नेहरू हॉकी  से  राष्ट्रीय हॉकी तक मातम ही मातम

देश में हॉकी के लिए माहौल बनाने वाली संस्थाएं बदहाली की शिकार हैं

हाल ही में नेहरू हॉकी सोसाइटी से जुड़े कुछ पदाधिकारियों और वरिष्ठ खिलाड़ियों ने नींद टूटने के बाद अपनी सोसाइटी की मौत का मातम मनाना शुरू किया है

नेहरू हॉकी को उसके अपनों  ने बर्बाद किया है, क्योंकि पूर्व पदाधिकारियों ने वक्त रहते अपने सही उत्तराधिकारियों का चयन नहीं किया

खेल बिगाड़ने वाले भ्रष्टाचारियों को सरे बाजार नंगा करना होगा, वरना नेहरू हॉकी और भारतीय हॉकी बस इतिहास बन कर रह जाएगी

1964 से अपना सफर शुरू करने वाली सोसाइटी ने लगभग 30 साल तक भारतीय हॉकी को सजाने संवारने में बड़ी भूमिका निभाई

राजेंद्र सजवान

एक तरफ भारतीय हॉकी वापसी के लिए छटपटा रही है तो दूसरी तरफ देश में हॉकी के लिए माहौल बनाने वाली संस्थाएं बदहाली की शिकार हैं। भले ही राष्ट्रीय टीम को नवीन पटनायक सरकार कुछ साल तक जिन्दा रख पाए लेकिन खेल को जिन्दा रखने के लिए जो कुछ जरूरी हैं वह सब नहीं हो पा रहा । ताजा उदाहरण तिल-तिल कर मरती नेहरू हॉकी है, जिसका कुछ साल पहले तक बड़ा नाम था और जिसमें भाग लेना कभी हर खिलाडी का सपना होता था ।

हाल ही में नेहरू हॉकी सोसाइटी से जुड़े कुछ पदाधिकारियों और वरिष्ठ खिलाड़ियों की नींद टूटी और उन्होंने अपनी सोसाइटी की मौत का मातम मनाना शुरू किया है । उन्हें लगता है कि किसी लुटेरे ने उनके सपनों की सोसाइटी को लूट खाया है। सोशल मीडिया पर सोसाइटी की बदहाली की खबरें चल रही हैं जिनमें यह रोना रोया जा रहा है कि नेहरू हॉकी टूर्नामेंट सोसाइटी की जमा पूंजी ख़त्म हो गई है और जल्दी ही नेहरू सोसाइटी दम तोड़ने वाली है।

   इसमें दो राय नहीं कि 1964 से अपना सफर शुरू करने वाली सोसाइटी ने लगभग 30 साल तक भारतीय हॉकी को सजाने संवारने में बड़ी भूमिका निभाई। ओलम्पियन और विश्व चैम्पियन खिलाड़ी नेहरू हॉकी टूर्नामेंट में खेल कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते थे। धीरे-धीरे सोसाइटी ने अपना विस्तार किया और स्कूल-कॉलेज के खिलाडियों के लिए दरवाजे खोल दिए। एक वक्त ऐसा भी आया जब देश की तमाम टीमों का गठन नेहरू हॉकी के प्रदर्शन के आधार पर किया जाता था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।

 

  बेशक, नेहरू हॉकी को उसके अपनों  ने बर्बाद किया है। पूर्व पदाधिकारियों ने वक्त रहते अपने सही उत्तराधिकारियों का चयन नहीं किया और जिन्होंने सत्ता पर कब्जा किया उनकी नीयत में खोट बताया जा रहा है । भले ही आयोजन हो रहे हैं लेकिन जमा पूंजी लुटाई जा चुकी है और लुटेरे भी अंदर के ही अवसरवादी हैं। हैरानी वाली बात यह है कि कोई भी आगे बढ़ कर अवसरवादियों के नाम नहीं लेना चाहता। इस बर्बादी में हॉकी इंडिया के एक पूर्व अधिकारी की दादागिरी का भी बड़ा हाथ रहा है, जिसने अनुशासन और अकड़ के नाम पर देश के कई हॉकी आयोजनों की कमर तोड़ डाली। नतीजा सामने है, भारतीय हॉकी आज कहां खड़ी है, किसी से छिपा नहीं है।

   कुछ पूर्व खिलाडियों के अनुसार, देश में हॉकी का कारोबार करने वाली हॉकी इंडिया, राज्य स्तरीय इकाइयों और पूर्व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को अब जाग जाना चाहिए। शुरुआत नेहरू हॉकी और अन्य आयोजनों को जिंदा करने की है। खेल बिगाड़ने वाले भ्रष्टाचारियों को सरे बाजार नंगा करना होगा, वरना नेहरू हॉकी और भारतीय हॉकी बस इतिहास बन कर रह जाएगी!

1 thought on “नेहरू हॉकी  से  राष्ट्रीय हॉकी तक मातम ही मातम”

  1. It is really painful to see Nehru Hockey going down in such a manner.
    I request media to cover all hockey events in capital and can be printed on City page rather than sports page…

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