मार्शल आर्ट्स में: तू मेरी खुजा, मैं तेरी खुजाता हूं

  • एशियाई खेलों को लेकर देश में उत्सुकता के  माहौल के बीच एक ऐसा वर्ग भी है जो खेल और खिलाड़ियों की आड़ में आत्मप्रवंचना, आत्ममुग्धता और बड़बोलेपन पर उतारू है
  •  यह वर्ग मार्शल आर्ट्स खेलों से जुड़ा है और सालों से इन खेलों के नाम की खा रहा है
  • खेल की आड़ में लूट, नशाखोरी और चयन में धांधली इन खेलों की पहचान बन कर रह गई है
  • खिलाड़ी डोप टेस्ट में धरे जा रहे हैं तो अधिकारी गुटबाजी के शिकार हैं
  •  आपसी कलह के चलते कुछ खेल कोर्ट-कचहरी में खेले जा रहे हैं

राजेंद्र सजवान

एशियाई खेलों का बिगुल बज चुका है। महाद्वीप के अन्य देशों की तरह भारतीय खिलाड़ी भी अंतिम तैयारी में जुटे हैं। सबसे बड़ा दल लेकर हमारे खिलाड़ी चीन पहुंचने शुरू हो गए हैं। किन-किन खेलों में पदक की उम्मीद है और कौन पिछले दरवाजे से जा रहे हैं, जैसे विषय गौण हो गए हैं। भले ही हमारे बड़े-छोटे नेता, सांसद, खेल अधिकारी, मंत्री और अन्य इस बार सौ पदक जीतने का दम भर रहे हैं लेकिन देशवासी सिर्फ इतना चाहते हैं कि हमारे खिलाड़ी अपना श्रेष्ठ देकर और सिर ऊंचा कर लौटें।

   एक तरफ एशियाई खेलों को लेकर देश में उत्सुकता का माहौल बना है तो दूसरी तरफ  एक ऐसा वर्ग भी है जो कि खेल और खिलाड़ियों की आड़ में आत्मप्रवंचना, आत्ममुग्धता और बड़बोलेपन पर उतारू है। यह वर्ग मार्शल आर्ट्स खेलों से जुड़ा है और सालों से इन खेलों के नाम की खा रहा है। मार्शल आर्ट्स खेल भी एशियाड का हिस्सा हैं और सालों से हमारे खिलाड़ी इन खेलों में भाग लेते आ रहे हैं।

इन खेलों का जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि जूडो, कराटे, कुंगफू, वूशु, कुराष आदि खेलों में हमारे चंद खिलाड़ी ही भाग ले पा रहे हैं, जिनसे पदकों की उम्मीद कम ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मार्शल आर्ट्स खेल भारतीय खेलों का अभिशाप बन गए हैं। खेल की आड़ में लूट, नशाखोरी और चयन में धांधली इन खेलों की पहचान बन कर रह गई है। खिलाड़ी डोप टेस्ट में धरे जा रहे हैं तो अधिकारी गुटबाजी के शिकार हैं। आपसी कलह के चलते कुछ खेल कोर्ट-कचहरी में खेले जा रहे हैं।

   जहां एक तरफ मार्शल आर्ट्स खेलों में अंधी दौड़ चल रही है तो दूसरी तरफ खेलों के कर्णधार, अधिकारी, कोच, मास्टर, इंस्ट्रक्टर सभी अप- अपनी डफली बजा रहे हैं। मध्य प्रदेश का एक मास्टर खुद को सम्मानित करने पर तुला है। सोशल मीडिया पर वह खुद ही अपनी तारीफों के पुल बांध रहा है। गली कूचे के अखबारों में उसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिए जाने की खबरें छप रही हैं तो कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा, यूपी, दिल्ली के कुछ महाशय भी खुद को सम्मानित करने की होड़ में शामिल हैं।

खुद को सम्मान देने का यह खेल हर शहर, जिले और प्रदेश में खेला जा रहा है। पिछले कुछ सालों से यह खेल विदेशों में भी चल निकला है। भारतीय अवसरवादी विदेशियों के हाथों सम्मान पा रहे है तो बदले में विदेशी भारत आकर सम्मान पाते हैं। लेकिन सम्मान की अदला-बदली किस लिए हो रही है किसी के पास जवाब नहीं है। सच्चाई यह है कि मार्शल आर्ट्स खेलों में भारत सबसे फिसड्डी देशों में से है फिर भी क्रिकेट के बाद मार्शल आर्ट्स खेल सबसे ज्यादा खेले जाते हैं।

आत्मसुरक्षा के नारे के साथ इन खेलों का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है। माता-पिता और उनके लाडले, लाडलियां पता नहीं क्यों इन खेलों के मोहपाश में फंस रहे हैं। उन्हें तब होश आती है जब उनका करियर चौपट हो जाता है। “तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी खुजाऊंगा”, की तर्ज पर सर्टिफिकेट और ट्रॉफियां बांटी जा रही हैं। देश विदेश में सम्मान समारोह हो रहे हैं। किस लिए, किसी को पता नहीं।

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