बस खानापूरी रह गया है डूरंड कप!

  • सर्विसेज स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड की देखरेख चल रहे विश्व फुटबॉल के सबसे पुराने टूर्नामेंटों में एक डूरंड कप में खेलने वाली टीमों और खिलाड़ियों का स्तर देख कर ज्यादातर पूर्व खिलाड़ी और फुटबॉल प्रेमी माथा पीट लेते हैं
  • दिल्ली में कई सालों तक डूरंड और डीसीएम फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता रहा लेकिन डीसीएम कप सालों पहले बंद हो गया और डूरंड जैसे-तैसे घिसट-घिसट कर चल रहा है और कभी भी दम तोड़ सकता है
  • पूर्व दिग्गज खिलाड़ियों ने माना कि भारतीय फुटबॉल लगातार फिर रही है, क्योंकि देश में बुनियादी ढांचा कमजोर हुआ है
  • पूर्व खिलाड़ियों का एक बड़ा वर्ग यह भी मानता है कि स्थापित फुटबॉल आयोजन घटे हैं। नतीजन खिलाड़ियों को हुनर दिखाने के कम अवसर बचे हैं

राजेंद्र सजवान

“वे सभी खेलप्रेमी सौभाग्यशाली थे जिन्हें 1950 से अगले तीस सालों तक भारतीय फुटबॉल को करीब से देखने का अवसर नसीब हुआ। … और वे बेहद खुश किस्मत थे, जिन्हें इन तीस-पैंतीस सालों में राष्ट्रीय टीम या देश के छोटे बड़े क्लबों के लिए खेलने का सौभाग्य मिला,” भारतीय फुटबॉल को सेवाएं देने वाले वेटरन खिलाड़ियों का ऐसा मानना है। स्वर्गीय पीके बनर्जी, मेवा लाल, अरुण घोष, मोहम्मद हबीब, हकीम, इंदर सिंह, मगन सिंह, जरनैल सिंह और दर्जनों अन्य खिलाड़ियों से जब कभी भारतीय फुटबॉल के गिरते स्तर की बात हुई सभी ने माना कि भारतीय फुटबॉल लगातार फिर रही है। इसलिए क्योंकि देश में बुनियादी ढांचा कमजोर हुआ है। लेकिन पूर्व खिलाड़ियों का एक बड़ा वर्ग यह भी मानता है कि स्थापित फुटबॉल आयोजन घटे हैं। नतीजन खिलाड़ियों को हुनर दिखाने के कम अवसर बचे हैं।

 

  फिलहाल विश्व फुटबॉल के सबसे पुराने आयोजनों में शुमार सर्विसेज स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड (एसएससीबी) की देखरेख डूरंड कप का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें खेलने वाली टीमों और खिलाड़ियों का स्तर देख कर ज्यादातर पूर्व खिलाड़ी और फुटबॉल प्रेमी माथा पीट लेते हैं। देश की राजधानी में कई सालों तक डूरंड और डीसीएम फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता रहा। सालों तक इन आयोजनों की धूम रही। इनमें खेलना हर खिलाड़ी का पहला सपना होता था।  सौभाग्यवश लेखक को भी इन आयोजनों भाग लेने का अवसर मिला। डीसीएम कप सालों पहले बंद हो गया था लेकिन डूरंड जैसे-तैसे चल रहा है। या यूं कह सकते हैं कि घिसट-घिसट कर चल रहा है और कभी भी दम तोड़ सकता है।

 

  उक्त दोनों आयोजनों में भारत के बड़े क्लब और संस्थान भाग लेने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देते थे। मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, मोहम्मडन स्पोर्टिंग, गोरखा ब्रिगेड, जेसीटी, केरला पुलिस, बीएसएफ, पंजाब पुलिस, मफतलाल, डेम्पो, वास्को और अनेकों नामी क्लबों के अलावा ईरान, कोरिया और अन्य देशों के खिलाड़ी डीसीएम और डूरंड में खेलने आते थे। राजधानी का डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम खचाखच भरा होता था। आज आलम यह है कि मुट्ठी भर लोग भी डूरंड कप देखने नहीं आ रहे। फुटबॉल देखने वाले घटे हैं तो खेल का स्तर देखकर रोना आता है।

 

  भले ही देश में आई-लीग और आईएसएल जैसे बड़े आयोजन हो रहे हैं लेकिन बीसवीं सदी के तीन दशकों जैसा खेल बस इतिहास बनकर रह गया है। सच तो यह है कि किसी भी टूर्नामेंट में दर्शकों की  संख्या हजार तक नहीं पहुंच पाती। कुछ समय पहले स्वर्गीय एसएस हकीम, हबीब, बीरू मल से बड़े आयोजनों की नाकामी पर बात हुई तो सभी दिवंगत आत्माओं ने माना कि खेलने के मैदान घट रहे हैं और अपने कोचों को अपमानित किया जा रहा है।

डीसीएम और डूरंड कप जैसे आयोजनों  में सुखपाल बिष्ट, हकीकत सिंह, अजीज कुरैशी, गुमान सिंह, आरएस मान, दिलीप, मातबीर बिष्ट, भीम भंडारी, तरुण राय, कमल जदली, सुभाशीष दत्ता, जूलियस, गोपी, लियाकत, दीपक नाथ, संतोष कश्यप, लक्ष्मण बिष्ट, दिगम्बर, रवि राणा, और दर्जनों अन्य खिलाड़ियों ने बड़ी पहचान बनाई। लेकिन आज देशभर में आयोजित किए जा रहे छुट-पुट आयोजनों का स्तर देख कर उन्हें ठेस पहुंचती है। इन खिलाड़ियों को लगता है कि देश में फुटबॉल की प्राथमिकता बदली है जो कि गंभीर मामला है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *