आत्मघाती दाव कुश्ती के लिए घातक

अध्यक्ष महोदय पर लगे आरोपों ने भारतीय कुश्ती को चारों खाने चित दे मारा है और वो दुनियाभर में बन गई है

अपने अध्यक्ष के आचरण पर उंगली उठा कर पहलवानों ने खेल के अंदर की गंदगी को बीच सड़क पर ला पटका है, जिसकी सड़ांध दूर-दूर तक फैल चुकी है

राजेंद्र सजवान

कुछ दिन पहले तक भारतीय कुश्ती देश के लगभग सभी खेलों पर भारी थी। पहलवानों के शानदार प्रदर्शन ने इस खेल को अन्य खेलों की तुलना में बहुत ऊंचा उठा दिया था और यहां तक कहा जाने लगा था कि शायद एक दिन कुश्ती देश का राष्ट्रीय खेल बन सकता है। कोरोना काल से पहले बाकायदा इस दिशा में प्रयास भी किए जाने लगे थे। लेकिन हाल फिलहाल के घटनाक्रम ने कुश्ती को चारों खाने चित कर दिया है। 

  

उस समय जब भारतीय कुश्ती सुशील, योगेश्वर दत्त और साक्षी मलिक के ओलम्पिक पदकों से चमचमा रही थी और एशियाड व कॉमनवेल्थ खेलों में हमारे पहलवान पदक जीत रहे थे तो सबसे ज्यादा रौनक फेडरेशन मुखिया ब्रज भूषण शरण सिंह के चेहरे पर थी। ऐसा स्वाभाविक भी था। भारतीय कुश्ती का नयापन उनके प्रयासों से ही संभव हो पाया था। पुरुष और महिला पहलवानों के अच्छे दिन आ गए थे। मौका देख कर इस संवाददाता ने भरे दरबार में नेताजी से पूछ लिया, “क्या कुश्ती को राष्ट्रीय खेल बनाने के बारे में सोच रहे हैं?”

  

नेताजी ने पहले ना नुकुर किया लेकिन कुछ सोच-विचार के बाद बोले की इस बारे में किसी दिन संसद में सवाल करेंगे और पूछना चाहेंगे कि क्या ऐसा हो सकता है? कई मौके आए गए लेकिन शायद वे इस मामले को उठा नहीं पाए। चूंकि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल नहीं है और उसकी हालत बेहद खराब हो चुकी है, इसलिए हॉकी को गाहे-बगाहे राष्ट्रीय खेल कहना ठीक भी नहीं है। लेकिन कुश्ती आज जिस मुकाम पर खड़ी है, उसे देख कर नहीं लगता कि यह खेल जल्दी रफ्तार पकड़ पाएगा।

   रवि दहिया और बजरंग पूनिया के ओलम्पिक पदकों ने भारत को कुश्ती मानचित्र पर बहुत ऊंचा उठा दिया था। महिला पहलवानों का दमदार प्रदर्शन भी खेल को समृद्ध बना रहा था लेकिन अध्यक्ष महोदय पर लगे आरोपों ने भारतीय कुश्ती को चारों खाने चित दे मारा है और दुनियाभर में भारतीय कुश्ती तमाशा बन गई है। ऐसे में अपने पहलवानों का मनोबल सातवें आसमान से धड़ाम से आ गिरा है।

  

नामचीन पहलवानों के आरोपों ने ना सिर्फ खेल को बदनाम कर दिया है अपितु मां-बाप को यह सोचने के लिए विवश किया है कि अपने बेटे-बेटियों को कुश्ती में उतारें या चार दीवारी में कैद कर लें।

   अपने अध्यक्ष के आचरण पर उंगली उठा कर पहलवानों ने खेल के अंदर की गंदगी को बीच सड़क पर ला पटका है, जिसकी सड़ांध दूर-दूर तक फैल चुकी है। देखना यह होगा कि देश की पहलवानी अब किस दिशा में बढ़ती है, क्योंकि अब राह मुश्किल हो गई है।

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