राजेंद्र सजवान/क्लीन बोल्ड
देर से ही सही अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ(एफ आईएच) के अध्यक्ष डाक्टर नरेंद्र ध्रुव बत्रा को गुस्सा आ ही गया। ऐसा स्वाभाविक भी है। आखिर खराब प्रदर्शन की हद होती है, जब हमारी पुरुष और महिला हॉकी टीमें फ्रांस , जापान और कोरिया से हारने लगेंगी तो देश का आम हॉकी प्रेमी यह जानने का हकदार है कि बेवजह हॉकी को सर क्यों चढ़ाया जा रहा है?
टोक्यो ओलम्पिक में पुरुष और महिला टीमों ने शानदार प्रदर्शन कर जो उम्मीद जगाई थी वह अब टूटती नजर आ रही है। महिलाऐं कोरिया और जापान के आगे हथियार डाल देती हैं तो यह भविष्य के लिए शुभ लक्षण कदापि नहीं है।
पुरुष टीम पिछले कुछ सप्ताह में फ्रांस से तीसरी बात परास्त हो चुकी है। ऐसे में किसी भी हॉकी प्रेमी को गुस्सा आ सकता है। फिर नरेंद्र बत्रा तो हॉकी इंडिया के अध्यक्ष रह चुके हैं और विश्व हॉकी के सर्वे सर्वा हैं।
यह न भूलें कि टोक्यो ओलम्पिक के बाद जब श्रेष्ठ खिलाडियों का चयन किया गया था तो गोलकीपर से लेकर श्रेष्ठ डिफेंस, मिड फील्डर, फॉरवर्ड सभी खिताब भारत की झोली में गिरे थे।
शायद इसलिए क्योंकि श्रेष्ठता का मापदंड वोटिंग थी, जिस पर खासा मज़ाक भी बनाया गया था। लेकिन ओलम्पिक के बाद अब जो कुछ भी हो रहा है उस पर किसी भी भारतीय हॉकी के चाहने वाले को गुस्सा आना स्वाभविक है।
बत्रा का गुस्सा इसलिए भी जायज है क्योंकि उन्होंने वर्तमान अध्यक्ष को हॉकी इंडिया थाली में परोसकर दी है। हॉकी इंडिया, उसके विदेशी कोचों और स्वदेशी सेवादारों को तो बस प्रदर्शन में सुधार करना है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
दिन पर दिन और मैच दर मैच भारतीय प्रदर्शन में स्थिरता की कमी और भारी गिरावट साफ़ नजर आ रही है। यह न भूलें कि कॉमनवेल्थ खेल और एशियाड चंद महींने दूर हैं और भारतीय टीमों के लक्षण ठीक नज़र नहीं आ रहे। डर इस बात का भी है कि आगामी दो बड़े आयोजनों में भारतीय टीम एक्सपोज हो सकती है।
कुछ आलोचकों का मानना है कि ज्यादा पब्लिसिटी, अधिकाधिक सुविधाओं और बार बार खिलाडियों का गुणगान प्रदर्शन पर भारी पड़ रहे हैं। कुछ पूर्व ओलम्पियन तो यहां तक कह रहे हैं कि डाक्टर बत्रा का एफआईएच अध्यक्ष चुना जाना, उड़ीसा का हॉकी को गोद लेना और ओलम्पिक में पदक जीतने के बाद भी यदि प्रदर्शन गिरता है तो भगवान् भी भारतीय हॉकी का भला नहीं कर सकता।
कुछ तो यह भी मानते हैं कि ओलम्पिक कांसा महज इत्तफाक था या कोरोना का प्रसाद कहा जा सकता है क्योंकि ज्यादतर टीमें आधी अधूरी तैयारी के साथ खेलने आई थीं।
उम्मीद कि जानी चाहिए कि डाक्टर बत्रा की नाराजगी के बाद हॉकी इंडिया, खिलाडियों और टीम पर बोझ बन रहे अधिकारीयों एवं कोचों कि अक्ल ठिकाने जरूर लग जाएगी। वरना फिर वही होगा जैसे पिछले पचास सालों से होता आ रहा था।