Special on the death anniversary of Major Dhyanchand died 3 December 1979

गांधी-नेहरू सा सम्मान मिला विश्व रत्न मेजर ध्यानचंद की पुण्य तिथि पर विशेष(देहांत 3 दिसम्बर 1979)

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

झांसी में जब मेजर ध्यानचंद का स्वास्थ अत्याधिक बिगड़ने लगा तो परिजनों और स्नेही जनों ने इस बात का निर्णय लिया कि उन्हें बेहतर उपचार के लिए दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया जाय। मेजर ध्यानचंद को परिजनों द्वारा रेल के साधारण डिब्बे में झांसी से नई दिल्ली एम्स लाया गया जहां उन्हें जनरल वार्ड में भर्ती करा दिया गया।

कुछ दिन उपचार के चलते उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती चली गई और हॉकी के जादूगर और दुनिया के महानतम हॉकी खिलाड़ी ने 3 दिसंबर 1979 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

इस दुखद समाचार को एम्स के जूनियर डॉक्टर गजेंद्र सिंह चौहान ने मेजर ध्यानचंद के सुपुत्र ओलंपियन अशोक कुमार के साथ शेयर किया। डॉक्टर ने भरे हुए गले से रूंधती आवाज़ में कहा ‘अशोक कुमार दुनिया के महानतम खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने अब इस दुनिया को अलविदा कह दिया है’। डॉक्टर गजेंद्र सिंह चौहान और कोई नहीं बल्कि महाभारत सीरियल में युधिष्ठिर की भूमिका निभाने वाले कलाकार हैं।

मेजर ध्यानचंद की मृत्यु का समाचार जंगल में आग की तरह फैल जाता है । एम्स कैंपस मीडिया कर्मियों खिलाड़ियों, और खेल प्रेमियों से भरा हुआ था। प्रख्यात कमेंटेटर शोकाकुल जसदेव सिंह अशोक कुमार को गले लगाकर हिम्मत देते है। इसी बीच परिजनों को यह सूचना दी जाती है की मेजर ध्यानचंद के पार्थिव शरीर को नई दिल्ली से झांसी हेलीकॉप्टर से भेजे जाने का प्रबंध किया जा चुका है।

इस प्रकार मेजर ध्यानचंद के शव को नई दिल्ली से झांसी हेलीकॉप्टर से लाया जाता है जहां झांसी हवाई अड्डे पर उनके पार्थिव शरीर को उतारने के पश्चात उनके पैतृक निवास स्थान सिपरी बाजार की ओर ले जाने की व्यवस्था होती है। सड़क के दोनों किनारों पर हजारों लोग सदी के महानायक को अंतिम विदाई देने खड़े रहते हैं ।

पार्थिव शरीर को उनके सिपरी बाजार स्थित पैतृक निवास स्थान में रखा जाता है । उनके अभिन्न मित्र , झांसी के तत्कालीन सांसद और मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित करवाने वाले पुरोधा पंडित विश्वनाथ शर्मा भी दिल्ली से झांसी पहुंच जाते है और और फिर परिजनों से चर्चा करने के बाद यह निर्णय लेते हैं कि मेजर ध्यानचंद का अंतिम संस्कार श्मशान घाट में न करके उनके निवास के समीप स्थित हीरोज मैदान पर किया जाएगा, जोकि उनकी कर्म भूमि थी। इस निर्णय से प्रशासनिक अधिकारी सहमत नहीं थे ।

पंडित विश्वनाथ शर्मा इस बात को लेकर वहां धरने पर बैठ गए। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा दलील दी गई कि सार्वजनिक स्थल पर अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी जा सकती है ।इस बात पर पंडित विश्वनाथ शर्मा ने जन समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने परिवार वालों से बात की और यह घोषित कर दिया कि ध्यानचंद का अंतिम संस्कार यही हीरोज ग्राउंड पर होगा ।उन्होंने कहा की गांधीजी नेहरू जी आदि का संस्कार यदि सार्वजनिक स्थल पर हो सकता है तो फिर देश के दुनिया के महानतम खिलाड़ी ध्यानचंद का क्यों नहीं ?

ध्यानचंद जी का भी उतना ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व है जितना भारत के महान नेताओं का, जिनका अंतिम संस्कार सार्वजनिक स्थानों पर किया गया ।इस तर्क के आगे प्रशासनिक अधिकारी निरुत्तर हो गए और इसके साथ वहां उपस्थित जनसैलाब ने पंडित विश्वनाथ शर्मा की बात का समर्थन करते हुए मेजर ध्यानचंद की याद में गगनभेदी नारों से पूरा आसमान को गुंजा दिया। उमड़ते जनसैलाब और जन भावनाओं को देखते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने आखिरकार हीरोज मैदान पर मेजर ध्यानचंद के अंतिम संस्कार की अनुमति दे दी।

हॉकी प्रेमी जानते हैं कि 1936 के बर्लिन ओलिंपिक खेलो का आयोजन तानाशाह हिटलर के नेतृत्व में हुआ था, जो दुनिया को यह जतलाना चाहता था कि उसकी नस्ल दुनियां की सर्वश्रेष्ठ नस्ल है और किसी से परास्त नही हो सकती।

ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने न सिर्फ लगातार तीसरा ओलंपिक गोल्ड जीता, हिटलर का घमंड भी तोड़ा। इस विजय से दुनियां को भारत का यह संदेश भी गया कि कोई भी नस्ल या रंग बड़े नही होते वरन कौशल विन्रमता और संस्कृति से देश जाना पहचाना जाता है।

आर्मी द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर देते हुए अपने महान सैनिक और राष्ट्र के गौरव ध्यानचंद को सलामी दी गई ।जेष्ठ पुत्र बृजमोहन सिंह द्वारा अपने महान पिता को मुखाग्नि दी गई। उपस्थित जनसैलाब ने अपनी नम आंखों से सदी के महानायक को अलविदा और अंतिम प्रणाम किया ।ध्यानचंद के हीरोज के साथी मथुरा प्रसाद, नन्हे लाल, जगदीश शरण माथुर, ए डी बाबा, चटर्जी साहब,लल्लू शर्मा चाचा जी ने बड़े भारी मन से अपने जीवन के सबसे अच्छे मित्र और हीरोज के अपने खिलाड़ी को अलविदा कहा।

सौजन्य:
अशोक ध्यानचंद
हेमंत चंद दुबे बबलू बैतूल

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