मीडिया को केवल क्रिकेट से प्यार, बाकी खेलों से रार

  • भारतीय एथलेटिक के सबसे सफलतम खिलाड़ी नीरज चोपड़ा चाहते हैं कि क्रिकेट की तरह एथलेटिक और अन्य खेलों को भी समाचार माध्यमों में जगह दी जानी चाहिए
  • नीरज और कुछ अन्य एथलीट ओलम्पिक और एशियाई स्तर पर शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन भारतीय मीडिया उन्हें किसी बड़ी उपलब्धि के चलते याद करता है और जल्दी ही उन्हें भुला दिया जाता है
  • क्रिकेट खिलाड़ियों को पालने पोसने वाला मीडिया हमेशा से ओलम्पिक खेलों के प्रति उदासीन रहा है और आने वाले सालों में भी हालात सुधरने वाले नहीं हैं
  • देश के प्रिंट मीडिया का हाल यह है कि उसे सिर्फ क्रिकेट से मतलब है और ग्रास रूट स्तर व राष्ट्रीय आयोजनों से कोई लेना देना नहीं रह गया है

राजेंद्र सजवान

भारतीय एथलेटिक के सबसे सफलतम खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने हाल ही में एक बयान द्वारा देश में खेलों की प्रोत्साहन व्यवस्था पर यह सवाल किया है कि क्यों क्रिकेट की तरह बाकी खेलों को प्रचारित नहीं किया जाता। आमतौर पर शांत रहने और सधे हुए शब्दों में दिल की बात करने वाले नीरज चाहते हैं कि क्रिकेट  की तरह एथलेटिक और अन्य खेलों को भी  समाचार माध्यमों में जगह दी जानी चाहिए।

   बेशक, नीरज की चिंता वाजिब है। भारत में यदि एथलेटिक चर्चा में है तो मिल्खा सिंह, पीटी उषा और कुछ अन्य एथलीटों के कारण।  लेकिन नीरज ने भारत को विश्व स्तर पर न सिर्फ पहचान दिलाई है, उसके प्रदर्शन के कारण भारत के एथलीट चैम्पियनों के बीच सिर ऊंचा कर खड़े हैं। नीरज और कुछ अन्य एथलीट ओलम्पिक और एशियाई स्तर पर शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन भारतीय मीडिया उन्हें किसी बड़ी उपलब्धि के चलते याद करता है और जल्दी ही उन्हें भुला दिया जाता है।

   लेकिन ऐसा सिर्फ एथलेटिक के साथ नहीं है। ज्यादातर खेल मीडिया से नाखुश हैं। इसलिए क्योंकि उन्हें तब ही याद किया जाता है जब कोई खिलाड़ी बड़ी कामयाबी पाता है। क्रिकेट ही ऐसा खेल है जिसके चर्चे सुबह-शाम और दिन-रात होते हैं। क्रिकेट खिलाड़ियों को पालने पोसने वाला मीडिया हमेशा से ओलम्पिक खेलों के प्रति उदासीन रहा है और आने वाले सालों में भी हालात सुधरने वाले नहीं हैं। कारण, अब क्रिकेट ओलम्पिक में शामिल होने जा रहा है।

  क्रिकेट के प्रति प्रचार माध्यमों का प्यार दुलार जगजाहिर है। किसी भी गली कूचे के आयोजन से लेकर एशियाद और विश्व कप तक क्रिकेट हमेशा प्राथमिकता वाला खेल बना रहता है। यह भी सच है कि इस खेल की लोकप्रियता लगातार बढ़ी है। लेकिन बाकी खेलों में से ज्यादातर बिना किसी स्टार खिलाड़ी के पनप नहीं पा रहे। नीरज चोपड़ा और अभिनव बिंद्रा जैसे चैम्पियन अन्य के पास नहीं हैं। यही कारण है कि उनकी लोकप्रियता का ग्राफ ज्यादा ऊंचा नहीं उठ पाता।

 

   हैरानी वाली बात यह है कि देश के समाचार पत्र, पत्रिकाएं, सोशल मीडिया और टीवी चैनल सिर्फ क्रिकेट पर मेहरबान हैं। बाकी खेलों से उन्हें जैसे एलर्जी है। यह सिलसिला वर्षों से चल रहे है रहा है। नतीजन क्रिकेट और अन्य खेलों के बीच दीवार सी खड़ी हो गई थी। हालांकि ज्यादातर खेलों ने क्रिकेट के आगे घुटने टेक दिए हैं। लेकिन यह आत्मसमर्पण भी ठीक नहीं है।

   देश के प्रिंट मीडिया का हाल यह है कि उसे सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट से मतलब है। बाकी खेलों में यूरोपियन फुटबॉल, टेनिस और चंद अन्य खेल भारतीय अखबारों के प्रिय हैं। दिल्ली और अन्य शहरों के समाचार पत्रों को ग्रास रूट स्तर और राष्ट्रीय आयोजनों से कोई लेना देना नहीं रह गया है।

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