टशन थोड़ा हटकर है और शतरंज दिखावे और छल छदम से दूर है।

एक देश का सबसे लोकप्रिय खेल है तो दूसरे की लोकप्रियता का कोई पैमाना नहीं है। यह भी सच है कि करोड़ों लोग शतरंज खेलते हैं फ़िरभी यह खेल दर्शकों को लुभाने वाला नहीं है।

संजय कपूर यह भी जानते हैं कि उनका खेल बहुत खर्चीला नहीं है। इस खेल में ताकत और दमखम की बजाय बुद्धिमता और चतुराई की ज्यादा जरूरत है। नये अध्यक्ष को पता है कि स्कूल स्तर पर यदि छात्रों को प्रोमोट किया जाए तो उनके खेल का दायरा बढ़ सकता है और अधिकाधिक खिलाड़ी इस खेल से जोड़े जा सकते हैं।

यही कारण है कि संजय स्कूल स्तर पर शतरंज क्रांति चाहते हैं। अर्थात अधिकाधिक खिलाड़ियों को राज्य एवम राष्ट्रीय इकाइयों से जोड़ने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। हर राज्य एसोसिएशन को 10 लाख की आर्थिक।मदद देने का एलान कर उन्होंने पहला मजबूत कदम बढ़ाया है।

भारतीय शतरंज महासंघ के नये अध्यक्ष ने नया टारगेट सेट किया है और चाहते हैं कि देश में 10 लाख नये खिलाड़ी तैयार किए जाएं और उनका पंजीकरण किया जाए। इस अभियान के लिए उन्होंने बाकायदा सभी राज्य इकाइयों को दस दस लाख रुपए की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है।

महासंघ ने 2024 के चेस ओलंपियाड के लिए बोली लगाने का भी फैसला किया है। साथ ही सुपर कैटेगरी लीग और महिला ग्रां प्री के आयोजन का इरादा भी व्यक्त किया है।

हर साल पांच विश्वस्तरीय टूर्नामेंट आयोजित करने की भी योजना है।

कुल मिलाकर शतरंज महासंघ ने अपने युवा अध्यक्ष की अगुवाई में बहुत कुछ करने का ऐलान किया है। भरत सिंह चौहान जैसा काबिल, अनुशासितअनुभवी और जेब से दमदार सचिव उनके साथ है।

लेकिन शतरंज को लोकप्रिय खेल बनाने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है। शतरंज ओलंपियाड के आयोजन से ही काम नहीं चलने वाला। यदि विश्वस्तर पर इस खेल को ओलंपिक में शामिल करने के प्रयास किए जाएं और क्रिकेट की तरह रोमांच का तड़का लगाया जाए तो खेल और खिलाड़ियों की लोकप्रियता में इज़ाफ़ा हो सकता है।

इतना ही नहीं हमें विश्वनाथ आनंद जैसे महान चैंपियन कुछ और चाहिए। ऐसा तब ही हो सकता है जब स्कूलऔर ग्रासरूट स्तर पर खेल को गंभीरता से लिया जाए। सिर्फ योजना बनाना और दावे करना काफी नहीं होगा।

यह न भूलें कि कुछ साल पहले तक भारत में क्रिकेट की हैसियत अन्य खेलों जैसी ही थी। लेकिन 1983 की विश्व कप जीत , गावस्कर, कपिल जैसे ख़िलाडियों के प्रदर्शन और आईपीएल ने इस खेल को खास बना दिया है। शतरंज महासंघ को भी कुछ ऐसी चाल सोचनी होगी।

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