यदि सौ पदक नहीं जीत पाए तो!

  • पहली बार देखने में आया है कि हर तरफ ‘इस बार सौ (पदक) पार’ का नारा गूंज रहा है
  • खेल मंत्रालय, आईओए, खेल संघ, आयोजक, प्रायोजक, खिलाड़ी, लिखाड़ी और खेल प्रशासक आगामी एशियाड को लेकर उत्साह से भरे हैं

राजेंद्र सजवान

जी हां, भारत बदल रहा है। बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जैसा पहले कभी नहीं हुआ। बेशक, खेलों में भी बदलाव नजर आ रहा है। देर से ही सही भारतीय खिलाड़ी और अभिभावक चैम्पियन खिलाड़ी होने का मतलब समझ रहे हैं। हालांकि कभी-कभार ऐसी घटनाएं होती हैं जिनको देख कर खेल मैदानों की तरफ बढ़ते कदम पीछे हटते नजर आते हैं और माता- पिता यह सोचने को विवश हो जाते हैं कि बच्चों और खासकर अपनी बेटियों को खेलों से जोड़ें या दूरी बना कर रखें।

 

  पिछले कुछ सालों में महिला खिलाड़ियों और कोचों के साथ व्यभिचार और यौनाचार की घटनाओं ने माता-पिता की सोच को बदल कर रख दिया था। लगभग सभी खेलों में महिला खिलाड़ियों के साथ दुर्व्यवहार होता आया है। पिछले दिनों महिला पहलवानों के साथ जो कुछ हुआ उसका संदेश बहुत बुरा गया है। फिलहाल मामला कोर्ट में है और उम्मीद की जानी चाहिए कि दूध का दूध होगा। लेकिन कुश्ती ही एकमात्र ऐसा खेल नहीं जिसमें खिलाड़ियों को हैरान परेशान किया जा रहा है। अन्य खेलों में भी बहुत कुछ शर्मनाक होता आया है।

    लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू  उत्साहवर्धक कहा जा सकता है। टोक्यो ओलम्पिक में भारत के खाते में आठ पदक आना श्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। खासकर, हॉकी में 41 साल बाद पदक जीतना शानदार कहा जा सकता है। नीरज चोपड़ा का विश्व और ओलम्पिक चैम्पियन बनना एथलेटिक में नई शुरुआत कही जा सकती है। मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा के प्रदर्शन पर गर्व करने वाले देश को अब असल चैम्पियन मिल गया है।

 

  निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा ने जो कर दिखाया उसे दोहराने के लिए कई निशानेबाज तैयार खड़े हैं तो अन्य खेलों में भी कुछ एक खिलाड़ी अपना नाम इतिहास पुस्तिकाओं में दर्ज कराने की योग्यता रखते हैं। कुश्ती, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, भारोतोलन, हॉकी, एथलेटिक, निशानेबाजी, तीरंदाजी आदि खेलों में भारतीय खिलाड़ी बेहतर कर रहे हैं। यही कारण है कि खेल मंत्रालय, आईओए, खेल संघ, आयोजक, प्रायोजक, खिलाड़ी लिखाड़ी और खेल प्रशासक आगामी एशियाड को लेकर उत्साह से भरे हैं। पहली बार देखने में आया है कि हर तरफ ‘इस बार सौ(पदक) पार’ का नारा गूंज रहा है।

   सौ पदक जीतने के लिए एशियाड में इस बार सबसे बड़ा दल भाग लेने जा रहा है। यदि ऐसा हो पाया तो मानना पड़ेगा कि भारतीय खेल-खिलाड़ी सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और देश के साथ-साथ उसके खेल भी बदल रहे हैं। लेकिन यदि पदकों का शतक नहीं बना पाए तो?

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