सतपाल के जाने के बाद फीकी पड़ी खेलों की राजधानी की चमक

  • अगर भारतीय खेल इतिहास पर सरसरी नजर डालें तो महाबलि सतपाल न सिर्फ अच्छे पहलवान रहे हैं बल्कि अच्छे गुरु भी साबित हुए और खेल अधिकारी के रूप में भी उन्होंने खूब नाम-सम्मान कमाया है
  • तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनके बेटों राजीव और संजय गांधी की विशेष कृपा के चलते सतपाल दिल्ली सरकार के खेल विभाग में उच्च पद पर काबिज हुए, जिसके वह सही हकदार थे
  • दिल्ली एशियाड के स्वर्ण पदक विजेता ओलम्पियन पहलवान के पद ग्रहण के साथ ही दिल्ली के खेलों का भाग्योदय शुरू हुआ और देश की राजधानी स्कूली खेलों की खेल राजधानी में तब्दील हो गई

राजेंद्र सजवान    

यह जरूरी नहीं कि कोई चैम्पियन खिलाड़ी  ही एक सफल कोच या कामयाब प्रशासक हो सकता है। भारतीय खेल इतिहास पर सरसरी नजर डालें तो एक ऐसा चैम्पियन हुआ है जो  न सिर्फ अच्छा गुरु बना अपितु खेल अधिकारी के रूप में भी उसने खूब नाम-सम्मान कमाया है।

   कुछ महान गुरुओं की बात करें तो गुरु हनुमान, नांबियार, ओपी भारद्वाज, रहीम,  बलदेव सिंह जैसे नाम वर्षों से बड़े सम्मान के साथ लिए जाते रहे हैं। लेकिन एक नाम ऐसा है जो सफल कोच और प्रशासक के रूप में भी  जाना पहचाना जाता है। बेशक, यह नाम है ‘महाबली सतपाल’, जिनको एक दौर में भारतीय कुश्ती में एक बड़ा हस्ताक्षर माना गया। एक खेल प्रशासक के रूप में भी उनका योगदान बढ़-चढ़ कर रहा है।

  सतपाल न सिर्फ एक श्रेष्ठ पहलवान रहे अपितु खेल प्रशासन को चलाने का हुनर शायद उनसे बेहतर किसी के भी पास नहीं रहा। उस समय जब भारतीय कुश्ती अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही थी और  बिड़ला व्यायामशाला के पहलवान अपना कद बढ़ा रहे थे, सुदेश, प्रेमनाथ, करतार,  जगमिंदर और दर्जनों अन्य नामों के बीच सतपाल का उदय हुआ और गुरु श्रेष्ठ गुरु हनुमान का अखाड़ा भारतीय कुश्ती जगत की शान बन गया।

 

   एक पहलवान के रूप में सतपाल ने खूब नाम, दाम और सम्मान कमाया। उन्हें गुरु जी का प्रिय पहलवान माना गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनके बेटों राजीव और संजय गांधी की विशेष कृपा के चलते सतपाल दिल्ली सरकार के खेल विभाग में उच्च पद पर काबिज हुए, जिसके वह सही हकदार थे। दिल्ली एशियाड के स्वर्ण पदक विजेता ओलम्पियन पहलवान के पद ग्रहण के साथ ही दिल्ली के खेलों का भाग्योदय शुरू हुआ और देश की राजधानी स्कूली खेलों की खेल राजधानी में तब्दील हो गई। सतपाल की देखरेख में चल रहे छत्रसाल अखाड़े ने कई ओलम्पिक पदक विजेता और द्रोणाचार्य कोच पैदा किए लेकिन अब सतपाल नहीं तो कुछ भी नहीं।

 

  सतपाल के उच्च पद पर रहते दिल्ली के स्कूलों ने लगभग सभी खेलों में अपना आधिपत्य कायम किया। शायद ही कोई खेल बचा रह गया होगा जिसमें दिल्ली के खिलाड़ियों की तूती न बोली हो। पुरस्कार स्वरूप उन्हें स्कूल गेम्स फेडरेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया। सतपाल जब तक दिल्ली सरकार में शीर्ष पद पर रहे और तब तक एसजीएफआई की बागडोर उनके हाथों में रही। खिलाड़ियों को हर प्रकार की सुविधाएं मिलीं लेकिन आज एसजीएफआई एक गुमनाम और  बदनाम संस्था बन कर रह गई है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *