“हॉकी के राम थे ध्यानचंद”

  • हॉकी के जादूगार मेजर ध्यानचंद के सुपुत्र अशोक ध्यानचंद से जब यह पूछा जाता है कि उनके स्वार्गीय पिता को देश की सरकारों ने भारत रत्न के लायक क्यों नहीं समझा, तो वह कहते हैं कि यह तो सरकार ही बता सकती है
  • अशोक कहते हैं कि देश में सिर्फ हॉकी के जादूगर बन कर रहे गए हैं क्योंकि उनके लिए भारत रत्न मांगना पड़ रहा है, रैलियां निकाली गईं, सिग्नेचर कैंपेन चलाए गए, जंतर-मंतर पर धरना दिया गया
  • उन्होंने कहा कि हैरानी वाली बात यह है कि जिन लोगों ने ध्यानचंद के नाम पर सड़के और स्टेडियम बनाए, अवार्डों का नामकरण किया वे भारत रत्न पा रहे हैं, जबकि देश-विदेश में हॉकी का ‘राम’ समान यश-कीर्ति पाने वाले और भारत की पहचान रहे ध्यानचंद की तरफ से कोई ध्यान नहीं दे रहा

राजेंद्र सजवान
“जिसके नाम पर खेल दिवस मनाया जाता है, खेल अवार्ड दिए जाते हैं, जिसके नाम पर सैकड़ों स्टेडियम है, संग्राहलय हैं, सड़के हैं, और जिसे हॉकी का भगवान कहा जाता है, वह तो अपने आप में ही ‘भारत रत्न’ है। अब यह बात अलग है कि उसे सरकार भारत रत्न सम्मान के काबिल क्यों नहीं समझती,” यह कहना था पूर्व ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट अशोक ध्यानचंद का। हॉकी के जादूगार मेजर ध्यानचंद के सुपुत्र अशोक ध्यानचंद से जब यह पूछा जाता है कि उनके स्वार्गीय पिता को देश की सरकारों ने भारत रत्न के लायक क्यों नहीं समझा, तो वह कहते हैं कि यह तो सरकार ही बता सकती है, लेकिन ध्यानचंद ही एकमात्र ऐसे खिलाड़ी रहे हैं, जिसे दुनिया भर में जाना पहचाना गया, सम्मान मिला है, और गुलाम भारत की बड़ी पहचान थे।

   भारत सरकार द्वारा हाल ही में ‘भारत रत्न’ सम्मान को लेकर दिखाई गई दरियादिली के बारे में पूछे जाने पर पूर्व हॉकी स्टार ने कहा कि ध्यानचंद उस युग के नायक थे जब भारत को कोई जानता पहचानता नहीं था। तब स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी जैसे महान लोगों की अलग पहचान थी। लेकिन जब विदेशी हॉकी प्रेमी यह पूछते थे कि ध्यानचंद को किस पते पर पत्र भेजा जाए, तो उन्हें जवाब मिलता था, लिफाफे पर ध्यानचंद, इंडिया लिख दें अपने आप सही हाथों में पहुंच जाएगा। अर्थात मेजर ध्यानचंद इतने लोकप्रिय थे कि उनके लिए किसी पते की भी जरूरत नहीं थी।  

  अशोक कहते हैं कि न सिर्फ भारत में जर्मनी, इंग्लैंड, हॉलैंड, ऑस्ट्रेलिया और दर्जनों अन्य देशों में उनके नाम पर बहुत कुछ है। लेकिन देश में सिर्फ हॉकी के जादूगर बन कर रहे गए हैं। उनके लिए भारत रत्न मांगना पड़ रहा है, रैलियां निकाली गईं, सिग्नेचर कैंपेन चलाए गए, जंतर-मंतर पर धरना दिया गया। बदले में उनकी मूर्तियां लगाकर और स्टेडियम का नामकरण कर सरकारों ने पल्ला झाड़ दिया। हैरानी वाली बात यह है कि जिन लोगों ने ध्यानचंद के नाम पर सड़के और स्टेडियम बनाए, अवार्डों का नामकरण किया वे भारत रत्न पा रहे हैं, जबकि देश-विदेश में हॉकी का ‘राम’ समान यश-कीर्ति पाने वाले और भारत की पहचान रहे ध्यानचंद की तरफ से कोई ध्यान नहीं दे रहा। आखिर समस्या क्या है, क्यों उन्हें भारत रत्न नहीं मिल पा रहा है, मुझसे सैकड़ों-हजारों पूछते हैं और मेरे पास जवाब नहीं है। बेहतर होगा कि आप सरकार से पूछे, अशोक ने कहा।

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