SGFI is the canker of Indian sports; Ministry o Sports show seriousness

भारतीय खेलों का नासूर है एसजीएफआई; खेल मंत्रालय गंभीरता दिखाए!

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

“यदि शासन , प्रशासन, पक्ष, विपक्ष, खि लाड़ी, अधिकारी, अविभावक, ओलंपियन और तमाम चैंपियन सचमुच् खेलों का भला चाहते हैं तो आज और अभी भारतीय स्कूली खेल संघ(एसजी एफ आई) को भंग करें और ऐसे पुख्ता इंतजाम करें ताकि इस प्रकार की फर्जी संस्थाएं फिर कभी सिर न उठा सकें।

” एक जाने माने ओलंपियन की इस प्रतिक्रिया को भले ही देश के खेलों को खाने वाले गंभीरता से ना लें लेकिन वक्त का तकाजा यही है। भारत को 2028 में खेल महाशक्ति बनाने का दावा करने वाले और ओलंपिक पदक तालिका में पहले दस देशों में स्थान देने वाले कमअक्ल और खेल गणित में कमजोर अधिकारी चाहें तो शीघ्र अति शीघ्र ठोस कदम उठा सकते हैं।

कौन नहीं चाहता कि ओलंपिक गांव में बार बार और लगातार तिरंगा फहराए? कौन देशभक्त अपने खिलाड़ियों को विश्व मानचित्र पर उभरते नहीं देखना चाहता? लेकिन ऐसा तब ही संभव है जब हमारी बुनियाद मजबूत होगी, हमारे खिलाड़ियों को ग्रासरूट स्तर से प्रोमोशन मिलेगा और उनके साथ कोई छल कपट नहीं होगा! दुर्भाग्यवश, हमारे स्कूली खेल हमेशा के भ्र्ष्टाचार और लूटमार से पीड़ित रहे हैं। विश्वास न हो तो राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वे कर लिया जाए।

माता पिता, स्कूली खेल आयोजकों, खिलाड़ियों और अन्य जिम्मेदार लोगों से एसजीएफआई के बारे में पूछ लिया जाए। पिछले पैंतीस सालों के अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूँ कि स्कूली खेल उभरती प्रतिभाओं की हत्या करने, उन्हें खेल विमुख करने और देश का खेल भविष्य बिगाड़ने का अखाड़ा हैं। कई पीड़ित खिलाड़ी, देश के जाने माने कोच और खिलाड़ी चाहते हैं कि एसजीएफआई को आज और अभी भंग कर दिया जाए।

भुक्त भोगी और स्कूली खेलों के रास्ते ओलंपिक तक का सफर तय करने वाले खिलाड़ी और उनके गुरु खलीफा भी मानते हैं कि उम्र का फर्जीवाड़ा और अपनेअपनों को रेबड़ी बांटने वाले एसजीएफआई का अस्तित्व समाप्त नहीं किया गया तो भारत कभी भी खेल महाशक्ति नहीं बन पाएगा।

14,17 और19 साल के आयुवर्ग में 18 से 25 साल तक के खिलाड़ियों की घुसपैठ कहाँ तक न्यायसंगत है? हैरानी वाली बात यह है कि खेल मंत्रालय को सैकड़ों शिकायतें भेजी जाती रही हैं लेकिन शायद ही कभी कोई कार्यवाही हुई हो। अब तो जाग जाओ भारत को खेल शक्ति बनाने का दावा करने वालों! अब तो मौका और दस्तूर भी है।

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