क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलम्पिक के नतीजों ने भारतीय खेल आकाओं और खिलाडियों के दिमाग इस कदर आसमान तक चढ़ा दिए थे कि उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि इम्तहान अभी और भी हैं। आनन् फानन में ही खिलाडियों और कोचों को खेल रत्न, द्रोणाचार्य अवार्ड, अर्जुन अवार्ड, पद्म श्री और लाखों के सम्मान बाँट दिए गए। आज भी जिन खिलाड़ियों को जम कर मान सम्मान बांटा जा रहा है उनमें महिला हॉकी टीम बिना कोई पदक जीते भी पहले नंबर पर विराजमान है ।
लेकिन अपनी महिला टीम ने एशिया कप में जापान और कोरिया जैसी टीमों के विरुद्ध हथियार डाल कर यह साबित कर दिया कि उनका ओलम्पिक प्रदर्शन महज तीर तुक्का था, देश के पूर्व हॉकी ओलम्पियनों का ऐसा मानना है। वे यह भी कह रहे हैं कि कोरोना के चलते बहुत सी यूरोपीयन टीमों ने ओलम्पिक को गंभीरता से नहीं लिया था या उनकी बेहतर खिलाडी भाग नहीं ले पाई थीं।
खैर यह बहाना नहीं चलने वाला क्योंकि भारतीय टीम के पास भी कई बहाने हैं। टीम प्रबंधन यह कह रहा है कि उनकी कुछ सीनियर लड़कियों ने एशिया कप में भाग नहीं लिया, जबकि सच्चाई यह है कि सीनियर लड़कियां टीम पर बोझ बन चुकी थीं।
बेशक, देश के लिए मान सम्मान और पदक जीतने वाले हर खिलाडी को सम्मान मिलना चाहिए लेकिन सरकारें जब खेलों का इस्तेमाल अपने निजी स्वार्थों के लिए करने लगें तो वही होता है जैसा महिला हॉकी टीम के साथ हो रहा है।
जो टीम ओलम्पिक में चौथा स्थान पाने के बाद भी बड़े से बड़े सम्मान ले उडी उसकी असलियत अब सामने आ रही है। लोग कह रहे हैं कि भारतीय महिला टीम पता नहीं कैसे ओलम्पिक में चौथा स्थान पा गई? टोक्यो से लौटे चंद महीने ही हुए हैं और जापान, कोरिया जैसी टीमें हैसियत का आइना दिखाने लगी हैं।
कुछ द्रोणाचार्य अवार्डी कह रहे हैं कि विदेशी कोचों पर मेहरबान हॉकी इंडिया और साईं ने भारतीय हॉकी को बर्बाद कर दिया है। पुरुष टीम के जूनियर फ्रांस से और सीनियर जापान से पिट रहे हैं तो फिर अपने कोच कौन से बुरे हैं। कुछ पूर्व खिलाडियों और कोचों के अनुसार यदि हॉकी के कर्णधार अब भी नहीं जागे तो कुछ माह बाद होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों और एशियाई खेलों में बुरी फजीहत हो सकती है।
विश्व हॉकी में जापान और कोरिया की कोई बड़ी पहचान नहीं है फिरभी यदि भारतीय लड़कियां उनसे हार जाती हैं तो मामला गंभीर है। एक पूर्व कप्तान के अनुसार महिला टीम को हर प्रकार से प्रोत्साहन और पुरस्कार मिल रहे हैं लेकिन खिलाडियों को ज्यादा सर चढ़ाना कितना गलत हो सकता है हाल के नतीजों से पता चल जाना चाहिए।
पिछली बार की चैम्पियन और ओलम्पिक सेमीफइनल तक पहुँची जिस टीम को देश ने सर आँखों बैठाया वह खिताब से बहुत दूर रह गई। तो फिर लोग क्यों नहीं कहेंगे? लोगों ने तब तो कुछ भी नहीं कहा था जब चौथे पायेदान की टीम को चैम्पियनों जैसा सम्मान दिया गया था।