क्रिकेट की चौधराहट के चलते बाकी खेल भये भिखारी!

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

   क्रिकेट और अन्य खेलों के बीच की बहस और तुलना पर लगभग विराम लग चुका है लेकिन हाल ही में क्रिकेट के एक बड़े फैसले ने अन्य खेलों के जख्मों को फिर से कुरेदा है। पिछले कई सालों से भारतीय ओलम्पिक खेलों के ठेकेदार क्रिकेट की कामयाबी से चिढ़ते आए हैं और उस पर आरोप लगाते रहे हैं कि  क्रिकेट ने बाकी भारतीय खेलों को बहुत पीछे धकेल दिया है।

   इसमें दो राय नहीं कि आईपीएल की  शुरुआत से क्रिकेट में धनवर्षा हो रही है। खिलाड़ी, अधिकारी, बड़े औद्योगिक घराने और छोटे वर्ग के आम कारोबारी सभी खूब कमा खा रहे हैं। एक तरफ जहाँ बाकी भारतीय खेल सरकारी सहायता के मोहताज हैं तो क्रिकेट अपने प्रयासों से लगातार प्रगति कर रहा है। यह सही है कि लगभग चालीस साल पहले तक क्रिकेट की माली हालत अच्छी नहीं थी लेकिन कपिल की कप्तानी में विश्व कप जीतने के बाद से यह खेल माला माल होता चला गया।

   हाल ही में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की कुछ घोषणाओं ने बाकी भारतीय खेलों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। आईपीएल के मुनाफे से उत्साहित होकर बोर्ड ने पूर्व क्रिकेटरों को लाभान्वित करने के लिए जो राशि घोषित की है उसे जानकर अन्य भारतीय खेल इतने शर्मिंदा हैं कि खेल संघों के अधिकारी चुल्लू भर पानी में डूब मरने से डर रहे हैं।

   बीसीसीआई को आईपीएल से इतनी कमाई हो रही है कि उसने अपने पूर्व महिला एवं  पुरुष क्रिकेटरों और अम्पायरों की मासिक पेंशन को लगभग डबल करने का फैसला किया है। प्रथम श्रेणी के खिलाडियों कि पेंशन को 15 हजार से बढ़ाकर 30 हजार कर दिया गया है, जबकि 37,500 पाने वाले पूर्व टेस्ट क्रिकेटरों को अब 60 हजार तथा 50 हजार पाने वालों को 70 हजार मिलेंगे। जिन अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेटरों को तीस हजार मिलते थे उन्हें अब 52,500 रुपये मिलेंगे। बोर्ड ने बाईस हजार  पाने वाले प्रथम श्रेणी के क्रिकेटरों को अब 45  हजार देने की घोषणा की है।

   भले ही बाकी भारतीय खेल आरोप लगाते रहें लेकिन क्रिकेट को उसके अपने खिलाड़ियों और प्रशासकों ने दुनिया के बड़े खेलों कि कतार में ला खड़ा किया है। जहां एक ओर तमाम खेल फेडरेशन सरकारी टुकड़ों पर पल रहीं हैं तो भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने अपने खिलाड़ियों, अम्पायरों और सपोर्ट स्टाफ एवं अन्य इकाइयों को मालामाल कर दिया  है।  बीसीसीआई अध्यक्ष सौरभ गांगुली ने एक बयान में कहा है, “क्रिकेटर बोर्ड की जीवन रेखा हैं तो अम्पायर गुमनाम नायकों की  तरह हैं। बोर्ड का दायित्व है कि उनके योगदान को समझा जाए और उनकी आर्थिक स्थिति का ध्यान रखा जाए।” शायद ही कभी किसी अन्य भारतीय खेल के शीर्ष अधिकारी ने इस प्रकार की खेल भावना प्रदर्शित की हो।   शायद ही कभी किसी भारतीय खेल ने अपने पूर्व खिलाड़ियों की खबर ली हो। पेंशन और अन्य सुविधाएं तो दूर की बात है। कितने खिलाड़ी भूख और अभाव में मारे गए इसका रिकार्ड भी उनके पास नहीं होगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *