Dhyan Chand and Balbir are real Bharat Ratna

पुण्य तिथि पर विशेष: ध्यान चंद और बलबीर हैं असली भारत रत्न!

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

आज भारत के श्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी सरदार बलबीर सिंह सीनियर की पहली पुण्य तिथि है। फेस बुक पर उनकी बिटिया सुशबीर भोमिया ने अपने स्वर्गीय पिता को एक मार्मिक पत्र लिखा है और कहा है कि वह उन्हें बहुत मिस कर रही हैं। वह अपने पिता की उपलब्धियों और उनके साथ बिताए मधुर पलों को याद करते हुए भावुक हो जाती हैं। बेशक, हर भारतीय हॉकी प्रेमी को उनकी कमी खलती है। वह एक चैंपियन के साथ साथ साथ जमीन से जुड़े महान इंसान भी थे।

आज़ाद भारत के श्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी, तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता, ओलंपिक फाइनल में सर्वाधिक गोलों का कीर्तिमान स्थापित करने वाले ‘पद्‌मश्री’बलबीर सीनियर का निधन भारतीय हॉकी और देश के लिए बड़ा आघात था। लेकिन अपना सब कुछ देश पर समर्पित करने वाले महान खिलाड़ी को इस देश ने जो दिया, उससे कहीं ज्यादा के हकदार थे।

Special on the death anniversary of Major Dhyanchand died 3 December 1979

1948, 1952 और फिर1956 में जब उन्होने देश के लिए ओलंपिक स्वर्ण पदकों की तिकड़ी जमाई तो सरकार ने 1957 में उन्हें पदम पुरस्कार के काबिल समझा। जिस खेल को आज तक राष्ट्रीय खेल का अघोषित दर्ज़ा दिया जाता रहा है, उसके चैम्पियन खिलाड़ी के प्रति सरकार का नज़रिया हमेश से निंदनीय रहा है। पहले दद्दा ध्यानचन्द और फिर बलबीर जी की हमेशा अनदेखी की गई।

हैरानी वाली बात यह है हॉकी जादूगर ध्यान चन्द को भारत रत्न देने की माँग वर्षों तक की जाती रही। हॉकी फ़ेडेरेशन, खिलाड़ियों और हॉकी प्रेमियों ने जब तब आवाज़ बुलंद की लेकिन नक्कारखाने में तूती बजी और अपने आप शांत होती रही। रह रह कर बलबीर सीनियर को भारत रत्न देने की भी बात चली लेकिन किसी ने नहीं सुनी।

ख़ासकर, क्रिकेट की खाने वाली सरकारें गूंगी बहरी हो गईं। भारत रत्न तो दूर की बात है, बलबीर को तो पद्‌म श्री से आगे भी नहीं बढ़ने दिया गया, जबकि कई महारथी जिन्होने कद्दू पर भी तीर नहीं चलाया, पद्‌म भूषण और विभूषण ले उड़े। इस बारे में जब ज़िम्मेदार लोगों से पूछा गया तो उन्होने बेहद हास्यास्पद जवाब दिया और कहा कि बलबीर ने कभी आवेदन ही नहीं किया।

इस बीच वह कनाडा में भी रहने लगे थे। उन्हें कौन समझाए कि खेले तो भारत के लिए थे। अर्थात एक महान खिलाड़ी को भीख माँगने के लिए कहा गया। नेताओं की चमचागिरी करने वाले और सरकारी भ्रष्टाचार में पले बढ़े कई खिलाड़ी, जिन्होने सिर्फ़ एशियाड में पदक जीता, पद्‌म पुरस्कार के हकदार बन गये, एक ओलंपिक कांस्य जीतने वाले भी पद्म विभूषण बने बैठे हैं।

भारतीय खेल प्रेमी पूछते हैं कि जब सचिन तेंदुलकर भारत रत्न हो सकते हैं तो हिटलर और तमाम दुनियाँ को अपनी हॉकी से नचाने वाले दद्दा और सरदार बलबीर ने कौनसा गुनाह किया था? यह ना भूलें कि इस देश में मृत लोगों के कच्चे चिट्ठे खंगालने की परंपरा रही है और उन्हें कब्र से निकालकर, उनकी राख पर लांछन लगाए जाते हैं।

तो फिर बलबीर सीनियर को सम्मान देने के बारे में क्यों नहीं सोचा जा सकता? एक पते की बात यह भी है कि बलबीर सीनियर के कुछ पदक भारतीय खेल प्राधिकरण(साई) से कहीं गुम हो गये थे, जिस कारण से वह हमेशा दुखी रहे। भला ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है!

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