और कितना समय चाहिए, मिस्टर इगोर?

  • मिस्टर इगोर, यह ना भूलें कि आप हर बड़े आयोजन से पहले बहाने बनाते हैं, और खिलाड़ियों एवं टीम प्रबंधन की खामियां छुपाने के लिए भारतीय फुटबॉल प्रेमियों को बरगलाते आ रहे हैं
  • लेकिन कसूर सिर्फ इगोर का नहीं है क्योंकि अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) ने विदेशी के मोह में पड़कर अपने कोचों को पूरी तरह से भूला दिया है
  • फुटबॉल जानकारों की राय में पिछले तीस सालों में जितना पैसा विदेशियों पर बर्बाद किया, उसका कोई रिजल्ट नहीं निकला। आज भी भारतीय फुटबॉल जहां की तहां खड़ी है

राजेंद्र सजवान

“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कुछ इसी तर्ज पर भारतीय फुटबॉल के चीफ कोच इगोर इस्टीमक कह रहे हैं, “तुम मुझे समय दो, मैं तुम्हें बेहतर रिजल्ट दूंगा।” हाल ही में एक साक्षात्कार में इगोर ने भारतीय टीम के भावी कार्यक्रम को लेकर नाराजगी व्यक्त की है। कारण, 12 जनवरी से शुरू हो रहे एशिया कप की तैयारी के लिए खिलाड़ियों को पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है।

 

   एशिया कप 12 जनवरी से शुरू हो रहा है। लेकिन इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) 29 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय ब्रेक पर जा रही है। ऐसे में खिलाड़ियों को तैयारियों कम समय मिल पाएगा। वैसे भी भारत को अपने ग्रुप मुकाबलों में ऑस्ट्रेलिया, उज्बेकिस्तान और सीरिया जैसी कठिन टीमों से निपटना है, जिनसे पार पाना आसान नहीं होगा।

   चूंकि सफर आसान नहीं होगा, इसलिए हेड कोच साहब ने हमेशा की तरह बहानेबाजी शुरू कर दी है। कोई उनसे पूछे तो सही कि चार साल बीत जाने के बाद भी वे भारतीय फुटबॉल को किस हद तक सुधार पाए हैं। उन्हें और कितना समय चाहिए? इगोर खुद नामी अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी और कोच रहे हैं। उन्हें यह भी पता होगा कि दुनिया की छोटी-बड़ी टीमों के खिलाड़ी बड़े-बड़े क्लबों में खेलते हैं और पांच-सात दिन एक साथ खेल कर प्रमुख आयोजनों में उतरते हैं। तो फिर भारतीय खिलाड़ियों के लिए लम्बे प्रशिक्षण शिविर की मांग किस लिए की जा रही है।

   मिस्टर इगोर, यह ना भूलें कि आप हर बड़े आयोजन से पहले बहाने बनाते हैं, और खिलाड़ियों एवं टीम प्रबंधन की खामियां छुपाने के लिए भारतीय फुटबॉल प्रेमियों को बरगलाते आ रहे हैं। सच तो यह है कि भारतीय फुटबॉल को देने के लिए आपके पास कुछ खास नहीं है। आपके ऊपर और औसत दर्जे के खिलाड़ियों पर गरीब देशवासियों का करोड़ों रुपया खर्च हो रहा है। कृपया रोना-धोना बंद कर दें। लेकिन कसूर सिर्फ इगोर का नहीं है। अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) ने विदेशी के मोह में पड़कर अपने कोचों को पूरी तरह से भूला दिया है। फुटबॉल जानकारों की राय में पिछले तीन सालों में जितना पैसा विदेशियों पर बर्बाद किया, उसका कोई रिजल्ट नहीं निकला। आज भी भारतीय फुटबॉल जहां की तहां खड़ी है।

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